Resort Politics: देश के अलग-अलग राज्यों में सरकार बचाने या गिराने के लिए इन दिनों रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का खेल देखने को मिल रहा है. अभी हाल में ही झारखंड में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला जहां झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सरकार बचाने के लिए रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का सहारा लिया.
चंपई सोरेन का नाम विधायक दल के नेता के रूप में चुनने के बाद JMM ने किसी जोड़-तोड़ की राजनीति से बचने के लिए अपने 35 विधायकों को हैदराबाद के एक रिसॉर्ट में शिफ्ट कर दिया था जहां पर एक दिन के किराए पर लाखों खर्च होने की खबर सामने आई. इन विधायकों को तेलंगाना कैबिनेट में मंत्री पूनम प्रभाकर और कांग्रेस महासचिव दीपा दासमुंशी की देखरेख में रखा गया था.
यह पहला मौका नहीं था जब सरकार बचाने के लिए यह कदम उठाया गया हो बल्कि सरकार बचाने के लिए पहले भी कई बार विधायकों को रिसॉर्ट में रखा गया है और एक दिन रखने के लिए करीब 70 लाख रुपए तक खर्च भी किए गए हैं. ऐसे में अगर विधायक फ्लोर टेस्ट वाले दिन अपनी बात माने को आपकी सरकार नहीं तो पैसे बेकार. आइए समझते हैं कि कैसे रिसॉर्ट पॉलिटिक्स राजनीति की रीढ़ की हड्डी बनती जा रही है.
भारत में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स कल्चर की शुरुआत 1982 में हुई थी. 1982 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था. बहुमत न होने के चलते बीजेपी और इनेलो ने गठबंधन कर लिया था. इस गठबंधन के बाद बीजेपी इनेलो के पास 48 सदस्य थे. गठबंधन के बाद भी इनेलो को इस बात का डर था कि उनके विधायक टूट न जाए जिसके बाद देवीलाल ने दिल्ली के एक होटल में 48 विधायकों को शिफ्ट कर दिया था. हालांकि, बाद में होटल से विधायक भाग गए थे और देवीलाल सीएम नहीं बन पाए. इसके बाद 36 सदस्यों के साथ कांग्रेस ने सरकार बना ली और भजन लाल राज्य के नए मुख्यमंत्री बने.
रिसॉर्ट पॉलिटिक्स में दो शब्दों का मेल है, पहला रिसॉर्ट यानी की एक बड़ा होटल और दूसरा पॉलिटिक्स यानी राजनीति. भारत में ज्यादातर रिसॉर्ट दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई जैसे शहरों में हैं और यहां से चलता है रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का पूरा सिस्टम. रिसॉर्ट पॉलिटिक्स को लेकर कांग्रेस के दिग्गज नेता जीतू पटवारी ने कहा था कि रिसॉर्ट में हर तरह की सुविधाएं होती है और यहां विधायकों को रखा जाता है.
रिसॉर्ट में जब विधायकों को रखा जाता है तो इस दौरान उन्हें उनका मोबाइल फोन भी यूज नहीं करने दिया जाता है और सभी पर कड़ी निगरानी रखी जाती है. जीतू पटवारी की मानें तो रिसॉर्ट में विधायकों को सुरक्षित रखने के लिए पूरी तरह से रिसॉर्ट की घेराबंदी की जाती है. रिसॉर्ट के बाहर पुलिस का पहरा होता है और दूसरे स्तर पर सुरक्षा की जिम्मेदारी पर्सनल गार्ड्स पर होती हैं. आइए जानते हैं रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का सहारा लेकर कब-कब सरकार गिराई गई या बचाई गई.
साल 1983 में जनता पार्टी ने कर्नाटक में जीत दर्ज की और रामकृष्ण हेगड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसके कुछ समय बाद ही राजभवन ने उन्हें बहुमत साबित करने को कहा. इसके बाद पार्टी में टूट की आशंका होने पर हेगड़े ने अपने 80 विधायकों को बेंगलुरु के एक रिसॉर्ट में शिफ्ट कराकर अपनी सरकार बचाई थी.
आंध्र प्रदेश में 1984 में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स देखने को मिली थी जब प्रदेश के सीएम एनटी रामाराव अमेरिका में थे और उन्हीं की पार्टी के एन भास्कर राव ने सरकार गिराकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. इस बात की भनक लगने के बाद एनटीआर वापस भारत लौटे और फिर अपने लोगों की मदद से सभी विधायकों को दिल्ली शिफ्ट कर दिया. इसके बाद भास्कर राव को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू ने रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का सहारा लिया और एनटीआर की सरकार गिरा दी थी. जानकारी के अनुसार उस वक्त विधायक दल की बैठक में शामिल होने के लिए जब एनटीआर आए तो नायडू ने बगावत कर दी. इसके बाद एनटीआर बैकफुट पर आ गए और नायडू ने सरकार बना ली.
ये कहानी है 1998 की जब रातों रात यूपी के राज्यपाल ने कल्याण सिंह की सरकार को भंग कर जगदंबिका पाल को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया. इसके बाद बीजेपी ने अपने सभी विधायकों को एक रिसॉर्ट में शिफ्ट कर दिया. इसके बाद जगदंबिका पाल ने अपने हाथ खड़े कर दिए और कल्याण सिंह फिर से मुख्यमंत्री बने.
साल 2002 में महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार बचाने के लिए विलासराव ने अपने विधायकों को पहले इंदौर और फिर मैसूर शिफ्ट कर दिया था और इस तरह से महाराष्ट्र में सरकार गिरने से बच गई थी.
कुमारस्वामी की सरकार गिराने में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का इस्तेमाल किया गया था. कांग्रेस विधायक रमेश जर्किहोली के नेतृत्व में 18 विधायकों ने पार्टी से बगावत की और महाराष्ट्र के एक होटल में रुके और फिर 18 विधायकों के बगावती तेवर के चलते कुमारस्वामी की सरकार गिर गई.
रिसॉर्ट पॉलिटिक्स के जरिए मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार गिराई गई. ज्योतिरादित्य के समर्थन में रहे 27 विधायकों को बेंगलुरु के एक रिसॉर्ट में शिफ्ट कर दिया गया था और फिर सरकार अल्पमत में आ गई जिसके बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई.
साल 2020 में सचिन पायलट ने अशोक गहलोत के खिलाफ ही बगावत छेड़ दी थी. इसके बाद अशोक गहलोत ने उदयपुर के एक रिसॉर्ट में अपने 101 विधायकों को रखकर सरकार बचाई थी.
साल 2022 में हेमंत सोरेन की सरकार गिरने की चर्चा होने पर सभी विधायकों को रायपुर के एक रिसॉर्ट में शिफ्ट किया गया. इसके बाद हेमंत सोरेन से सभी विधायकों को रांची बुलाकर विश्वासमत पेश कर अपनी सरकार बचाई.
साल 2022 में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स के चलते उद्धव ठाकरे की भी कुर्सी चली गई थी. दरअसल, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के 30 विधायकों ने बगावत कर गुजरात और फिर गुवाहाटी के रिसॉर्ट में शिफ्ट हो गए इसके बाद उद्धव सरकार गिर गई.