मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, जबलपुर के अध्यक्ष डीके जैन का एक बयान इन दिनों सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. उन्होंने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रवि मलीमथ के फेयरवेल स्पीच पर कुछ ऐसा कहा है, जिसे लेकर बहस छिड़ गई है. उन्होंने अधिवक्ताओं की वह पीड़ा उठाई है, जिससे उन्हें हर दिन दो-चार होना पड़ता है. न्यायाधीशों की आलोचना इतनी कठिन है कि उनके खिलाफ कुछ भी लिख-बोल पाना, खुद को कानूनी पचड़े में फंसाना है.
उन्होंने जस्टिस रवि मलीमथ के फेयरवेल पर कहा, 'विथ ड्यू रिस्पेक्ट माई लॉर्डस! 'ऊंचे आसन पर बैठने से कोई ऊंचा नहीं हो जाता. कृपया अधिवक्ताओं का अपमान न करें.'
डीके जैन ने वायरल वीडियो में कहा है, 'माननीय हमारे न्यायालय के कुछ न्यायाधीश हमारे अधिवक्तागणों के साथ असंयमित भाषा में बातचीत कर रहे हैं. जरा सी जरा बात पर केस डिसमिस करना, फाइन लगाना न्यायाधीश की गरिमा के प्रतिकूल है. एक अधिवक्ता एक ही समय एक से अधिक न्यायालयों में उपस्थित नहीं हो सकता है. ऐसी स्थिति में प्रकरण को पासओवर करने की जगह उसे रिजेक्ट करना आम बात हो गई है.'
वकील ने गिनाई जजों की कमियां
एडवोकेट डीके जैन ने कहा, 'फाइलिंग में घंटों इतजार के बाद भी नबंर नहीं आता है. प्रकरण में डिफाल्ट आए तो उसकी लिस्टिंग नहीं होती है. अगर कोई प्रकरण 7 दिनों के भीतर दुरुस्त न हो एकमुस्त कई प्रकरण डिस्पैच किए जा रहे हैं. हजारों मामले लंबित हैं उनका निपटारा नहीं होता.'
ऐसा लगता है कि माननीय उच्च न्यायालय को आम जनता को न्याय देने की बजाय प्रकरणों का बोझ कम करने में ज्यादा रुचि है. इस साल माननीय उच्च न्यायलच ने गर्मी की छुट्टियां 15 दिन आगे बढ़ा दी है. जब छुट्टियां मिलेंगी तब यह बीत चुका होगा. यह आपने अपनी मर्जी से नहीं किया होगा हमारी बार के पूर्व अध्यक्ष भी पके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे हैं. इसलिए ही तो मुझे लोगों ने मुझे चुना है.
डीके जैन ने कहा, 'आज भी आप हमारे न्यायाधीश हैं. आप मिनटों में इन मुश्किलों को निपटा सकते हैं. हमारे यहां परंपरा है कि घर के बड़े बुजुर्ग जाते हैं तो बच्चों को जीभर उपहार देकर जाते हैं. ऐसे में आप से उम्मीद है कि आप यह करेंगे.'
क्यों उठते हैं जजों के आचरण पर सवाल?
सिद्धार्थनगर जिला अदालत में एडवोकेट आनंद मिश्र बताते हैं कि कई बार, जजों की भाषा कोर्ट में ही असंयत नजर आती है. जूनियर वकीलों के साथ उनका ट्रीटमेंट ठीक नहीं होता. कई बार भरी अदालत में क्लांट और सहकर्मी वकीलों के सामने उन्हें फटकार लग जाती है. वकील सामाजिक व्यक्ति होता है और उसकी प्रतिष्ठा होती है, जिसे ऐसे फटकारों की वजह से चोट पहुंचती है.
विथ ड्यू रिस्पेक्ट माई लॉर्डस! 'ऊंचे आसन पर बैठने से कोई ऊंचा नहीं हो जाता! .. कृपया अधिवक्ताओं का अपमान न करें!'
— Prabhakar Kumar Mishra (@PMishra_Journo) May 29, 2024
ये हैं हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, जबलपुर के प्रेसिडेंट
डी के जैन और मौक़ा है हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
जस्टिस रवि मलीमथ के फेयरवेल का। pic.twitter.com/h5JKTA9V3v
एडवोकेट आनंद कहते हैं कि अगर जजों को टोकें तो वे कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट की बात कहने लगते हैं. अभी अदालतों का लोकतंत्रीकरण जरूरी है. कुछ जजों को लगता है कि वे उनके मालिक हैं. ऐसा है नहीं. एडवोकेट एक्ट और बार काउंसिल ऑफ इंडिया की रूलिंग्स बताती हैं कि एडवोकेट कोर्ट का अधिकारी होता है, जिसे भी सम्मान और बराबरी का हक मिलना चाहिए.