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India Daily

बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना को सुनाई गई 6 महीने की सजा, तख्तापलट के बाद कोर्ट का बड़ा फैसला

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अदालत की अवमानना के मामले में दोषी ठहराया गया है और छह महीने की जेल की सजा सुनाई गई है. यह फैसला अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण की तीन सदस्यीय पीठ ने सुनाया. यह पहली बार है जब शेख हसीना को किसी कानूनी मामले में दोषी करार दिया गया है.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
Sheikh Hasina
Courtesy: Social Media

बांग्लादेश की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ सामने आया है. देश की पूर्व प्रधानमंत्री और आवामी लीग की प्रमुख शेख हसीना को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण  ने अदालत की अवमानना के मामले में छह महीने की जेल की सजा सुनाई है. यह पहली बार है जब शेख हसीना को किसी मामले में सजा मिली है, जिससे देश की सियासत में हलचल मच गई है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शेख हसीना पर आरोप था कि उन्होंने एक चल रहे मामले पर सार्वजनिक टिप्पणी की, जिससे न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंची. उन्होंने कथित तौर पर युद्ध अपराधों से जुड़े एक मामले में न्यायाधीशों की निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे. इस बयान को न्यायालय ने गंभीरता से लिया और उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की गई. सुनवाई के बाद तीन सदस्यीय पीठ ने उन्हें दोषी ठहराते हुए छह महीने की सजा सुनाई.

न्यायाधिकरण का फैसला

यह फैसला बुधवार को सुनाया गया, जिसकी अध्यक्षता जस्टिस मोहम्मद गुलाम मुर्तजा मजूमदार ने की. उनके साथ पीठ में दो अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश भी शामिल थे. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि शेख हसीना का बयान "न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने वाला और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को कमजोर करने वाला" था. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि देश में कानून सभी पर समान रूप से लागू होता है चाहे वह आम नागरिक हो या पूर्व प्रधानमंत्री. 

शेख हसीना की प्रतिक्रिया

शेख हसीना की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन उनकी पार्टी आवामी लीग ने इस फैसले को "राजनीतिक साजिश" करार दिया है. पार्टी नेताओं का कहना है कि यह फैसला विपक्षी ताकतों के दबाव में लिया गया है और इसका उद्देश्य हसीना की छवि को धूमिल करना है.

देश और दुनिया की प्रतिक्रिया

बांग्लादेशी मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह फैसला देश की राजनीति में बड़ा प्रभाव डालेगा. कुछ विशेषज्ञ इसे न्यायिक स्वतंत्रता की जीत मानते हैं, जबकि कुछ इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई के तौर पर देख रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस मामले को बारीकी से देखा जा रहा है, खासकर मानवाधिकार संगठनों और लोकतांत्रिक देशों की नजर इस पर बनी हुई है.