Israel Hamas War: संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, गाजा में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक भूखमरी के शिकार हो रहे हैं. वे दाने-दाने को मोहताज हैं, लेकिन इजराइल का दिल नहीं पसीज रहा है. इजराइल लगातार गाजा में मानवीय सहायता की पहुंच में बाधा पहुंचा रहा है. संयुक्त राष्ट्र के ह्यूमन राइट्स चीफ वॉल्कर टर्क भी बोल चुके हैं कि गाजा में भूखमरी की हालत के लिए इजराइल की नीतियां जिम्मेदार हैं. कहा ये भी गया कि इजराइल भूखमरी को हथियार के तौर पर गाजा में इस्तेमाल कर रहा है.
हालांकि, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू लगातार इन सब आरोपों से इनकार करते रहे हैं. उन्होंने गाजा में उपजी भूखमरी की स्थिति के लिए संयुक्त राष्ट्र को जिम्मेदार ठहराया है और कहा कि वे सही मात्रा में और तेजी से राहत सामग्री और मानवीय सहायता को गाजा में पहुंचा नहीं पा रहे हैं.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, गाजा के करीब 10 लाख लोग भूखमरी से जूझ रहे हैं. दावा ये भी किया जा रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों के भूखमरी से जूझने के बाद वहां तेजी से मौतों के आंकड़ों में बढ़ोतरी होगी और इन मौतों की वजह भूख ही होगी. कई रिपोर्ट में दावा किया गया कि गाजा के आसपास कई गाड़ियां मानवीय सहायता लेकर खड़ी हैं, लेकिन इजराइली सैनिक इन्हें गाजा में एंटर नहीं करने दे रहे हैं.
गाजा में करीब 7 महीने से जंग जारी है. इस बीच, इजराइल लगातार गाजा को निशाना बना रहा है. आसमान और जमीन दोनों छोर से गाजा पर लगातार हमले किए जा रहे हैं. इजराइल के हमलों से न सिर्फ गाजा के लोग बेघर हुए हैं, बल्कि उनके सामने अब भूख से मरने की नौबत आ गई है. कई लोगों को भूखमरी की हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है. इनमें बच्चों और बूढ़ों की संख्या सबसे ज्यादा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, भूख से मरने वालों की संख्या और बढ़ सकती हैं.गाजा के कुछ अस्पतालों की तस्वीरें भी सामने आईं, जिनमें बच्चों को भूखमरी से जूझते दिखाया गया. कई रिपोर्ट्स में गाजा के बच्चों और बूढ़ों के लगातार गिर रहे स्वास्थ्य का जिक्र भी किया गया है. कहा जा रहा है कि कई महिलाएं ऐसी हैं, जो नवजात बच्चों की मां हैं, लेकिन कुपोषण और भूखमरी की वजह से अपने बच्चों को ब्रेस्ट फीडिंग नहीं करा पा रही हैं.
फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए काम करने वाली एजेंसी UNRWA ने मार्च के शुरुआत में दावा किया था कि उनका प्लान गाजा में मानवीय सहायता वाले 500 ट्रकों को रोजाना भेजने का था, लेकिन जनवरी में मात्र 150 ट्रकें भेजी गईं. फरवरी में ये आंकड़ा गिरकर 90 हो गया. अगर ये ऐसा ही रहा तो स्थिति भयावह हो जाएगी.