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दो-दो बार प्रधानमंत्री बनने से किया इनकार, खुद CM रहे, सिर्फ 130 रुपयों के साथ छोड़ दी दुनिया

K Kamraj Congress: कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता रहे के कामराज को किंगमेकर कहा जाता है. दरअसल, कामराज ने दो-दो बार प्रधानमंत्री बनने का मौका खुद से छोड़ दिया.

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India Daily Live
Courtesy: Social Media

भारतीय राजनीति में के कामराज का नाम अपने-आप में बहुत बड़ा रहा है. के कामराज एक ऐसे नेता हुए जिसने अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए बड़े-बड़े मंत्रियों का इस्तीफा तो कराया ही खुद भी मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया. इस नेता का कद ऐसा रहा कि अपने जीवन में दो बार प्रधानमंत्री बनने का मौका आया लेकिन दोनों बार किसी और को आगे कर दिया. दक्षिण भारत से आने वाले के कामराज का मानना था कि जिस नेता को हिंदी या अंग्रेजी भाषा न आती हो उसे इस देश का प्रधानमंत्री ही नहीं बनना चाहिए. आइए आज इन्हीं के कामराज के बारे में विस्तार से जानते हैं जो राजनीति के शिखर पुरुषों में से एक रहे लेकिन बड़े मौकों पर त्याग का उदाहरण दिया.

कुमारस्वामी कामराज यानी के कामराज का जन्म 1903 में तमिलनाडु के एक गरीब परिवार में हुआ था. सिर्फ 16 साल की उम्र में जलियांवाला बाग कांड के बारे में सुनने वाले कामराज ने दो साल बाद महात्मा गांधी को देखा और उन्होंने अपना रास्ता चुन लिया. आजादी के आंदोलन में कूदे कामराज को 1930 में पहली बार जेल की सजा हुई और यहीं से उनके जेल जाने का सिलसिला शुरू हो गया. देश को आजादी मिले तो कामराज 44 साल के थे लेकिन तब तक वह कुंवारे ही थे.

1954 में वह पहली बार मद्रास के मुख्यमंत्री बने. वह उस समय के ऐसे CM थे जिसे अंग्रेजी नहीं आती थी. 9 साल तक मुख्यमंत्री रहे कामराज के कामों के चलते मद्रास एक व्यवस्थित और प्रशासित राज्यों में गिना जाने लगा. साल 1963 में जब कांग्रेस और पंडित नेहरू केंद्र में सरकार चला रहे थे तो के कामराज ने ही सुझाव दिया कि कांग्रेस के सीनियर नेताओं को पार्टी के संगठन को मजबूत करने के लिए मंत्री पद छोड़ देना चाहिए.

'कामराज प्लान'

के कामराज की इस योजना को ही 'कामराज प्लान' के नाम से जाना गया. इसी प्लान के तहत न सिर्फ के कामराज ने सीएम पद छोड़ा बल्कि देश के 6 मुख्यमंत्रियों और 6 केंद्रीय मंत्रियों को अपना पद छोड़ना पड़ा. देशभर में कांग्रेस के संगठन को धार देने के लिए के कामराज 9 अक्टूबर 1963 को कांग्रेस के अध्यक्ष बने. साल 1976 में के कामराज को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया गया.

प्रधानमंत्री बनने से किया इनकार

साल 1964 में जब पंडित नेहरू का निधन हुआ तो कांग्रेस में एक अंदरूनी जंग शुरू हो गई. कई दावेदारों के बीच यह जिम्मा के कामराज के कंधों पर ही था कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा. के कामराज ही वह शख्स थे जिन्होंने लाल बहादुर शास्त्री को आगे कर दिया. 1966 में लाल बहादुर शास्त्री की असामयिक मृत्यु के बाद यही संकट एक बार फिर आया.

K Kamraj with Pandit Nehru
पंडित नेहरू के साथ के कामराज. National Herald

इस बार मोरारजी देसाई ने सर्वसम्मति की बात मानने से इनकार कर दिया और वोटिंग की मांग की. कुछ लोगों ने यहां के कामराज का नाम भी आगे किया लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया. यहां तक कि के कामराज ने यह तक कह दिया कि जिसे हिंदी या अंग्रेजी अच्छे से न आती हो, उसे इस देश का प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहिए. के कामराज ने यहां पर इंदिरा गांधी का समर्थन किया और उनके पक्ष में 355 सांसदों ने वोट करके उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया. शास्त्री और इंदिरा गांधी के पीछे खड़े होने और खुद का नाम आने पर भी इनकार कर देने की वजह से ही के कामराज को 'किंगमेकर' कहा जाता है.

सादगी के लिए मशहूर हुए कामराज

मद्रास (अब तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री पद पर रहने के बावजूद कामराज बेहद सादगी से रहते थे. उस वक्त उन्हें जेड लेवल की सुरक्षा दी जा रही थी जिसे उन्होंने लेने से इनकार कर दिया था. कहीं दौरे पर जाते भी तो उनके साथ पुलिस की सिर्फ एक गाड़ी होती थी. उनकी सादगी इस बात से और साबित होती है कि जब कामराज का निधन हुआ तो उनके पास सिर्फ 130 रुपये, 4 शर्ट, कुछ किताबें और 2 जोड़ी चप्पलें थीं.

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