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'हमारी व्यवस्था में खामी है...', आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोले शशि थरूर?

कांग्रेस नेता शशी थरूर ने आवारा कुत्तों के प्रबंधन के लिए धनराशि को नगर पालिकाओं के बजाय विश्वसनीय पशु कल्याण संगठनों को देने की वकालत की है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि मानव सुरक्षा और कुत्तों के प्रति मानवीय व्यवहार में संतुलन जरूरी है. थरूर ने स्थानीय निकायों की निष्क्रियता और धन के दुरुपयोग पर सवाल उठाए हैं, साथ ही एनजीओ को नसबंदी और आश्रय योजनाओं के लिए जिम्मेदारी देने का सुझाव दिया है.

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Edited By: Kuldeep Sharma
Shashi Tharoor
Courtesy: web

आवारा कुत्तों की बढ़ती समस्या और कुत्तों के काटने की घटनाओं ने देशभर में चिंता बढ़ा दी है. इस मुद्दे पर कांग्रेस नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशी थरूर ने एक नया दृष्टिकोण पेश किया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले की सराहना करते हुए आवारा कुत्तों के प्रबंधन के लिए धनराशि के उपयोग पर पुनर्विचार की मांग की है. थरूर का कहना है कि समस्या का समाधान धन की कमी नहीं, बल्कि स्थानीय निकायों की निष्क्रियता और अक्षमता है. उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को तुरंत स्थानांतरित करने और आश्रय स्थापित करने का आदेश दिया है.

गौरतलब है कि 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाओं को 'बेहद गंभीर' बताते हुए दिल्ली-एनसीआर में सभी आवारा कुत्तों को तत्काल स्थायी रूप से स्थानांतरित करने का निर्देश दिया है. जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की बेंच ने दिल्ली प्रशासन को 6-8 सप्ताह के भीतर लगभग 5,000 कुत्तों के लिए आश्रय बनाने का आदेश दिया, जिसे चरणबद्ध तरीके से बढ़ाया जाएगा.

कोर्ट ने चेतावनी दी कि इस कार्य में बाधा डालने वालों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई हो सकती है. इसके साथ ही शशि थरूर ने इस फैसले को स्थानीय निकायों की निष्क्रियता के प्रति 'जायज नाराजगी' का परिणाम बताया है.

फंड के दुरुपयोग पर उठाए सवाल

शशि थरूर ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर पोस्ट कर कहा- 'आवारा कुत्तों के प्रबंधन के लिए धन की कमी नहीं है, लेकिन स्थानीय निकाय इस धन का सही उपयोग करने में असमर्थ हैं. उन्होंने बताया कि कई बार यह धनराशि या तो खर्च नहीं होती या गलत जगहों पर इस्तेमाल हो जाती है. नसबंदी और आश्रय जैसी योजनाओं को लागू करने में नगर पालिकाएं नाकाम रही हैं. थरूर ने सुझाव दिया कि इस धन को उन गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को दिया जाए, जो पशु कल्याण और नसबंदी कार्यक्रमों में बेहतर काम कर रहे हैं'

सुरक्षा और पशुओं के प्रति व्यवहार में संतुलन

थरूर ने जोर देकर कहा कि आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान करते समय मानव सुरक्षा और पशुओं के प्रति मानवीय व्यवहार के बीच संतुलन बनाना जरूरी है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दृष्टिकोण को 'विचारशील' बताते हुए कहा कि यह हर शहर के आम नागरिकों को प्रभावित करने वाली समस्या का समाधान खोजने की दिशा में एक कदम है. थरूर का मानना है कि विश्वसनीय पशु कल्याण संगठनों को जिम्मेदारी देने से नसबंदी और आश्रय योजनाएं अधिक प्रभावी होंगी. 

एनजीओ की भूमिका पर दिया जोर

थरूर ने अपने बयान में पशु कल्याण संगठनों की क्षमता पर भरोसा जताया है. उन्होंने कहा कि ऐसे एनजीओ, जो पहले से ही एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) कार्यक्रम और आश्रय संचालन में अच्छा काम कर रहे हैं, इस समस्या से बेहतर तरीके से निपट सकते हैं. उनका सुझाव है कि सरकार को इन संगठनों को न केवल धन देना चाहिए, बल्कि उन्हें नीतिगत स्तर पर भी अधिक जिम्मेदारी देनी चाहिए. इससे न सिर्फ कुत्तों का प्रबंधन होगा, बल्कि आम लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी.

दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल ने भी दी प्रतिक्रिया

वहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा- 'इसमें कोई शक नहीं कि कुछ आवारा कुत्ते लोगों पर हमला करते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला जल्दबाज़ी में लिया गया है. सुप्रीम कोर्ट को अपने फ़ैसले की समीक्षा करनी चाहिए. उन्हें एक समिति बनानी चाहिए जिसमें पशु प्रेमी, पशु चिकित्सक और नगर निगम शामिल हो. दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट से और समय देने का अनुरोध करना चाहिए'