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क्या यूपी में खेल खराब करेगा अखिलेश का PDA, कैसे BJP तोड़ेगी चुनावी चक्रव्यूह

Loksabha Election 2024: लोकसभा चुनावों को देखते हुए हर राजनीतिक पार्टी अपनी जीत की तैयारियों में जुटी हुई है तो वहीं पर यूपी में समाजवादी पार्टी PDA फॉर्मूले को प्रमोट कर रही है. आखिर क्या है पीडीए और कैसे अखिलेश यादव इसके जरिए बीजेपी को हराने की बात कर रहे हैं, आइए जानते हैं.

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Vineet Kumar
Akhilesh Yadav Yogi Adityanath

Loksabha Election 2024: समाजवादी पाार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने हाल ही में दावा किया कि उत्तर प्रदेश के ज्यादातर दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समूह से आने वाले लोग हमारे साथ हैं और आगामी लोकसभा चुनावों में बीजेपी के पिछले सभी समीकरण और फॉर्मूले को फेल कर देंगे. अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (ट्विटर) पर एक सर्वे का हवाला देते हुए ये दावा किया था और बताया था कि लोकसभा चुनावों में इस बार बीजेपी का हिंदु्त्व कार्ड भी काम नहीं आएगा.

आखिर क्या है पीडीए फैक्टर

उल्लेखनीय है कि अखिलेश यादव ने जून 2023 में पहली बार पीडीए शब्द का इस्तेमाल किया था. अखिलेश यादव के पीडीए का मतलब पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समूह के लोगों का साथ आकर वोट देना है. इसे वो कई मौकों पर इस्तेमाल कर चुके हैं और यह भी कह चुके हैं कि पीडीए ही एनडीए को हराएगा. इसी को ध्यान में रखते हुए वो लोकसभा चुनाव का नरेटिव तैयार कर रहे हैं. अखिलेश ने इसको लेकर एक नारा भी दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि PDA ने ली है अंगड़ाई, अब भाजपा की शामत आई.

बीजेपी पर भारी पड़ेगा पीडीए फैक्टर

अखिलेश यादव ने अपने ट्वीट में एक सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि हमने पीडीए में विश्वास जताने वाले लोगों का एक सर्वे कराया है और 90 प्रतिशत लोगों ने इस पर विश्वास जताया है. इस सर्वे के अनुसार 49 प्रतिशत पिछड़े, 16 प्रतिशत दलित, 21 प्रतिशत अल्पसंख्यक और 4 प्रतिशत ऊंची जाति के कम आय वाले लोगों ने पीडीए पर विश्वास जताया है जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं. अखिलेश यादव ने इसी सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि पीडीए फैक्टर के चलते ही न तो बीजेपी कोई जोड़-घटा कर सकती है और न ही कोई समीकरण बना सकती है. इस बार बीजेपी के पिछले सभी फॉर्मूले फेल हो जाएंगे और यही वजह है कि बीजेपी उम्मीदवारों का चयन करने में इतना पीछे चल रही है. बीजेपी को चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार ही नहीं मिल रहे हैं और कोई भी उसकी टिकट पर लड़ कर हारना नहीं चाहता है.

जानें कैसा है सपा का पारंपरिक वोटर

समाजवादी पार्टी के पारंपरिक वोटर्स की बात करें तो इसमें ज्यादातर लोग यूपी के यादव और मुस्लिम समुदाय से आते हैं.हालांकि इसके बावजूद पार्टी को साल 2014 के बाद से लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां पार्टी को 80 में से सिर्फ 5 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं 2017 के विधानसभा चुनावों में 403 सीटों में से सिर्फ 47 पर ही जीत मिली थी. 2019 लोक सभा चुनावों में पार्टी को फिर से 5 सीटों पर ही जीत मिली है तो वहीं 2022 विधानसभा चुनावों में पार्टी सिर्फ 111 ही जीत सकी थी.

आखिर क्या है अखिलेश का पीडीए प्लान

पीडीए के जरिए अखिलेश का उद्देश्य अपने पारंपरिक वोटर्स को बढ़ाकर दलित, ओबीसी (यादवों के अलावा अन्य जाति) और अल्पसंख्यकों (मुस्लिमों के अलावा अन्य) तक ले जाना है. अखिलेश ने अगड़ी जाति की पिछड़ी जाति से आने वाले लोगों को भी पीडीए में शामिल करने की बात कही है जो कि पारंपरिक रूप से बीजेपी के वोटर रहे हैं. एसपी चीफ के अनुसार पीडीए समाज में रहने वाले समुदायों के बीच इंद्रधनुषीय रिश्ते को दर्शाता है जो कि ज्यादातर लोगों तक अपनी पहुंच बनाता है.

