Uniform Civil Code: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया जाना इस समय राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा का विषय है. ये विधेयक अपने आप में खास है और इसको केंद्र की भाजपा सरकार के लिए आने वाले आम चुनाव का मुख्य बिंदु भी बताया जा रहा है.
यूसीसी के नाम से चर्चित ये विधेयक उत्तराखंड के बाद राजस्थान में भी पेश किया जा सकता है. उत्तराखंड में कई चीजें ऐसी हैं जो भाजपा सरकार के लिए इस विधेयक को वहां पेश करने का मौहाल बनाती हैं. माना जा रहा है हिंदुओं का गढ़ होने के चलते उत्तराखंड में यूसीसी को सफलता मिलेगी, जिससे अन्य राज्यों में भी विधेयक को पेश करने के लिए रास्ता तैयार होगा.
अब राजस्थान सरकार भी यूसीसी लाने की योजना बना रही है. सूत्रों के मुताबिक यूसीसी के लिए जल्द ही एक मसौदा समिति गठित की जाएगी. अंदरुनी तौर पर इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी गई हैं. राजस्थान कैबिनेट में ड्रॉफ्ट कमेटी बनाने का प्रस्ताव भी कैबिनेट में जल्द पेश किया जा सकता है.
इस बारे में शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने गुजरात की सामाजिक कार्यकर्ता तंजीम मेरानी को पत्र लिखकर यूसीसी लाने की बात कही है. मेरानी वही हैं जिन्होंने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध की मांग को लेकर जयपुर में विरोध किया था.
दिलावर ने बताया है कि यूसीसी को लाने के लिए संवैधानिक प्रक्रिया के तहत आगे की कार्यवायी की जाएगी. सरकार आज नहीं तो कल यूसीसी लाने के मूड है और 'पूरे देश में एकरुपता होनी चाहिए' की बात कर रही है.
बताया जा रहा है यूसीसी बिल के ड्रॉफ्ट के लिए एक कमेटी बनाई जाएगी जिसमें कानूनी एक्सपर्ट और अधिकारी रखे जाएंगे. ड्रॉफ्ट को लेकर जनता के सुझाव भी स्वागत योग्य होंगे. तब जाकर विधानसभा में विधेयक पेश होगा.
बता दें, देश में इस समय समान नागरिक संहिता को लेकर बहस छिड़ गई है. उत्तराखंड में मंगलवार को ये बिल पेश किया गया है. वहां के सीएम ने इसको युगांतकारी घटना बताया है. यूसीसी का मकसद नागरिक कानूनों में एकरुपता लाना है. जाति, धर्म देखे बगैर सभी नागरिकों के लिए एक कानून.
यूसीसी में शादी, तलाक, जमीन-जायदाद का बंटवारा, भरण-पोषण, विरासत, बच्चा गोद लेने जैसे विषय शामिल होंगे. ये सभी विषय सभी पंथ के लोगों के लिए समान रूप से लागू होंगे.
फिलहाल देश में समान नागरिक कानून नहीं है. मुस्लिमों के कई नियम शरीयत के हिसाब से चलते हैं. हालांकि देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान आपराधिक संहिता जरूर है. यानी अपराध करने वाले की सजा तय करते हुए उसका पंथ नहीं देखा जाता.
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