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कोल्हापुरी चप्पल की कीमत ने सोने को दी मात, देने पड़ेंगे एक लाख रुपये, वजह जान सोशल मीडिया पर लोग हुए हैरान

कोल्हापुरी चप्पल केवल एक फुटवियर नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत है. जब कोई ग्लोबल ब्रांड इसे कॉपी करता है और भारतीय कारीगरों को क्रेडिट नहीं देता, तो ये सिर्फ एक डिजाइन की चोरी नहीं, बल्कि एक पूरे समुदाय की मेहनत और पहचान की अनदेखी है.

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Edited By: Reepu Kumari
Kolhapuri Chappal
Courtesy: Pinterest

एक जोड़ी चप्पल जिसकी कीमत एक लाख रुपये! सुनकर शायद यकीन न हो, लेकिन ये हकीकत है. महाराष्ट्र की पारंपरिक और सांस्कृतिक पहचान कोल्हापुरी चप्पल अब केवल देसी लोगों की पसंद नहीं रही, बल्कि इंटरनेशनल रैम्प पर भी छा गई है. लेकिन इस पहचान के साथ एक नया विवाद भी जुड़ गया है, जिसने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है. प्राडा (Prada) ने मिलान फैशन वीक 2026 में अपनी स्प्रिंग समर कलेक्शन में ऐसी सैंडल पेश की जो हूबहू कोल्हापुरी चप्पल जैसी थी. फर्क बस इतना था कि इस डिज़ाइन के लिए भारत या भारतीय कारीगरों को कोई श्रेय नहीं दिया गया.

इससे फैशन प्रेमियों और सामाजिक प्लेटफॉर्म्स पर लोगों में गुस्सा फूट पड़ा. लोग सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर ग्लोबल ब्रांड्स कब भारतीय संस्कृति और शिल्प को पहचान और सम्मान देना शुरू करेंगे?

कोल्हापुरी चप्पल, भारतीय शिल्प की अमूल्य धरोहर

कोल्हापुरी चप्पलें महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले की खास पहचान हैं. इनका इतिहास 13वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है. यह पूरी तरह से हाथ से बनाई गई चप्पलें होती हैं, जिनमें किसी मशीन का इस्तेमाल नहीं होता. इनका डिज़ाइन, बनावट और टिकाऊपन इन्हें खास बनाते हैं.

ऐसे बनती है एक कोल्हापुरी चप्पल

चप्पल की शुरुआत होती है हाई-क्वालिटी लेदर से, जिसे पहले सॉफ्ट किया जाता है. फिर इसे हाथों से काटकर डिज़ाइन किया जाता है. चप्पल में अंगूठे के पास जो चमड़े की रिंग होती है, वह इसकी खास पहचान है. इसके अलावा पतली स्ट्रैप और नेचुरल टैन कलर इसे यूनिक लुक देते हैं.

आराम और स्टाइल का मेल

कोल्हापुरी चप्पलें केवल स्टाइलिश नहीं, बल्कि बेहद आरामदायक भी होती हैं. इन्हें पहनने से गर्मी में भी पैरों को ठंडक मिलती है, और ये लंबी दूरी तक चलने में भी आराम देती हैं. समय के साथ इनका लेदर पहनने वाले के पैर के अनुसार ढल जाता है, जिससे इनका आराम और भी बढ़ जाता है.

कोल्हापुरी चप्पल केवल एक फुटवियर नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत है. जब कोई ग्लोबल ब्रांड इसे कॉपी करता है और भारतीय कारीगरों को क्रेडिट नहीं देता, तो ये सिर्फ एक डिजाइन की चोरी नहीं, बल्कि एक पूरे समुदाय की मेहनत और पहचान की अनदेखी है