Radha Soami Satsang Sabha : राधास्वामी सतसंग की स्थापना 100 साल से भी पहले साल 1861 में सेठ शिवदयाल सिंह महाराज ने की थी. आगरा की पन्ना गली में 25 अगस्त 1818 में जन्में सेठ शिवदयाल बचपन से ही योग के अभ्यास में लीन रहते थे. जानकारी के अनुसार इन्होंने किसी को भी अपना गुरु नहीं बनाया था.आगरा में हुए बवाल से सुर्खियों में आए राधास्वामी सत्संग सभा के संस्थापक सेठ शिवदयाल साल 1861 से पहले राधास्वामी मत का उपदेश केवल चुने हुए लोगों को ही देते थे.
इस मत के दूसरे आचार्य की प्रार्थना पर स्वामी जी महाराज ने साल 1861 की 15 फरवरी को बसंत पंचमी के दिन राधास्वामी मत को आम लोगों के लिए भी खोल दिया था. देखते ही देखते इसके सेंटर भारत के अधिकांश क्षेत्रों से लेकर विदेशों में भी फैल गए. आज के समय में 90 से भी अधिक देशों में इसके सेंटर खुले हुए हैं. दयालबाग आगरा में इस सभा की पहली शाखा है. इसके अलावा यूएसए, स्पेन, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलियास जापान, अफ्रीका आदि कई देशों में इसके सेंटर मौजूद हैं. सभी जगह संगठन की अपनी खुद की प्रॉपर्टीज हैं, जिसे 'साइंस ऑफ द सोल स्टडी सेंटर' के नाम से जाना जाता है, यहां ब्यास से जुड़े लोगों की मीटिंग्स होती रहती है.
इस सत्संग का नाम राधा स्वामी पड़ने के पीछे भी कई मान्यताएं हैं. पहली मान्यता यह है कि भगवान श्रीकृष्ण को राधा स्वामी कहा जाता है और दूसरा यह कि इस मत के संस्थापक की पत्नी का नाम भी राधा था, जानकारों की मानें तो इस मत पर थोड़ा सा संशय है.
उत्तर प्रदेश के आगरा से ही राधा स्वामी के नाम से प्रभु का सिमरन आगरा से शुरू हुआ था. इस मत के पहले गुरु बाबा शिव दयाल 15 जून 1878 को अपनी सांसारिक भूमिका समाप्त कर श्रीचरणों में लीन हो गए. इसके 11 साल बाद 1889 में सेना से रिटायर जयमल सिंह ने पंजाब में आकर यहां ब्यास नदी के किनारे कुटिया बनाई और भक्तों को नामदान देना शुरू कर दिया. साल 1903 तक उन्होंने राधा स्वामी के नाम से सत्संग किया. इसके बाद भक्तों की संख्या में काफी इजाफा हुआ. साल 1839 में जन्म लेने वाले बाबा जयमल सिंह भी 64 साल की उम्र में दुनिया से रुखसत हो गए. इसके बाद सत्संग की कमान उनके शिष्य सावन सिंह ने संभाली. सावन सिंह की मृत्यु के बाद उनके सिंह बाबा जगत सिंह ने जिम्मेदारी संभाली और वे सिर्फ तीन साल ही इसे निभा पाए.
बाबा सावन सिंह के आते ही राधा स्वामी सत्संग तीन अलग-अलग विचारधाराओं में विभाजित हो गया था. साल 19254 में सावन सिंह के शिष्य तारा सिंह ने हरियाणा के भिवानी में राधा स्वामी सत्संग की शुरुआत एक अलग नाम के साथ की. उस समय से ही राधास्वामी दिनोद नाम से संस्था चल रही है. इसके बाद 1948 में उनके दूसरे शिष्य कृपाल सिंह ने दिल्ली में सवान कृपाल मिशन की शुरुआत की. इसके बाद 02 अप्रैल 1949 को एक और शिष्य बाबा खेमामल, जिन्हें बाबा मस्ताना नाम से भी जाना जाता था. उन्होंने हरियाणा के सिरसा में सच्चा सौदा नाम से एक छोटी सी कुटिया में सत्संग शुरू किया.
सच्चा सौदा की इस कुटिया से आश्रम बना और शाह सतनाम सिंह के बाद यहां की बागडोर गुरमीत राम रहीम सिंह के हाथ में आ गई. यह वही राम रहीम हैं, जिसे कुछ साल पहले रेप के साथ ही कई गंभीर मामलों में जेल भेजा गया था.
तीन अलग-अलग मत निकल जाने के बाद भी राधा स्वामी सत्संग का ब्यास में सफर निरंतर जारी रहा. जुलाई 1884 में जन्म लेने वाले बाबा जगत सिंह भी बाबा सावन सिंह के ही शिष्य थे. उन्होंने 1951 में बाबा सावन सिंह के देहावसान के बाद भी सत्संग की परंपरा को जारी रखा और 23 अक्टूबर 1951 को वह भी दुनिया को अलविदा कह गए. इसके बाद 1990 तक बाबा चरण सिंह इस मत के पांचवें गुरु के रूप में भक्तों को नामदान देते रहे और इसके बाद भी यह राधास्वामी सत्संग सभा आज भी चल रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंजाब चुनाव के दौरान पंजाब के ब्यास स्थित सत्संग का दौरा किया था. इस दौरान उन्होंने डेरा प्रमुख बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लो से मुलाकात भी की थी. इसके पहले भी फोर्टिस हॉस्पिटल के को-फाउंडर और एग्जीक्यूटिव वाइस चेयरमैन शिविंदर मोहन सिंह जैसे कई बिजनेसमैन राधास्वामी सत्संग से जुड़ चुके हैं. इसके अलावा राजनाथ सिंह, अमित शाह आदि कई राजनेता भी डेरा ब्यास से मुलाकात करते रहे हैं.
बीते रविवार की शाम आगरा पुलिस और प्रशासन कर्मी आगरा में राधास्वामी सत्संगियों से अवैध कब्जे की जमीन मुक्त कराने गए थे. आरोप है कि इस दौरान सत्संगियों ने टीम पर हमला बोल दिया. इसमें पुलिसकर्मियों सहित 40 लोग घायल हो गए हैं. लोगों का कहना है कि इस दौरान ऐसे डंडों का प्रयोग किया गया है, जिनका उपयोग पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून, 2020 को चीन के सैनिकों ने भारतीय सेना के जवानों पर हमले के दौरान किया था.इस मामले में भी प्रशासन और पुलिस की ओर से सत्संगियों के खिलाफ एफआईआर कराई गई है.
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