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'पलटू' नहीं, BJP के पीछे लट्टू हैं नीतीश, जानें NDA से हाथ मिलाने का सियासी गणित

पिछले 10 साल में चौथी बार पाला बदलकर नीतीश कुमार 9वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. कभी महागठबंधन (राजद, कांग्रेस, वामदल) तो कभी भाजपा के समर्थन से नीतीश कुमार बिहार में मुख्यमंत्री बनते रहे हैं. नीतीश कुमार की इस राजनीतिक चाल को देखते हुए उन्हें पलटीबाज मुख्यमंत्री कहा जाता है, लेकिन सियासी गणित को देखेंगे तो पाएंगे कि नीतीश कुमार की इस राजनीतिक चाल के पीछे बड़ा सियासी गणित है.

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Om Pratap
Bihar Politics

Bihar Politics: बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने एक बार फिर भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के साथ गठबंधन किया है. पिछले एक दशक (10 साल) में ये चौथी बार है जब उन्होंने पाला बदला है. वर्तमान में 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जदयू के 45 विधायक हैं और भाजपा के 78 विधायक हैं, जिससे गठबंधन की संख्या 123 हो गई है, जो जरूरी बहुमत की संख्या 122 से अधिक है. कहा जा रहा है कि राज्य के एक निर्दलीय विधायक का भी उन्हें समर्थन मिल जाएगा. उधर, विपक्ष में मौजूद राजद, कांग्रेस और वाम दलों के कुल विधायकों की संख्या 114 है, जो बहुमत से आठ कम है.

नीतीश कुमार का लोकसभा चुनाव से ठीक पहले I.N.D.I.A गठबंधन को छोड़कर NDA में जाना निश्चित तौर पर विपक्ष के लिए झटका है. दरअसल, राज्य में पिछले कुछ लोकसभा और विधानसभा चुनावों में जदयू का वर्चस्व रहा है. आंकड़ों को देखें तो जदयू और भाजपा के गठबंधन के तहत लड़े गए चुनाव इसकी गवाही देते हैं. हाल के चुनावों की बात करें तो 2019 के आम चुनावों और 2020 के विधानसभा चुनावों में जदयू और भाजपा ने गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था और दोनों ही पार्टियों ने मिलकर बेहतर प्रदर्शन किया था.

लोकसभा चुनाव 2019 के आंकड़ों पर जरा गौर कीजिए

2019 के लोकसभा चुनाव में, बिहार में एनडीए में भाजपा, जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) शामिल थे. राज्य की 40 संसदीय सीटों में से, भाजपा और जद (यू) ने 17 सीटों पर और एलजेपी ने छह सीटों पर चुनाव लड़ा. 54.34% के संयुक्त वोट शेयर के साथ, NDA ने 40 में से 39 सीटें जीत ली. 17 में से एक सीट पर जदयू को हार का सामना करना पड़ा, जबकि भाजपा और एलजेपी ने उन सभी सीटों पर जीत हासिल की, जिन पर उन्होंने चुनाव लड़ा.

वहीं, राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन में कांग्रेस और तीन अन्य छोटे दल शामिल थे, जिन्होंने 31.23% वोट शेयर हासिल करने के बावजूद, एक साथ सिर्फ 1 सीट जीती. कांग्रेस ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसने 1 सीट जीती थी, वहीं राजद ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे एक भी सीट नहीं मिली. वामपंथी दलों ने कुल मिलाकर राज्य की 19 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई. .

राजद को 15.68% वोट मिलने के बावजूद एक भी सीट नहीं मिली, जबकि भाजपा को 24.06% और जदयू को 22.26% वोट मिले.

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इससे पहले 2014 में जेडीयू ने NDA से अलग होकर 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन 16.04% वोट शेयर के साथ सिर्फ 2 सीटें जीतीं. वहीं, NDA यानी भाजपा, एलजेपी और एक अन्य क्षेत्रीय पार्टियों ने जदयू के वोट शेयर के दोगुने से भी अधिक (39.41%) के साथ 31 सीटें जीती थीं. 30.24% वोटों के बावजूद राजद-कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को सिर्फ 7 सीटें मिलीं. 

