Kolhapuri Chappal: इटली की मशहूर फैशन ब्रांड प्राडा आखिरकार कोल्हापुरी चप्पलों पर उठे विवाद के बाद चुप्पी तोड़ दी है और माना है कि उनकी नई Spring-Summer 2026 Men’s Collection में दिखाई गई चप्पलें भारत की पारंपरिक हस्तशिल्प से प्रेरित हैं. यह कबूलनामा तब आया है जब फैशन शो में दिखाए गए डिजाइन को लेकर भारत में सांस्कृतिक अपमान और GI अधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा गरमा गया था.
दरअसल, कुछ दिन पहले Prada ने अपने शो नोट्स में इन चप्पलों को केवल लेदर सैंडल कहा था, जिसमें भारत या कोल्हापुरी का कोई जिक्र नहीं किया गया था. इस पर महाराष्ट्र के पारंपरिक कारीगरों और फैशन विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति जताई थी. इसके बाद महाराष्ट्र चेंबर ऑफ कॉमर्स (MACCIA) ने Prada को पत्र लिखा, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि यह डिजाइन Kolhapuri चप्पलों की नकल है, जिसे 2019 में भारत सरकार ने GI टैग भी दिया है.
प्राडा की तरफ से आए जवाब में कहा गया, 'हम मानते हैं कि यह डिजाइन भारत के पारंपरिक हस्तनिर्मित चप्पलों से प्रेरित है. हम इस शिल्प की सांस्कृतिक महत्ता को समझते हैं.' हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि अभी यह डिजाइन विकास की प्रक्रिया में है और कोई भी मॉडल अभी कमर्शियल प्रोडक्ट नहीं है.
MACCIA के अध्यक्ष ललित गांधी ने स्पष्ट कहा कि Kolhapuri चप्पलें भारतीय सांस्कृतिक विरासत की पहचान हैं और अगर अंतरराष्ट्रीय ब्रांड इसे अपनाते हैं तो स्थानीय कारीगरों को इसका श्रेय और आर्थिक लाभ मिलना चाहिए. उन्होंने प्राडा से सहयोग और उचित मुआवजे की भी मांग की है.
प्राडा ने भी अपनी कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी हेड Lorenzo Bertelli के माध्यम से जवाब दिया कि वे स्थानीय कारीगरों से संवाद करने और संवेदनशील डिजाइन प्रक्रिया अपनाने के लिए तैयार हैं, जैसा कि उन्होंने अन्य देशों के शिल्प के साथ पहले किया है.
12वीं सदी में कर्नाटक के राजा बिज्जल और उनके मंत्री बसवन्ना ने चर्मकारों को सामाजिक मान्यता दिलाने की पहल की थी. 20वीं सदी में छत्रपति शाहू महाराज के समय कोल्हापुरी चप्पलों का व्यापार शुरू हुआ. यह चप्पलें हाथ से बनी होती हैं और इन्हें पहनने पर कुछ समय बाद ये पैरों के आकार में ढल जाती हैं. कोल्हापुरी चप्पलें आज भी टिकाऊ, आरामदायक और टिकाऊ फैशन का उदाहरण हैं.