प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को दावा किया था कि उनकी सरकार अगले लोकसभा चुनावों में फिर से सत्ता में आएगी. उन्होंने जोश दिखाते हुए भविष्यवाणी की कि अकेले भाजपा को कम से कम 370 सीटें मिलेंगी और राजग 400 का आंकड़ा पार कर जाएगा. उन्होंने कांग्रेस को यह कहते हुए निशाना बनाया कि उन्हें कई और सालों तक विपक्ष में ही बैठना होगा.
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देते हुए अपने भाषण में मोदी जी ने कहा कि वह "देश के मूड का अंदाजा लगा सकते हैं" और देश "राजग को 400 से अधिक सीटें और भाजपा को कम से कम 370 सीटें जरूर देगा."
माना जा रहा है कि यह 17वीं लोकसभा में प्रधानमंत्री का आखिरी बड़ा भाषण है, क्योंकि जल्द ही आम चुनाव होने वाले हैं. 370 का आंकड़ा 2019 में मोदी सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने से मैच करता है. तब उस समय के जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया था।.
इस बार बीजेपी के मुद्दों में आर्टिकल 370 के अलावा राम मंदिर जैसे मुद्दें भी शामिल है. हालांकि 400 पार का आंकड़ा जितना कहना आसान है उसको करना उतना ही मुश्किल भी नजर आ रहा है. भारत में पहली बार कांग्रेस ने 1984 में 424 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन ये जीत भी इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से हुई थी. ऐसा आंकड़ा किसी पार्टी के इतिहास में पहली बार था.
2019 में भाजपा 37 प्रतिशत वोट के साथ 303 सीट जीती थी. तब पार्टी 2014 के मुकाबले भाजपा को छह प्रतिशत वोट अधिक मिला था. लोगों को मोदी का काम और भरोसा दोनों पसंद आया था. इस तरह से भाजपा ने पिछली बार की तुलना में करीब 21 सीटें अधिक जीती थी. भाजता ने तब तो 1984 के बाद सबसे सफल प्रदर्शन करने में कामयाबी हासिल की लेकिन इस बार उनको 400 का आंकड़ा पार करने के लिए कुछ गंभीर चुनौतियों से दो चार रहना होगा.
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के खिलाफ नाराजगी देखी गई है. भले ही ये राज्य लोकसभा सीटों के लिहाज से छोटे हों लेकिन भाजपा के टारगेट को पूरा करने में बड़ी अहम भूमिका निभा सकते हैं.
पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं. इस बार यहां आम आदमी पार्टी सत्ता में है जिसके चलते भाजपा के लिए सीटें जीतना यहां आसान नहीं होगा. बीजेपी यहां पिछली बार कांग्रेस से पीछे रह गई थी और 2013 में शिरोमणि अकाली दल के साथ लड़ी थी जहां उसको फायदा हुआ था.
कश्मीर में 370 हटने के बाद पहली दफा आम चुनाव होंगे. लेकिन जिस तरह से हालिया समय में लद्दाख में बीजेपी के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं, उससे वहां सीट जीतना मुश्किल लग रहा है. पिछली बार भाजपा ने कश्मीर ने छह में से तीन सीट जीती थी. 370 हटने के बाद भाजपा के प्रति यहां के लोगों में नाराजगी बढ़ी है और इतनी सीट जीतना भी इस बार मुश्किल हो सकता है.
हिमाचल में कांग्रेस की सरकार आ चुकी है. पिछली बार की तरह भाजपा के लिए इस बार चार में से चार सीट जीतना मुश्किल हो सकता है.
दिल्ली में पिछली बार लोकसभा में सभी सात सीटे जीती थी. लेकिन आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से अपनी पैठ बनाई है और नगर निगमों पर भी कब्जा किया है उससे भाजपा के लिए चुनौती बढ़ गई है. यहां इस बार कांग्रेस और आप मिलकर गठबंधन में होंगी और भाजपा के लिए पिछली बार की तरह क्लीन स्वीप आसान नहीं होगा.
यूपी में भाजपा पिछली बार 80 में से 62 सीट जीतने में कामयाब हुई थी. इस बार सपा और कांग्रेस एक साथ चुनाव लड़ने जा रही हैं. यदि भाजपा 70 से कम सीट यहां जीतती है तो 400 का आंकड़ा पार करना मुश्किल होगा.
बंगाल, उड़ीसा और बिहार में बीजेपी की वो स्थिति नहीं है. उड़ीसा में नवीन पटनायक के साथ भाजपा का दोस्ताना मैच चल रहा है. बंगाल में भी पिछली बार की तरह 19 सीटों से ज्यादा जीत नहीं दिखाई दे रही है. बिहार में भी यही स्थिति है जहां जेडीयू के साथ सरकार बनाने वाले तेजस्वी यादव के प्रति लोगों में एक लहर है जो वोटों में तब्दील हो सकती है.
बीजेपी को दक्षिण भारत में अपना गठबंधन और भी ज्यादा मजबूत करना पड़ेगा. भाजपा को अपना टारगेट पूरा करने के लिए 25 से 50 सीट जीतनी जरूरी हैं. लेकिन यहां लड़ाई कठिन है. आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 सीटे हैं पर बीजेपी को एक नहीं मिल पाई. तमिलनाडु में 42 सीटों में एक भी नहीं पाई. इस बार भी केरल में खाता नहीं खुलता दिख रहा है. तीनों राज्यों में कुल मिलाकर 87 सीटें हैं.
इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के बाद लोकसभा से सर्वाधिक सांसद (48) महाराष्ट्र से आते हैं लेकिन यहां भाजपा के लिए स्थिति जटिल है. पिछली बार बीजेपी ने 23 सीटों पर जीत दर्ज की थी. तब शिवसेना का भी साथ था. अब शिवसेना (उद्धव), कांग्रेस और एनसीपी में गठबंधन है. यदि इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग हो जाती है तो बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी.
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