2009 के लोकसभा चुनाव के नतीजे भी देख लीजिए

वहीं, 2009 का लोकसभा चुनाव भाजपा-जद(यू) गठबंधन ने एक बार फिर बेहतर नतीजे हासिल किए थे. दोनों ने मिलकर 32 सीटें और 37.97% वोट शेयर हासिल किया था. जदयू ने तब जिन 25 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से 20 सीटें हासिल की थीं, जबकि उस समय उसकी सहयोगी भाजपा ने जिन 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से 12 सीटें जीती थीं. कांग्रेस ने बिहार में एक और निराशाजनक प्रदर्शन किया था और जिन 37 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से केवल 2 सीटें जीती थी. कांग्रेस को उस चुनाव में बिहार में 10.26% वोट मिले थे. वहीं, राजद-लोजपा गठबंधन ने 25.81% वोट शेयर के साथ 4 सीटें जीती थीं.

अब जरा बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों पर भी गौर कीजिए

2020 के विधानसभा चुनावों में, एनडीए में भाजपा, जेडीयू, एलजेपी और राज्य की दो छोटी पार्टियां शामिल थीं. गठबंधन ने 243 सदस्यीय सदन में 125 विधायकों और 37.26% वोट शेयर के साथ 122 सीटों के बहुमत के आंकड़े को पार कर लिया. भाजपा 74 सीटों (110 सीटों पर चुनाव लड़ी) और 19.46% वोटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी संख्या में सीटें और वोट शेयर वाली पार्टी के रूप में उभरी. जेडीयू तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी, जिसमें 115 में से 43 सीटें और 15.39% वोट थे, लेकिन यहां गौर करने वाली बात ये कि दूसरी बड़ी पार्टी होने के बावजूद भाजपा ने नीतीश कुमार को उनके छठे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री बना दिया. 

राजद, कांग्रेस और वाम दलों के बीच महागठबंधन गठबंधन ने 2020 के चुनावों में एनडीए को कड़ी टक्कर दी. महागठबंधन को 110 सीटें मिली, जबकि वोट शेयर 37.23% रहा. महागठबंधन की ओर से राजद ने मजबूत प्रदर्शन किया और 144 सीटों पर चुनाव लड़कर 75 सीटों और 23.11% वोट शेयर के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. वहीं, वाम दलों ने 4.64% वोटों के साथ 16 सीटें जीतीं. कांग्रेस गठबंधन में पिछड़ गई और 70 में से केवल 19 सीटों पर 9.48% वोट हासिल जीत हासिल की. 

चुनाव के दो साल बाद ही नीतीश ने मारी पलटी

2020 बिहार विधानसभा चुनाव के दो साल से भी कम समय के बाद नीतीश ने राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन सरकार में शामिल होने के लिए एनडीए छोड़ दिया. 2020 के चुनाव से पहले 2015 के विधानसभा चुनावों में जदयू ने कांग्रेस के साथ-साथ लंबे समय से प्रतिद्वंद्वी राजद के साथ गठबंधन किया था. दरअसल, 2014 में NDA से अलग होने के एक साल बाद ही राज्य में विधानसभा चुनाव हुए थे. लोकसभा चुनाव के बाद जदयू ने महागठंधन के साथ हाथ मिलाया.

2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने 41.84% वोट शेयर हासिल कर 178 सीटों पर जीत हासिल किया. राजद 18.35% वोटों के साथ 80 सीटों के साथ फिर से सबसे बड़ी पार्टी थी. वहीं, जदयू ने 16.83% वोट शेयर के साथ 71 सीटों पर जीत हासिल की. दोनों ही पार्टियों ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में कांग्रेस ने भी अच्छा प्रदर्शन किया और 6.66% वोट शेयर के साथ 41 सीटों में से 27 सीटें जीत लीं. उधर, NDA ने संयुक्त रूप से 34.08% वोट शेयर हासिल कर 58 सीटें जीती. 157 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा ने 53 सीटें जीती थीं. वोट शेयर के मामले में भाजपा 24.42% के साथ सबसे आगे थी.