Shiv Sena MLA Killed Tiger: महाराष्ट्र के विधायक का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है, जिसमें वे कबूल कर रहे हैं कि मैंने बाघ को मारा है और उसके दांत को गले में पहना भी है. विधायक के दावे वाले वीडियो के वायरल होने के बाद वन विभाग ने उनके खिलाफ संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है. साथ ही गले में पहने हुए दांत को जांच पड़ताल के लिए फॉरेंसिक लैब भेज दिया है.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट के शिवसेना विधायक संजय गायकवाड ने छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती पर बाघ का शिकार करने वाला बयान दिया था. बुलढाणा से विधायक संजय गायकवाड का ये बयान अब उनकी मुश्किलें बढ़ा सकता है. उन्होंने कहा था कि 1987 में मैंने एक बाघ का शिकार किया और आज भी बाघ का दांत मेरे गले में है. विधायक के इस बयान वाले वीडियो के वायरल होने के बाद बुलढाणा वन विभाग पहले मामला दर्ज किया और फिर कहा कि विधायक ने गले में जो दांत पहना था, उसे जब्त कर लिया गया है.
1987 ला मी वाघाची शिकार केली. तो दात माझ्या गळ्यात आहे"आमदार संजय गायकवाड यांची शिवजयंतीच्या कार्यक्रमात धक्कादायक कबुली#Sanjaygaikwad #Viralvideo #Saamanaonline pic.twitter.com/ssn4u0izdp
— Saamana (@SaamanaOnline) February 22, 2024
इस संबंध में वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत मामला दर्ज किया गया है. फॉरेंसिक लैब से रिपोर्ट आने के बाद कानूनी कार्रवाई की जाएगी. मामले की जांच सहायक वन संरक्षक (प्रा. एवं काइम्पा) बुलढाणा कर रहे हैं. बुलढाणा वन रेंज अधिकारी अभिजीत ठाकरे ने बताया कि जब्त किए गए दांत को डीएनए परीक्षण के लिए देहरादून वन्यजीव संस्थान भेजा जाएगा. उन्होंने कहा कि जांच रिपोर्ट के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि अगर जब्त किया गया दांत सच में बाघ का निकलता है, तो इस मामले में तीन साल की सजा का प्रावधान है.
छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में संजय गायकवाड शामिल हुए थे. इस दौरान उनसे उनके गले में लटक रहे नुकीले दांत के बारे में सवाल किया गया था. इसके बाद संजय गायकवाड ने दावा किया था कि एक बाघ का मैंने शिकार किया था, ये उसी बाघ का दांत है.
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के लागू होने के बाद बाघ के शिकार को आधिकारिक तौर पर 1987 से प्रतिबंधित कर दिया गया था. वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972, बाघों को संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में शामिल करता है.
1972 में लागू वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम बाघों के शिकार, बाघ की खाल, हड्डियों और शरीर के अंगों के व्यापार के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है. ऐसे अपराध करने वालों को दोषी पाए जाने पर तीन से सात साल की कैद और 50 हजार रुपये से लेकर दो लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.