2008 के मालेगांव बम धमाके मामले में विशेष NIA कोर्ट ने सोमवार को एक बड़ा और बड़ा फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया. अदालत ने अपने फैसले में सबसे अहम बात यह कही कि इस मामले में यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) को लागू करने के लिए जरूरी वैधानिक मंजूरी ही नहीं ली गई थी. कोर्ट ने UAPA के तहत दर्ज मामले को तकनीकी आधार पर खारिज करते हुए अभियोजन पक्ष की जांच में कई खामियों की ओर इशारा किया.
विशेष NIA कोर्ट के न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने कहा कि UAPA लगाने के लिए सरकार की मंजूरी आवश्यक होती है, लेकिन इस केस में मंजूरी के दोनों आदेश दोषपूर्ण पाए गए. अदालत ने स्पष्ट किया कि जब कानूनी प्रक्रिया ही पूरी नहीं हुई तो यूएपीए के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. अब हम आपको बताएंगे UAPA क्या कानून है.
UAPA यानी गैरकानूनी गतिविधियां अधिनियम देश का सबसे कठोर कानून माना जाता है, जिसे आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए बनाया गया था. इसकी धारा-15 आतंकवादी गतिविधि को परिभाषित करती है. इसके तहत यदि कोई व्यक्ति भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा या आर्थिक ढांचे को नुकसान पहुंचाने की नीयत से किसी भी तरह की हरकत करता है, तो वह इस कानून के दायरे में आता है.
UAPA के अंतर्गत न्यूनतम 5 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. यदि आतंकी गतिविधि में किसी की जान चली जाती है, तो आरोपी को मृत्युदंड भी दिया जा सकता है. इस कानून की सबसे खास बात यह है कि केवल आशंका या शक के आधार पर भी किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किया जा सकता है.
1967 में लागू किए गए इस कानून को समय-समय पर और सख्त बनाया गया. अब तक छह बार इसमें संशोधन हो चुके हैं. 2019 के संशोधन में सरकार को यह अधिकार भी मिल गया कि वह किसी भी संगठन के साथ-साथ किसी व्यक्ति को भी आतंकी घोषित कर सकती है.
UAPA के तहत राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को यह ताकत है कि वह किसी भी संदिग्ध की संपत्ति को जब्त कर सकती है. यह कानून संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीमित प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य से बनाया गया था, ताकि भारत की अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालने वाली गतिविधियों को समय रहते रोका जा सके.
UAPA को विशेष हालात में लागू किया जा सकता है. हालांकि, इसकी प्रक्रिया और मंजूरी को लेकर कई बार सवाल उठते रहे हैं. कई मामलों में यह देखा गया है कि अभियोजन पक्ष केवल UAPA लगाने के बाद भी आरोपी के खिलाफ मजबूत सबूत पेश नहीं कर पाया. अब जब अदालतों में UAPA की वैधानिक मंजूरी की प्रक्रियात्मक चूक के चलते कई मामले कमजोर पड़ रहे हैं, तो एक बार फिर इस सख्त कानून की व्याख्या और लागू करने की प्रणाली को लेकर चर्चा तेज हो गई है.