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Badal Family: पंजाब में सिमटते 'बादल', क्या खत्म हो जाएगा शिरोमणि अकाली दल का दम?

Shiromani Akali Dal: पंजाब में बादल परिवार तक सीमित हो चुके शिरोमणि अकाली दल के सामने इस बार अपना अस्तित्व बचाने रखने की लड़ाई है.

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Nilesh Mishra
Badal Family
Courtesy: India Daily Live

पंजाब में बादल परिवार का रसूख बहुत बड़ा रहा है. यह रसूख पंजाब और केंद्र की राजनीति में इस कदर हावी रहा कि बादल परिवार के लोग तो सत्ता में रहे ही, उनसे जुड़े कई लोग भी विधायक सांसद बनते रहे. बीते कुछ सालों में बादल परिवार इस कदर कमजोर हुआ है कि पंजाब में ही उसका अस्तित्व खतरे में पड़ता दिख रहा है. ऐसे में इस साल के लोकसभा चुनाव शिरोमणि अकाली दल (SAD) के अस्तित्व के लिए बेहद अहम हो गए हैं. पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) के उदय और प्रकाश सिंह बादल के निधन के साथ-साथ पंथक राजनीति पर कमजोर होती पकड़ ने सुखबीर सिंह बादल को अकेला कर दिया है.

साल 1970 में पहली बार मुख्यमंत्री बने प्रकाश सिंह बादल ने 1 साल चार महीने सरकार चलाई. इमरजेंसी के बाद साल 1977 में शिरोमणि अकाली दल ने फिर से वापसी की और प्रकाश सिंह बादल एक बार फिर से सीएम बने. लगभग 3 साल चली इस सरकार ने भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया. 1985 में अकालियों की सरकार बनी तो सुरजीत सिंह बरनाला को सीएम बनाया गया.1997 में प्रकाश सिंह बादल ने फिर वापसी की और इस बार 5 साल तक सरकार चलाई. 2007 में फिर अकाली दल जीता और 2012 तक सरकार चलाई.

शिरोमणि अकाली दल का पतन

2013 में आम आदमी पार्टी का उदय और यहीं से अकाली दल कमजोर होने लगा. प्रकाश बादल की बढ़ती उम्र, तेजी से बदलती राजनीति और AAP की आक्रामकता ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी. 2017 में AAP जीत तो नहीं सकी लेकिन उसने सबको हिलाकर रख दिया. 2022 में उसी AAP ने हर किसी को हैरान कर दिया और कांग्रेस के साथ-साथ शिरोमणि अकाली दल भी हाथ मलता रह गया. 2023 में 95 साल के प्रकाश सिंह बादल का निधन हो गया और पार्टी पूरी तरह से सुखबीर सिंह बादल के हाथ में आ गई.

साल 2019 में शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी ने साथ में चुनाव लड़ा था लेकिन 2020 में ही कृषि कानूनों के चलते हरसिमरत कौर बादल ने मंत्री पद छोड़ दिया. यही वजह है विधानसभा चुनाव में अकाली दल को नए साथी की तलाश थी. 2022 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल के चुनावी अभियान की अगुवाई सुखबीर सिंह बादल के हाथों में थी. अकाली दल ने मायावती की बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया और दलित डिप्टी सीएम बनाने का वादा किया.

हालांकि, दिल्ली मॉडल पर चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी के आगे किसी की एक न चली. शिरोमणि अकाली दल सिर्फ 3 सीटें जीत पाया और उसकी सहयोगी बसपा को सिर्फ 1 सीट मिली. कांग्रेस भी सिर्फ 18 सीटों पर सिमट गई और AAP ने 92 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया. 2019 में अकाली दल को लोकसभा चुनाव में भी बड़ा झटका लगा था और उसे सिर्फ 2 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. 2022 के चुनाव नतीजों के बाद से शिरोमणि अकाली दल के कई नेता कांग्रेस, बीजेपी और AAP में जा चुके हैं.

कितना बड़ा है बादल का कुनबा?

इमरजेंसी के समय 19 महीने जेल में रहे प्रकाश सिंह बादल और अकाली दल की राजनीति ज्यादातर बीजेपी के साथ ही चली. प्रकाश बादल के एक बेटे सुखबीर सिंह बादल और एक बेटी परनीत हैं. परनीत की शादी पूर्व सीएम प्रताप सिंह कैरों के बेटे प्रताप सिंह कैरों से हुई हैं. वहीं, सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल केंद्र में मंत्री रह चुकी हैं.

सुखबीर सिंह बादल और हरिसमत के तीन बच्चे हैं. दो बेटियों के नाम गुरलीन कौर और हरलीन कौर हैं. वहीं, बेटे का नाम अनंतबीर सिंह बादल है. अब सुखबीर सिंह बादल शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष हैं. बीजेपी के नेता मनप्रीत सिंह बादल सुखबीर सिंह बादल के चचेरे भाई हैं. वहीं, बिक्रम सिंह मजीठिया हरसिमरत कौर के भाई और सुखबीर के साले हैं. 

कृषि कानूनों की वजह से बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल की राहें अलग हुईं तो हरसिमरत कौर बादल ने मंत्री पद छोड़ दिया. 2024 के चुनाव से पहले फिर चर्चाएं थीं कि दोनों पुराने सहयोगी साथ आ सकते हैं. हालांकि, अचानक शुरू हुए किसानों के आंदोलन ने दोनों की राहें फिर जुदा कर दीं. 

कितनी मुश्किल है डगर?

लगभग सबकुछ गंवा बैठे अकाली दल के पास अब न तो प्रकाश सिंह बादल जैसा बहुत बड़ा चेहरा और न ही बीजेपी का साथ. ऐसे में वह फिर से पंथिक राजनीति की ओर लौट रही है. अब अकेली हो चुके अकाली दल ने एक बार फिर से अपने पुराने नेताओं पर दांव लगाया है. हरसिमरत कौर बादल इस बार साख बचाने के लिए बठिंडा सीट से लगातार चौथी बार मैदान में हैं. उनके मुकाबले बीजेपी ने प्रेमपाल सिद्धू, AAP ने गुरमीत सिंह खुड़ियां तो कांग्रेस ने जीत मोहिंदर सिंह को मैदान में उतारा है.