मद्रास हाई कोर्ट ने NEET UG 2024 के दौरान एक स्टूडेंट को डायपर पहनने की इजाजत दे दी. छात्रा न्यूरोजेनिक ब्लैडर स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से जूझ रही है. कोर्ट ने कहा कि छात्रा की मेडिकल कंडीशन 4 साल की उम्र से ऐसी रही है, जिसकी वजह से उसका दिमाग ब्लैडर को कंट्रोल नहीं कर पाता है. उसे बार-बार डायपर बदलने की जरूरत पड़ गई है. वह एक हादसे में जल गई थी, जिसके बाद ऐसा हुआ है.
कब ब्लैडर हो जाता है न्यूरोजेनिक?
न्यूरोजेनिक ब्लैडर के मामले उन लोगों में ज्यादा आते हैं, जिनका किसी वजह से स्पाइनल कार्ड चोटिल हो जाता है. अगर वहां गंभीर चोटें आईं तो ऐसा होना बेहद सामान्य है. आंकड़े बताते हैं कि 95 प्रतिशत लोग जिन्हें स्पाइना बिफिडा है, वे न्यूरोजेनिक ब्लैडर से जूझते हैं. कई लोगों में यह जन्मजात बीमारी होती है. इसकी वजह से 'सेरेब्रल पालसी' भी होती है, जिसके मरीज आजीवन बेड पर पड़े रहते हैं. अचानक आए स्ट्रोक, पार्किंसन, स्लेरॉसिस, इरेक्टाइल डिस्फंक्शन और हादसों की वजह से भी कई बार मरीज इस बीमारी का शिकार हो जाता है.
क्या हैं इस बीमारी के लक्षण?
इस बीमारी में इंसान पेशाब कंट्रोल नहीं कर पाता है. उसका यूरीनरी सिस्टम बुरी तरह से प्रभावित होता है. बार-बार पेशाब जाना पड़ता है. हमेशा लगता है कि पेशाब होने वाला है. पेशाब के दौरान भीषण दर्द होता है. हमेशा पेशाब निकलता रहता है.
कैसे न्यूरोजेनिक ब्लैडर की करें देखरेख?
अपने लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर भी इसे कंट्रोल किया जाता है लेकिन सिर्फ यही काफी नहीं है. पेशाब नली इसका एक विकल्प है लेकिन यह दर्दभरी प्रक्रिया है. मेडिकेशन से इसे नियंत्रित किया जा सकता है. बोटोक्स इंजेक्शन भी कई बार मददगार साबित होते हैं. इसके लिए ब्लैडर एग्युमेंटेशन सर्जरी भी होती है लेकिन इसकी सफलता भी 100 फीसदी नहीं है.