Bhopal Union Carbide Plant: मध्य प्रदेश के तारापुर में 1984 की भीषण भोपाल गैस त्रासदी की यादें एक बार फिर ताजा हो रही हैं, लेकिन इस बार संकट और भी गहरा है. अब, भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के प्लांट से निकला जहरीला कचरा यहां जलाया जा रहा है, जिससे निकलने वाला धुआं लोगों की जिंदगी को मुश्किल बना रहा है. तारापुर के ग्रामीणों को खांसी, सांस लेने में तकलीफ और सिरदर्द जैसी समस्याएं शुरू हो गई हैं. इसके अलावा, इस प्रदूषण का असर सिर्फ तारापुर पर नहीं, बल्कि आसपास के एक करोड़ से ज्यादा लोगों की सेहत पर पड़ने का खतरा है.
तारापुर, एक छोटा सा गांव है, जहां लगभग 4500 लोग रहते हैं. लेकिन अब यह गांव एक गंभीर खतरे का सामना कर रहा है. एमपी हाई कोर्ट के आदेश पर, भोपाल के यूनियन कार्बाइड प्लांट से 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा यहां भेजा गया है. इस कचरे को जलाने और जमीन में दबाने का काम किया जा रहा है, लेकिन इससे निकलने वाला धुआं गांव में रहने वाले लोगों के लिए मुश्किलें बढ़ा रहा है. लोगों ने आंखों में जलन, सिरदर्द, काली खांसी और सांस लेने में तकलीफ जैसी शिकायतें शुरू कर दी हैं.
इस कचरे को री सस्टेनेबिलिटी नामक एक कंपनी द्वारा जलाया जा रहा है. इस कंपनी में 80% हिस्सेदारी अमेरिका की प्राइवेट इक्विटी कंपनी KKR की है. कचरे को जलाने के बाद उसका प्रभाव लंबे समय तक रहने का खतरा है. इसमें से निकलने वाले जहरीले धुएं के कारण गांव में अजीब सी गंध महसूस हो रही है, जो सल्फर और धुएं का मिश्रण है.
1984 में भोपाल गैस त्रासदी में यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक प्लांट से मिथाइल आइसोसायनेट गैस लीक हो गई थी, जिससे हजारों लोगों की मौत हो गई थी. अब, उसी जहरीले कचरे को तारापुर में जलाया जा रहा है, जिससे लोग फिर से वही भयावह अनुभव महसूस कर रहे हैं. इंदौर के वरिष्ठ कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर एसएस नय्यर ने इसे धीमे भोपाल कांड जैसा बताया है और चेतावनी दी है कि इससे स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं.
तारापुर के ज्यादातर लोग पीथमपुर के औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर हैं. ज्योति मालतो (बदला हुआ नाम), जो प्लांट से महज 100 मीटर दूर रहती हैं, बताती हैं कि कचरा जलाने के बाद से उनके सिर में दर्द, खांसी और आंखों में जलन हो रही है. उनके अनुसार, बच्चे, बूढ़े और जानवर सभी प्रभावित हो रहे हैं. कुछ परिवारों ने तो अपनी गायों को खो दिया है.
हालांकि, राज्य सरकार और मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस खतरे से इनकार किया है और लोगों को समझाने की कोशिश की है कि स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन ग्रामीणों का डर लगातार बढ़ रहा है. लोगों को सरकार की बातें कोई राहत नहीं दे रही हैं, और अब इस मुद्दे पर सार्वजनिक संघर्ष और विरोध तेज हो गया है.
एमपीपीसीबी और अन्य पर्यावरण संगठनों द्वारा लगातार इस मामले पर नजर रखी जा रही है, लेकिन बहुत से सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं. लोगों को चिंता है कि यह जहरीला कचरा फिर से लंबे समय तक उनकी सेहत पर असर डाल सकता है, जैसा कि भोपाल गैस त्रासदी के बाद हुआ था.