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10 साल में बदले राज ठाकरे के तेवर, पहले दिखाते थे आंख अब झुके, क्या है NDA से असीम प्रेम की कहानी?

राज ठाकरे के प्रति उत्तर भारतीयों की धारणा कभी अच्छी नहीं रही. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं पर उत्तर भारतियों के उत्पीड़न के आरोप भी लगे. साल 2014 के बाद लेकिन मनसे के तेवर नर्म पड़ गए थे. आखिर क्यों, आइए समझते हैं.

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Abhishek Shukla
मनसे प्रमुख राज ठाकरे.
Courtesy: फोटो क्रेडिट- सोशल मीडिया.

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे, कभी नरेंद्र मोदी के धुर आलोचक रहे हैं. जब 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर के लिए बने विशेष प्रावधान वाले अनुच्छेद 370 को हटाया गया था, तब राज ठाकरे ने कहा था कि उत्तर प्रदेश और बिहार में अनुच्छेद 370 नहीं है, फिर वहां रोजगार क्यों नहीं है. नरेंद्र मोदी के खिलाफ सख्त रुख रखने वाले राज ठाकरे की जुबान भी बदली, उत्तर भारतीयों के प्रति नफरत भी सिमट गई. 

राज ठाकरे वही नेता हैं जिन्होंने 5 साल पहले UAPA को लेकर कहा था कि आपको शक हुआ तो आप किसी को जेल में डाल देंगे, आतंकवादी बता देंगे. ऐसा सिर्फ इसलिए आप कर सकेंगे क्योंकि आप बहुमत में हैं. यह गलत है. आज उसी राज ठाकरे के तेवर बदले हैं. ऐसे बदले हैं कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए को वे बेशर्त समर्थन दे रहे हैं.

अब राज ठाकरे कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में वे बिना किसी शर्त के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हैं. राज ठाकरे के अतीत में यूपी और बिहार के लोगों के प्रति ऐसे तेवर रहे हैं कि उनका समर्थन भी बीजेपी के लिए घातक है. राज ठाकरे वही नेता हैं जिन्होंने एक बड़ा सा केक बनवाया था, जिस पर 'भइया' लिखा था. उसे तलवार से काट डाला था. भइया, महाराष्ट्र में यूपी और बिहार के लोगों को कहते हैं. उत्तर भारतीयों से उनकी नफरत को लेकर जमकर बवाल हुआ था.

10 साल में बदले तेवर, झुके भी, संभले भी और कर बैठे समझौता!

जिन्होंने 2014 से पहले का दौर देखा है, उन्हें पता है कि राज ठाकरे कितने विवादित रहे हैं. एक फायरब्रांड नेता का झुक जाना हैरान करने वाला है. हालांकि 10 साल में उनके तेवर भी बदले और मोदी सरकार के सामने वे झुकते भी नजर आए. अब उत्तर भारतीयों के विरोध में मनसे कार्यकर्ता चाहकर भी नहीं उतर पाते हैं.

राज ठाकरे, अमित शाह से हाल ही में मिले थे.  मंगलवार को उन्होंने मुंबई में पार्टी की गुड़ी पड़वा रैली को संबोधित करते कहा, 'मनसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनडीए को बिना शर्त समर्थन दे रही है. अब सभी शुरू हो जाएं और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तैयारी करें.'

मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे राज ठाकरे

राज ठाकरे रैली में पीएम मोदी की जमकर तारीफ करते नजर आए. उन्होंने कहा, '30 साल बाद, एक व्यक्ति पूर्ण बहुमत के साथ चुना गया. यदि आपको याद हो, तो मैं पहला व्यक्ति था जिसने कहा था कि नरेंद्र मोदी को भारत का प्रधान मंत्री बनना चाहिए. मैंने इसके लिए उनकी प्रशंसा की.'

अमित शाह से मिलने के बाद बदल रहे सुर?

राज ठाकरे ने 19 मार्च को दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. ऐसी अटकलें लगने लगीं कि अब राज ठाकरे, बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होंगे. महाराष्ट्र में बीजेपी का अभी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाला राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन है. राज ठाकरे, बिना गठबंधन के गठबंधन करते नजर आ रहे हैं.

चर्चा इस बात की भी है कि वे बीजेपी का मुखर विरोध बीते 10 साल में बहुत नहीं कर पाए हैं. विपक्षी पार्टियां आरोप लगाती रही हैं कि विपक्ष के नेताओं को बीजेपी निशाना बनाती है. बहुत पुरानी फाइल्स बीजेपी के राज में खुल जाती हैं. राज ठाकरे का भी अतीत अच्छा नहीं रहा है. उनके नफरत भरे बयान, तीखे तेवर और हंगामे का एक इतिहास रहा है. राज ठाकरे, ऐसे में बहुत संभलकर चल रहे हैं. 

क्यों बदले हैं राज ठाकरे के तेवर?

महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे, विवाद के अलावा कुछ हासिल नहीं कर सके हैं. साल 2019 में जब महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए थे तब उन्होंने 110 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए थे. एक सीट जीते लेकिन वह विधायक भी छोड़कर शिवसेना में शामिल हो गया. राज ठाकरे के पास कोई संवैधानिक पद नहीं है.

उनकी पार्टी का वही हाल है, जो कभी बिहार में पप्पू यादव की पार्टी जन अधिकार पार्टी (JAP) का. मतलब कागज में तो पार्टी है लेकिन न तो उसके विधायक हैं, न ही सांसद. राज ठाकरे के तेवर ऐसे रहे हैं कि उत्तर भारतीय उन पर भरोसा करने से रहे. महाराष्ट्र में एक बड़ी आबादी उत्तर भारतीयों की है, जिनके खिलाफ उनकी सियासत रही है. बीजेपी उन्हें खुलकर अपना भी नहीं सकती क्योंकि यूपी और बिहार जैसे राज्यों के लोगों की नाराजगी मोल लेने से कोई भी पार्टी बचेगी.

राज ठाकरे की अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे से भी नहीं बनती है. सियासी तौर पर दोनों अलग-अलग पार्टी के मुखिया हैं. शिवसेना का जहां मजबूद जनाधार है, वहीं मनसे का जनाधार संदिग्ध है. उनकी पार्टी के कार्यकर्ता, हंगामा जरूर करते नजर आते हैं. अब राज ठाकरे सोच रहे हैं कि अगर किसी तरह से एनडी में वे आ जाते हैं तो मोदी मैजिक के भरोसे राज्य विधानसभा चुनावों में उनकी राह आसान हो सकती है, कुछ सीटें मिल सकती हैं. बीजेपी के तेवर अभी ऐसे नहीं लग रहे हैं कि उनसे गठबंधन करने के मूड में पार्टी का शीर्ष नेतृत्व है.