सपा नेताओं का मानना है कि दलितों का एक धड़ा बीएसपी से उदास नजर आ रहा है क्योंकि बीएसपी सुप्रीमो मायावती खुलकर बीजेपी के खिलाफ नहीं बोलती हैं. उनका दावा है कि दलित समुदाय के लोग बीएसपी का विकल्प ढूंढ रहे हैं जो कि समाजवादी पार्टी के लिए बड़ा मौका साबित हो सकता है और वो उन वोटर्स को अपने पाले में ला सकते हैं.

जातिगत जनगणना से भी लुभाने की कोशिश

अखिलेश यादव लगातार प्रदेश में जातीय जनगणना की बात करते रहते हैं ताकि सभी को आरक्षण में बराबरी का हक मिल सके. अखिलेश यादव जातिगत जनसंख्या के आधार पर सरकारी योजनाओं और जनकल्याणकारी योजनाओं में आरक्षण की बात करते रहे हैं. इतना ही नही सपा सुप्रीमो बीजेपी पर लगातार आरक्षण खत्म करने की साजिश का भी आरोप लगाते रहे हैं. वह इन बातों का हवाला देकर लगातार पीडीए के अंतर्गत आने वाले समुदायों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं.

जानें क्या सपा का चुनावी जीत का समीकरण

सपा के हिसाब से 2024 के लोकसभा चुनावों में मुस्लिम समुदाय के वोटर्स बीजेपी को हराने के लिए उसके साथ खड़े होंगे लेकिन एनडीए को हराने के लिए समाजवादी पार्टी को मुस्लिम वोटर्स से ज्यादा की दरकार है. उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में करीब 20 प्रतिशत जनसंख्या मुसलमानों की है और उनका पूर्ण समर्थन ही 2022 विधानसभा चुनावों में उनके अच्छे प्रदर्शन का कारण रही थी. हालांकि पिछले कुछ चुनावों में गैर-यादव ओबीसी वोट ने चुनावों में अहम भूमिका निभाई है और बीजेपी की जीत की चाभी बने हैं. 

एक अनुमान के अनुसार यूपी की 40 से 50 प्रतिशत जनसंख्या ओबीसी वोटर्स से बनी है जिसमें से करीब 8-10 प्रतिशत वोटर्स ही यादव हैं. ऐसे में अखिलेश को अपने पारंपरिक वोटर्स और समर्थकों के दायरे को बढ़ाने की दरकार है जिसमें गैर-यादव ओबीसी भी शामिल हों. वहीं यूपी की जनसंख्या में 20 प्रतिशत वोटर्स दलित वर्ग से आते हैं और वो पारंपरिक रूप से बीएसपी के वोटर्स रहे हैं. बीएसपी की बात करें तो पार्टी लंबे समय से अपना जनाधार खोती नजर आ रही है और यही वजह है कि कुछ वोटर्स इससे निराश होकर विकल्प ढूंढते नजर आ रहे हैं.

बीजेपी और इंडिया गठबंधन की चुनौतियां

जहां एक ओर अखिलेश यादव पीडीए के मुद्दे को भुना कर यूपी में बीजेपी का सियासी समीकरण बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी को पूरी उम्मीद है कि उसके वोटर्स ऐसे लोक लुभावन वादों में नहीं फंसेंगे. बीजेपी नेताओं ने साफ किया है कि अखिलेश यादव पहले भी इस तरह की बात कर चुके हैं लेकिन चुनावों में उसका रत्ती भर भी असर नहीं पड़ा है. जहां सपा पीडीए को प्रमोट करने में लगी है तो वहीं बीजेपी को प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के काम पर पूरा भरोसा है और उन्हें यकीन है कि उनकी लोकप्रियता बीजेपी को जीत दिलाएगी. इसके साथ ही राम मंदिर के बन जाने के बाद बीजेपी पूरी तरह से इस मुद्दे का फायदा लोकसभा चुनावों में भुनाने की कोशिश करती नजर आ रही है.

समाजवादी पार्टी के लिए बीजेपी की चुनौती के साथ ही इंडिया गठबंधन भी चुनौती बना हुआ है. जहां पर बीएसपी ने सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है तो वहीं पर कांग्रेस और सपा के बीच सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पा रही है. ऐसे में सिर्फ पीडीए के फॉर्मूले से सपा के लिए बीजेपी का चुनावी खेल बिगाड़ पाना कितना सच हो पाएगा ये समय ही बता पाएगा.