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India Daily

बाइक पर घूमकर कभी मनचलों को सबक सिखाती थी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, जानें कैसे आंतकी आरोपों का हुई शिकार और कैसी बनी साध्वी?

मालेगांव ब्लास्ट केस में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को 17 साल बाद अदालत से क्लीन चिट मिल गई है. अदालत ने सबूतों के अभाव में उन्हें बरी किया. प्रज्ञा, जो कभी भिंड की सड़कों पर लड़कियों के हक में खड़ी होती थीं, अब अपनी राजनीतिक और सामाजिक पहचान के साथ फिर से चर्चा में हैं.

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Edited By: Km Jaya
Sadhvi Pragya Thakur
Courtesy: Social Media

Sadhvi Pragya Thakur: 2008 के मालेगांव ब्लास्ट मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत सभी 7 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है. यह फैसला उस महिला के लिए निर्णायक मोड़ है, जिसने लगभग 17 वर्षों तक आतंकवाद के आरोप का दंश झेला और न्याय की प्रतीक्षा की. अदालत ने कहा कि यह साबित नहीं हुआ कि धमाके में प्रयुक्त मोटरसाइकिल प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर थी या धमाका उसी से हुआ था.

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का जन्म मध्य प्रदेश के भिंड में 2 फरवरी 1970 को में हुआ. उनके पिता चंद्रपपाल सिंह एक प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य थे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे. युवावस्था में जींस-टीशर्ट पहनने वाली प्रज्ञा लड़कियों के अपहरण और छेड़छाड़ के खिलाफ खड़ी होती थीं. उन्होंने एमए और बीपीएड की पढ़ाई के बाद 'जय वंदे मातरम जनकल्याण समिति' बनाई, जिसका उद्देश्य 'लव जिहाद' जैसे मामलों में लड़कियों को बचाना था.

विश्व हिंदू परिषद की दुर्गा वाहिनी की सदस्य 

प्रज्ञा ठाकुर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और विश्व हिंदू परिषद की दुर्गा वाहिनी की सदस्य भी रहीं. बाद में स्वामी अवधेशानंद गिरी से प्रेरणा लेकर उन्होंने साध्वी का जीवन अपनाया और 'राष्ट्रीय जागरण मंच' की स्थापना की. इसी दौरान 2008 में महाराष्ट्र एटीएस ने उन्हें मालेगांव धमाके के आरोप में गिरफ्तार किया.

मोटरसाइकिल में विस्फोटक 

29 सितंबर 2008 को मालेगांव की एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल में लगे विस्फोटक से धमाका हुआ, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक घायल हुए. आरोप था कि जिस मोटरसाइकिल में विस्फोटक था, वह प्रज्ञा सिंह के नाम पर पंजीकृत थी. हालांकि, लंबे कानूनी संघर्ष और सबूतों की कमी के कारण अब अदालत ने उन्हें बरी कर दिया है.

कैंसर जैसी गंभीर बीमारी 

इस दौरान वह जेल में कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से भी जूझीं और धीरे-धीरे स्वस्थ होकर राजनीतिक जीवन में लौटीं. अप्रैल 2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट से उन्हें जमानत मिली और 2019 में उन्होंने भाजपा जॉइन कर भोपाल लोकसभा सीट से दिग्विजय सिंह को हराकर संसद पहुंचीं. हालांकि, 2024 में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया.