पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने 1972 के शिमला समझौते को “मृत दस्तावेज” करार देते हुए कहा, “शिमला समझौता अब एक मृत दस्तावेज बन चुका है. हम 1948 की स्थिति पर वापस आ गए हैं.” उन्होंने नियंत्रण रेखा (LoC) को प्रथम भारत-पाक युद्ध की युद्ध विराम रेखा बताया और दावा किया कि भारत द्वारा 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने के बाद यह समझौता अप्रासंगिक हो गया है. आसिफ ने यह भी कहा, “सिंधु जल संधि स्थगित हो या नहीं, शिमला समझौता पहले ही खत्म हो चुका है.” यह बयान भारत-पाक तनाव और 22 अप्रैल 2025 को पाहलगाम में 26 पर्यटकों की हत्या के बाद आया.
पाक विदेश मंत्रालय का खंडन
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को आसिफ के बयान का खंडन करते हुए स्पष्ट किया कि शिमला समझौते सहित भारत के साथ किसी भी द्विपक्षीय समझौते को रद्द करने का कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया गया है. ‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ से बात करते हुए एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “सिंधु जल संधि को स्थगित करने के भारत के फैसले पर आंतरिक चर्चा हुई, लेकिन दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संधियों को रद्द करने की कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई है. फिलहाल, किसी भी द्विपक्षीय समझौते को समाप्त करने का कोई औपचारिक निर्णय नहीं है. शिमला समझौते सहित मौजूदा द्विपक्षीय समझौते प्रभावी रहेंगे.”  
शिमला समझौते का ऐतिहासिक महत्व
1972 में इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने शिमला में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जो 1971 के युद्ध के बाद हुआ, जिसमें पाकिस्तान के 90,000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया और बांग्लादेश बना. समझौते में तय हुआ कि कश्मीर सहित विवादों का समाधान आपसी बातचीत से होगा, न कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर.  
सिंधु जल संधि पर तनाव
1960 की सिंधु जल संधि के तहत भारत और पाकिस्तान के बीच नदियों का जल बंटवारा हुआ. भारत ने मानवीय आधार पर इस संधि का कभी उल्लंघन नहीं किया, लेकिन पाहलगाम हमले के बाद इसे निलंबित कर दिया.