menu-icon
India Daily
share--v1

Sandeshkhali: आखिर क्यों पहले नहीं बोल पाई संदेशखाली की महिलाएं, किस वजह से आई आपबीती सुनाने की हिम्मत

Sandeshkhali Violence:पश्चिम बंगाल के संदेशखली इलाके में महिलाओं ने कथित तौर पर इतना दर्द भरा बर्ताव और शोषण झेला है, इसके पीछे क्या वजह रही? अब जाकर कैसे आई इन गरीब महिलाओं में आपबीती सुनाने की हिम्मत?

auth-image
Antriksh Singh
sandeshkhali

पश्चिम बंगाल के संदेशखली इलाके में कई महिलाओं के साथ कथित तौर पर शोषण और दुष्कर्म हुआ है. पीड़ितों द्वारा बताया जा रहा है कि यहां की महिलाओं को सुरक्षा नहीं मिलती है. हम महिलाएं बाहर जाने से डरती हैं. हमें सुरक्षा चाहिए. इन  महिलाओं ने कई सालों की चुप्पी तोड़ी है और तृणमूल नेता शेख शहजहां और उनके चेलों द्वारा की गई आरोपित व्यवस्थित गैंगरेप और यौन शोषण की भयावह घटनाओं पर बयान दिया है.

कैसे वजह से टूटी चुप्पी

ये महिलाएं अपनी दर्दनाक कहानियां सुना रही हैं और इंसाफ की मांग कर रही हैं. वे आरोप लगा रही हैं कि महिलाओं को तृणमूल पार्टी के कार्यालय में ले जाया गया, रात भर वहां बंद रखा गया, और तब तक छोड़ा नहीं गया जब तक तृणमूल के सदस्य “संतुष्ट” न हो जाते. 

महिलाओं को चुप्पी तोड़ने में जो बात मददगार रही वह थी शेख शहजहां का ईडी के छापे के बाद फरार हो जाना.

किस वजह से साधी गई चुप्पी

सुंदरबन के इस क्षेत्र के पास गरीबी एक प्रमुख कारक है जिस वजह से भी अब तक चुप्पी साधी गई. वहां असामाजिक तत्वों को तृणमूल शासन के कारण राजनीतिक केंद्रमंडल में शामिल करने के आरोप लगते रहे हैं. सुदूरबन का हिस्सा संदेशखाली, जिसकी ग्रामीण अर्थव्यवस्था मछली पालन और खेती पर टिकी है, ने भी पिछले तीन दशकों में आबादी बढ़ने और संसाधनों के कम होने के साथ-साथ संसाधन हड़पने के कई मामले देखे हैं.

यहां महिलाएं ज्यादातर अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय की हैं. दुख की बात है कि ज्यादातर महिलाएं शिकायत करने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं. पुलिस के पास गई कुछ शिकायतों पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई.

कथित तौर पर सालों से यौन हिंसा और उत्पीड़न 

भाजपा कार्यकारी समिति के सदस्य अनिर्बान गांगुली ने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा है कि बड़ी संख्या में पुलिस और ऊपर के कुछ अधिकारी तृणमूल नेतृत्व के सामने झुकते हैं और तृणमूल पार्टी के लोगों की तरह काम करते हैं, जहां राजनीतिक और आर्थिक ताकत इन बलवान लोगों के हाथों में है. शेख शाहजहां और उनके आदमियों द्वारा अत्याचार की घटनाओं की कभी रिपोर्ट नहीं हुई या उन पर ध्यान नहीं दिया गया.

इस बात की राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की अध्यक्ष रेखा शर्मा के कमेंट से भी पुष्टि होती है.

रेखा शर्मा ने सोमवार को एक्स पर पोस्ट किया था कि उनकी टीम भी ग्रामीण गुंडों और पुलिस से समान रूप से भयभीत हैं. 

कोर्ट ने खुद मामले का नोटिस लिया

जिन महिलाओं ने हाल ही में आवाज उठाई उनको इसके गंभीर दुष्परिणाम भुगतने पड़े. विपक्षी पार्टी बीजेपी इस मामले में कार्रवाई की मांग कर रही है और प्रदर्शन कर रही है.

कलकत्ता हाई कोर्ट ने संदेशखाली मामले का खुद ही नोटिस लिया था. 

सिर्फ बलात्कार के ही नहीं, और भी गंभीर आरोप:

यौन उत्पीड़न और शोषण के आरोपों के अलावा, तृणमूल के शेख शाहजहां और उनके गुर्गों पर भूमि अधिग्रहण और सामाजिक-आर्थिक शोषण के भी आरोप हैं.

शेख शाहजहां वही व्यक्ति है, जिस पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारी कथित राशन घोटाले के आरोप में 5 जनवरी को छापेमारी करने जा रहे थे. हालांकि, रास्ते में ही उन पर सैकड़ों लोगों की भीड़ ने हमला कर दिया था. तब से वह फरार है.

गुंडागर्दी के आगे बेबसी

पश्चिम बंगाल की राजनीति में गुंडों का बहुत बड़ा दखल बताया जाता है. एक बंगाली लेखिका ने कहा, "ये गलत काम सरकारी अफसरों, सत्ताधारी पार्टी के सदस्यों और गुंडों के बीच गठजोड़ का नतीजा हैं."

यह गठजोड़ 1980 के दशक में वामपंथी सरकार के दौरान बढ़ा. बताया जाता है कि शेख शाहजहां जैसे लोग बांग्लादेश से गैर-हिंदुओं को सीमा पार लाते हैं, उन्हें राशन कार्ड, आधार कार्ड और पासपोर्ट जैसे स्थानीय पहचान दस्तावेजों में मदद करते हैं ताकि वे जल्दी से भारत में बस सकें.

तृणमूल सरकार द्वारा दी गई हर तरह की स्वायत्तता ने शेख शाहजहां जैसे लोगों को जमीन हड़पने में माहिर बना दिया. उन्होंने स्थानीय प्रशासन को पूरी तरह से अपने अधीन कर लिया."

कथित यौन शोषण की शुरुआत कब हुई?

इस बारे में बात करते हुए अनिरबान गांगुली ने इंडिया टुडे को बताया, "मेरा मानना है कि यौन शोषण की यह घटना पिछले दशक से चल रही हो सकती है. यह बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को आतंकित करने के लिए समुदाय के नेताओं का इस्तेमाल करने का एक तरीका है. इस तरह के पीड़ितीकरण को बंगाल में [स्वतंत्रता-पूर्व] मुस्लिम लीग के दिनों में देखा गया था. अब वही पैटर्न देखा जा रहा है."

वहीं, कोलकाता के एक वरिष्ठ पत्रकार इस मामले को सांप्रदायिक के बजाय वर्ग-आधारित उत्पीड़न के रूप में देखते हैं. अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं का आतंकित करना इस क्षेत्र में ताकत बनाए रखने का एक तरीका है."

संदेशखाली के महिलाओं के हालिया विरोध प्रदर्शनों ने शेख शाहजहां और राजनीतिक-अपराधी सांठगांठ के काले कारनामों को उजागर किया. इससे पता चला कि उनके द्वारा चलाया जा रहा शोषणकारी तंत्र उम्मीद से कहीं ज्यादा बड़ा और गहरा है.