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India Daily

कांवड़ यात्रा में क्यूआर कोड और पहचान अनिवार्यता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, यूपी सरकार पर भेदभाव का आरोप

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के उस निर्देश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी फूड स्टॉल्स को मालिक की पहचान और QR कोड आधारित लाइसेंस प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया है. याचिकाकर्ता अपूर्वानंद झा ने इसे सुप्रीम कोर्ट के 2024 के स्टे आदेश का उल्लंघन बताया है और इसे धार्मिक आधार पर भेदभाव करने वाला कदम करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट 15 जुलाई को इस याचिका पर सुनवाई करेगा.

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Edited By: Kuldeep Sharma
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Courtesy: web

सुप्रीम कोर्ट 15 जुलाई को उस याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के उस निर्देश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाने-पीने के स्टॉल्स पर QR कोड आधारित लाइसेंस और मालिक की पहचान को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया है.

यह याचिका 8 जुलाई को अपूर्वानंद झा ने दाखिल की थी, जिसमें दावा किया गया कि यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के 2024 के स्टे ऑर्डर का उल्लंघन है. याचिका के अनुसार, QR कोड के जरिए स्टॉल मालिक की पहचान और विवरण सार्वजनिक करना उसी भेदभावपूर्ण प्रोफाइलिंग जैसा है, जिसे पहले ही शीर्ष अदालत ने रोक दिया था.

क्या है यूपी सरकार का नया निर्देश?

कांवड़ यात्रा से पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने 25 जून को एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि सभी स्ट्रीट फूड विक्रेताओं को Food Safety Connect App से लिंक किया गया QR कोड अपने स्टॉल पर लगाना होगा. इस QR कोड को स्कैन कर श्रद्धालु यह देख सकेंगे कि खाने की गुणवत्ता सुरक्षित है या नहीं, और शिकायत भी दर्ज कर सकेंगे.

सरकार का दावा है कि यह कदम केवल खाद्य सुरक्षा और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए है, और इसका किसी धर्म या समुदाय से कोई लेना-देना नहीं है.

याचिकाकर्ता के तर्क क्या हैं?

अपूर्वानंद झा की ओर से वकील आकृति चौबे ने अदालत में दायर आवेदन में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में स्पष्ट किया था कि किसी भी दुकानदार को अपनी पहचान दिखाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. QR कोड या लाइसेंस सर्टिफिकेट में नाम और पहचान होना मालिक की प्राइवेसी का उल्लंघन है. यह निर्देश न केवल असंवैधानिक है, बल्कि जमीनी स्तर पर हिंसक कार्रवाई को बढ़ावा दे सकता है. यह "विभाजनकारी" और "मनमाना" आदेश है, जिसे धार्मिक पहचान उजागर करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि वह इस निर्देश पर तुरंत रोक लगाए, जिससे दुकानदारों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हो सके.

पिछले साल भी उठा था विवाद

साल 2023 में भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी दुकानों, ढाबों और रेस्टोरेंट्स के बाहर मालिकों और कर्मचारियों के नाम और पहचान को सार्वजनिक करने का आदेश जारी किया था. उस आदेश के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में अपूर्वानंद झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और Association for Protection of Civil Rights (APCR) ने याचिका दाखिल की थी.

तब सरकार ने दलील दी थी कि यह आदेश Food Safety and Standards Act, 2006 के तहत पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए है, और इसका मकसद कांवड़ यात्रियों को उनके धार्मिक भावनाओं के अनुरूप खाद्य विकल्प उपलब्ध कराना है. सरकार का यह भी कहना है कि यह निर्देश स्थायी नहीं, बल्कि केवल कांवड़ यात्रा के सीमित समय और सीमित भौगोलिक क्षेत्र में लागू है, और सभी समुदायों पर समान रूप से लागू होता है.