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India Daily

Malegaon Blast Case: ATS के सबूतों की NIA कोर्ट में कैसे उड़ी धज्जियां, मालेगांव ब्लास्ट में क्यों फेल हुई 3-4 एजेंसियां

एनआईए की विशेष अदालत ने 2008 मालेगांव विस्फोट मामले में सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया. अदालत ने एटीएस द्वारा पेश किए गए सभी प्रमुख सबूतों को खारिज कर दिया और कहा कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता. अदालत ने ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे शब्दों की आलोचना करते हुए इसे राजनीति प्रेरित माना.

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Edited By: Km Jaya
Sadhvi Pragya Thakur
Courtesy: Social Media

2008 के मालेगांव धमाके मामले में मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने 31 जुलाई को फैसला सुनाते हुए सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया. इनमें बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, ले. कर्नल प्रसाद पुरोहित, समीर कुलकर्णी, रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय रहीरकर और सुधाकर द्विवेदी शामिल हैं. कोर्ट ने कहा कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता और एटीएस द्वारा दिए गए किसी भी सबूत की पुष्टि नहीं हो सकी.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 29 सितंबर 2008 को नासिक के मालेगांव में रमजान के दौरान एक मुस्लिम बाहुल्य इलाके में विस्फोट हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत और 100 से अधिक घायल हो गए थे. महाराष्ट्र एटीएस ने जांच कर दावा किया था कि धमाका एक एलएमएल फ्रीडम बाइक में लगे आईईडी से किया गया, जो साध्वी प्रज्ञा के नाम रजिस्टर्ड थी. बाद में इस मामले में यूएपीए और मकोका जैसी धाराएं लगाईं गईं.

नहीं मिला कोई ठोस सबूत

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जिस मोटरसाइकिल के आधार पर साध्वी प्रज्ञा को आरोपी बनाया गया, उसके मालिकाना हक का कोई ठोस सबूत नहीं मिला. आरडीएक्स कहां से आया, इस पर भी कोई विश्वसनीय प्रमाण प्रस्तुत नहीं किए गए. ले. कर्नल पुरोहित और अन्य आरोपियों के खिलाफ साजिश रचने का कोई साक्ष्य कोर्ट में टिक नहीं सका.

एटीएस ने जल्दबाजी में आरोप

2011 में जांच एनआईए को सौंप दी गई थी. 2016 में एनआईए ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल कर मकोका हटा लिया और माना कि एटीएस ने जल्दबाजी में आरोप लगाए थे. इसके बावजूद यूएपीए की धाराओं में ट्रायल जारी रहा. आखिर में कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में विफल रहा.

विवादित प्रकरण पर न्याय की मुहर 

कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि किसी धर्म को आतंकवाद से जोड़ना न्यायोचित नहीं है और ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे राजनीतिक शब्दों को खारिज करते हुए कहा कि कानून सबूतों के आधार पर चलता है, भावनाओं के नहीं. इस ऐतिहासिक फैसले ने 17 साल पुराने एक विवादित प्रकरण पर न्याय की मुहर लगाई.