Allahabad High court on Hindu Marriage act: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू मैरिज एक्ट को लेकर बड़ा बयान देते हुए कहा कि हिंदू विवाह में कन्यादान का होना जरूरी नहीं है. न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की सेक्शन 7 का हवाला देते हुए 22 मार्च को पारित एक आदेश में यह टिप्पणी की थी. कोर्ट का कहना था कि हिंदू मैरिज एक्ट में केवल सप्तपदी (दूल्हा और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के सामने 7 फेरे) को हिंदू विवाह के लिए जरूरी माना गया है.
हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 7 में कहा गया है कि हिंदू विवाह के किसी भी पक्ष के पारंपरिक संस्कारों और समारोहों के अनुसार संपन्न किया जा सकता है. लखनऊ की सेशन कोर्ट के सामने पेंडिंग केस की सुनवाई करते वक्त अदालत का ध्यान इस प्रावधान की ओर गया.
याचिका में कहा गया था कि 2005 में हुए विवाह के दौरान कन्यादान किया गया था या नहीं इसकी जांच होनी चाहिए. इसके लिए गवाहों से पूछताछ होनी चाहिए, क्योंकि कन्यादान हिंदू विवाह का एक अनिवार्य हिस्सा है. 6 मार्च को ट्रायल कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 311 के तहत गवाहों को बुलाने की याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया था.
ट्रायल कोर्ट के इस आदेश के बाद याचिकाकर्ता ने इलहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया. हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा और कहा कि कन्यादान किया गया था या नहीं, इसमें जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. कोर्ट ने कहा कि कन्यादान की रस्म निभाई गई या नहीं, इस तथ्य को साबित करने के लिए सीआरपीसी की धारा 311 के तहत गवाहों को नहीं बुलाया जा सकता है.
हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायालय के पास सीआरपीसी की धारा 311 के तहत किसी भी गवाह को बुलाने की पर्याप्त शक्ति है. इस शक्ति का प्रयोग केवल तभी किया जा सकता है जब किसी मामले के उचित निर्णय के लिए गवाह को बुलाना आवश्यक हो. इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने गवाहों को वापस बुलाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी.