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सुंदर काया, सख्त मिजाज...इंदिरा गांधी का ऐसा गुरु जिसके आगे कैबिनेट मंत्री भी कांप जाते थे

Dhirendra Brahmachari: योगगुरु के तौर पर दिल्ली आए धीरेंद्र ब्रह्मचारी कुछ ही सालों में इतने ताकतवर हो गए थे कि बड़े-बड़े मंत्री भी उनके सामने कुछ बोलने से बचते थे.

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Nilesh Mishra
इंदिरा गांधी और धीरेंद्र ब्रह्मचारी
Courtesy: Social Media

नाम धीरेंद्र ब्रह्मचारी. काम योग सिखाना. जगह- सत्ता के गलियारों में और रुतबा प्रधानमंत्री के जैसा. सिर्फ 13 साल की उम्र में घर छोड़ने वाले धीरेंद्र चौधरी कुछ ही सालों में धीरेंद्र ब्रह्मचारी बन चुके थे. योग विद्या में पारंगत धीरेंद्र ने पंडित नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक को योग सिखाया. नेहरू और इंदिरा की करीबी का नतीजा यह रहा कि वह सत्ताधीशों पर खुलेआम रौब जमाने लगे. एक समय 'भारत के रासपुतिन' जैसे उपनाम पाने वाले शख्स की जिंदगी में ऐसा वक्त भी आया जब उसी प्रधानमंत्री आवास में उसकी एंट्री बैन हो गई जहां बैठे-बैठे वह बड़े-बड़े मंत्रियों की हवा टाइट कर दिया करता था.

तमाम आरोपों से घिरने, उनसे बच निकलने वाले धीरेंद्र ब्रह्मचारी एक दिन विमान दुर्घटना का शिकार हुए और बच नहीं पाए. खराब मौसम में उड़ान भर रहे धीरेंद्र ब्रह्मचारी ठीक उसी तरह से हादसे का शिकार हुए जैसे उनके करीबी रहे संजय गांधी हुए थे. साल 1994 की 9 जून को जम्मू के ऊधमपुर में मानतलाई में अपने योग विद्यालय के पास लैंडिंग के प्रयास में उनका विमान एक पेड़ से जा टकराया था और उनकी मौत हो गई. हालांकि, धीरेंद्र ब्रह्मचारी का जीवन बिहार से निकलकर संन्यासी और योगगुरु बनने से कहीं ज्यादा है.

योग से शुरुआत, योग पर अंत

बिहार के मधुबनी में साल 1924 में जन्मे धीरेंद्र चौधरी ने 13 साल की उम्र में यानी 1937 में घर छोड़ दिया था. 20 साल बाद यानी साल 1957 में जम्मू के पास शिकारगढ़ में छुट्टियां मना रहीं इंदिरा गांधी ने पहली बार धीरेंद्र ब्रह्मचारी को देखा. खुद धीरेंद्र इंदिरा के सहायक से कह रहे थे इंदिरा गांधी से मिलवा दें लेकिन वह इजाजत नहीं देती. इंदिरा की नजर उनपर पड़ी तो उन्होंने खुद जाकर मुलाकात की. यह आम सी मुलाकात कितने गुल खिलाने वाली थी कहां किसको पता था. इंदिरा गांधी को भी अंदाजा नहीं था कि इसी शख्स के विमान न सिर्फ उसकी खुद की जान लेंगे बल्कि इंदिरा से उनका सबसे प्यारा बेटा भी छीन लेंगे.

इस मुलाकात के एक साल बाद धीरेंद्र ब्रह्मचारी दिल्ली पहुंचे. वहां धीरेंद्र ने पंडित नेहरू के साथ-साथ लाल बहादुर शास्त्री, जयप्रकाश नारायण, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और मोरारजी देसाई जैसे नेताओं को योग सिखाना शुरू किया. 1959 में पंडित नेहरू ने ही धीरेंद्र ब्रह्मचारी के विश्वायनत योग आश्रम का उद्घाटन किया. यहीं से धीरेंद्र ब्रह्मचारी का जलवा शुरू होता है. उनके आश्रम को शिक्षा मंत्रालय को अच्छा-खासा अनुदान मिलने लगा और उन्हें जंतर-मंतर रोड पर एक आलीशान सरकारी बंगला दे दिया गया.

रफ्तार का शौक, आंखों में उड़ान

खुद कार ड्राइव करने वाले धीरेंद्र शास्त्री भले ही सादे कपड़ों में रहते हों लेकिन लुटियंस दिल्ली में उनकी रफ्तार बहुत तेज थी. नीली टोयोटा कार में घूमने वाले धीरेंद्र ब्रह्मचारी के पास कई प्राइवेट जेट थे. इन 4 सीटर सेसना, 19 सीटर डॉर्नियर और मॉल-5 जैसे विमान भी सामिल थे. बता दें कि धीरेंद्र ब्रह्मचारी खुद भी प्लेन उड़ाते थे और इसी के चलते संजय गांधी से भी उनकी खूब बनती थी. एक दुखद संयोग यह भी है कि संजय गांधी जिस प्लेन हादसे में अपनी जान गंवा बैठे वह प्लेन भी धीरेंद्र ब्रह्मचारी का ही था.

योग, संयोग, प्रयोग और उपयोग

कुछ ही सालों में नेताओं के बीच तगड़ी पैठ बना चुके धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने अपना साम्राज्य फैलाना शुरू कर दिया था. 1963 में पंडित नेहरू की सरकार में शिक्षा मंत्री हुआ करते थे के एल श्रीमाली. धीरेंद्र ब्रह्मचारी के योग केंद्र को शिक्षा मंत्रालय से ही अनुदान मिलता था. ऐसे में धीरेंद्र ने अनुदान के नवीनीकरण की बात कही तो के एल श्रीमाली ने उनसे ऑडिट रिपोर्ट मांग ली. धीरेंद्र ब्रह्मचारी का रसूख यह था कि इंदिरा गांधी ने उनके लिए पंडित नेहरू से बात की. पंडित नेहरू ने श्रीमाली से भी बात की लेकिन श्रीमाली अड़ गए. आखिर में कामराज प्लान के तहत श्रीमाली को मंत्री पद छोड़ना पड़ा लेकिन लोग इसकी वजह धीरेंद्र ब्रह्मचारी को भी मानते हैं.

इंदिरा गांधी की जीवनी में कैथरीन फ्रैंक लिखती हैं, 'धीरेंद्र ब्रह्मचारी इकलौते पुरुष थे जो इंदिरा के कमरे में अकेले जा सकते थे. इसी नजदीकी के चलते उन्हें भारत का रासपुतिन कहा जाने लगा था.' इमरजेंसी के समय इंदिरा और धीरेंद्र की यह नजदीकी और बढ़ गई थी. इस नजदीकी का नतीजा धीरेंद्र की मनमानियों के रूप में सामने आने लगा. साल 1976 में इमरजेंसी के दौरान धीरेंद्र ने चार सीटर M-5 विमान खरीदकर अमेरिका से मंगाए और इसके लिए कोई आयात शुल्क भी नहीं दिया. इतना ही नहीं, कश्मीर में नियमों के विरुद्ध जाकर धीरेंद्र ब्रह्मचारी को हवाई पट्टी बनाने की अनुमति भी दे दी गई.

भ्रष्टाचार के आरोप से घिरने लगे धीरेंद्र ब्रह्मचारी की राह के कांटे इंदिरा गांधी और उनकी सरकार हटाती रहती थी. साल 1977 में इंदिरा की हार के बाद इनकम टैक्स के अधिकारियों ने धीरेंद्र ब्रह्मचारी के अपर्णा आश्रम का दौरा किया. शाह कमीशन की रिपोर्ट में लिखा गया, 'ऐसा लगता था कि इस आश्रम को ठाठ से जीवन बिताने वाले हॉलीडे होम की तरह बनाया गया था.' इसके तीन साल बाद यानी 1980 में फिर से इंदिरा गांधी का सरकार बनी और धीरेंद्र ब्रह्मचारी के खिलाफ सभी आरोप हटा दिए गए.

संजय गांधी की मौत ने बदल दिया खेल

चाहे श्रीमाली का केस रहा हो या फिर इंद्र कुमार गुजराल का. कुछ उदाहरण बताते हैं कि धीरेंद्र ब्रह्मचारी का विरोध करने वाला अपने पद पर नहीं रह पाया. संजय गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले धीरेंद्र ब्रह्मचारी के लिए संजय की मौत ने बहुत कुछ बदल दिया. संजय की अंत्येष्टि का आयोजन संभालने वाले उस वक्त भी गांधी परिवार के घर में मौजूद थे जब मेनका गांधी को घर से निकाल दिया. 1980 में संजय गांधी की मौत के चलते राजीव गांधी राजनीति में सक्रिय हुए. राजीव गांधी को धीरेंद्र ब्रह्मचारी कभी फूटी आंख नहीं सुहाए.

इसकी शुरुआत होती है दूरदर्शन से. धीरेंद्र ब्रह्मचारी का योग कार्यक्रम दूरदर्शन पर चित्रहार से ठीक पहले प्रसारित किया जाता था. विज्ञापन के पैसों की वजह से दूरदर्शन के अधिकारियों ने ब्रह्मचारी को सलाह दी कि वह या तो अपना कार्यक्रम छोटा कर लें या फिर किसी और समय पर शिफ्ट कर लें. हालांकि, धीरेंद्र ब्रह्मचारी इसके लिए तैयार नहीं हुए. नतीजा यह हुआ कि उनका कार्यक्रम दूरदर्शन से गायब हो गया.

राजीव गांधी के आते ही बंद हो गए दरवाजे

साल 1983 में जम्मू की शिवा गन फैक्ट्री पर छापेमारी हुई. इस छापेमारी में सैकड़ों विदेशी बंदूकें मिलीं. यह फैक्ट्री धीरेंद्र ब्रह्मचारी की थी और छापेमारी के वक्त वह मौजूद थे. हालांकि, इंदिरा गांधी के रहते उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई और वह बच निकले. अगले ही साल इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और राजीव गांधी ने सत्ता संभाल ली.

राजीव के सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री आवास और कार्यालय के दरवाजे धीरेंद्र ब्रह्मचारी के लिए बंद हो गए. धीरेंद्र ब्रह्मचारी को उस चबूतरे से नीचे उतार दिया गया जिस पर इंदिरा का शव रखा था. दिल्ली से मिल रही इस बेरुखी के बाद धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने मानतलाई में अपनी सपनो की दुनिया बसाने की ओर ध्यान दिया. ब्रह्मचारी का प्लान वहीं पर बड़ी झील, मोनो रेल, स्कूल, कॉलेज बनाने का था. साल 1994 में अपनी इसी दुनिया का जायजा ले रहे धीरेंद्र ब्रह्मचारी की विमान हादसे में मौत हो गई.

धीरेंद्र शास्त्री का यह मानतलाई आश्रम खंडहर बनकर रह गया. उनके दिल्ली वाले आश्रम को मोरारजी देसाई नेशनल इंस्टिटट्यूट ऑफ योगा बना दिया गया. कई राज धीरेंद्र ब्रह्मचारी की मौत के साथ ही दफन हो गए लेकिन इतिहास में यह कहानी हमेशा के लिए रह गई.