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Uttarakhand Forest Fire: उत्तराखंड में सांसों पर संकट, सुलग रहे हैं जंगल, क्यों 7 महीने में 900 से ज्यादा बार लगी आग?

उत्तराखंड के जंगलों में लगी भीषण आग, अब लोगों की जिंदगी निगल रही है. बीते चार दिनों में चार लोगों की मौत हो चुकी है. आइए पढ़ें क्यों नहीं बुझ रही है ये आग.

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Uttarakhand Fire
Courtesy: Social Media

उत्तराखंड के जंगलों में ऐसी आग लगी है कि लग रहा है सब जलकर राख हो जाएगा. वहां के जानवरों, जंगल की पारिस्थितिकी के साथ-साथ अब इंसानों की जिंदगी पर भी खतरा मंडरा रहा है. आग की वजह से एक महिला की भी मौत हो गई है. बीते 3 दिनों में 4 लोगों की जान जा चुकी है. आग की वजह से आदि कैलाश हेलीकॉप्टर दर्शन सर्विस को भी सस्पेंड कर दिया गया है. नैनी सैनी एयरपोर्ट पिथौरागढ़ पर भी ऐसे ही हालात हैं. जंगल में लगी आग की जद में कई इलाके हैं, जहां लोगों को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही है. धुएं की वजह से आसमान पट गया है. 

अल्मोड़ा जिले के दूनागिरी मंदिर में भी हालात ऐसे ही हैं. शनिवार को मंदिर के परिसर तक आग की लपटें आ गईं. अधिकारियों ने आग बुझाने की कोशिश की लेकिन देखते-देखते आग बेकाबू हो गई. अधिकारियों ने तीर्थयात्रियों को तो बचा लिया लेकिन लोगों का दम जरूर घुटने लगा. स्थानीय लोगों का कहना है कि हर तरफ धुआं है और लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है. उत्तराखंड के जंगलों के हर डिवीजन आग से प्रभावित हैं. हल्दवानी में भी हालात ऐसे ही हैं. लोगों को दिन-रात जलते पहाड़ नजर आ रहे हैं. मुक्तेश्वर का भी हाल ऐसा ही है.

7 महीने में 910 बार लगी आग
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक चमोली जिले में भी आग बुरी तरह फैली है. रविवार को रुद्रप्रयाग और चमोली में भी आग फैली. गढ़वाल क्षेत्र के कुछ हिस्सों की पहाड़ी चोटियों पर आग लग गई. वन अधिकारियों का कहना है कि बीते साल 1 नवंबर से जंगल में आग लगने की लगभग 910 घटनाएं सामने आई हैं, जब राज्य में पहली बार आग लगने की सूचना मिली थी, जिससे 1,144 हेक्टेयर से ज्यादा जंगली जमीन तबाह हो गई.
 

कुमाऊं बेल्ट है सबसे ज्यादा प्रभावित
आग बीते 6 महीने में कई बार लगी. कुमाऊं के जंगल ज्यादा प्रभावित हुए हैं, जंगल की आग में 5 लोगों की मौत हो चुकी है. नेपाली मूल की 28 वर्षीय महिला मजदूर की मौत हुई है. पीड़िता, जिसका पहला नाम पूजा है. तीन दिन पहले अल्मोडा जिले में एक पाइन रेजिन फैक्ट्री के पास जंगल की आग बुझाने की कोशिश करते समय गंभीर रूप से घायल हो गई थी.

बारिश ही बचा सकती है जंगल
आग की वजह से पर्यटन गतिविधियां प्रभावित हुई हैं. कुमाऊं, ट्रैकिंग और पर्वतारोहण की गतिविधियां रुकी हुई हैं. लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं कि क्या करें, क्या न करें. उत्तराखंड के जंगलों में हर साल आग लगती है. अगर आग थमती नहीं है तो पर्यटकों के लिए एडवाइजरी जारी की जाएगी. अगर पानी बरसे तभी ये आग पूरी तरह से थम सकती है. हेलीकॉप्टर से हो रही बारिश काम नहीं आ रही है. 
 


क्या है आग लगने की वजह?
उत्तराखंड के जंगलों में आग आमतौर पर लोगों की नासमझी की वजह से लगती है. पिथौरागढ़ जिले की पर्यटन अधिकारी कीर्ति आर्य ने कहा है कि लोग आग लगा देते हं. लोग घास के मैदानों में आग लगाते हैं और धीरे-धीरे इसकी वजह से पूरा जंगल जलने लगता है. अप्रैल-मई में मिट्टी में नमी की कमी होती है, पेड़ों के पत्ते ज्वलनशील हो जाते हैं जिसकी वजह से तेजी से आग फैलने लगती है. 

अतिरिक्त मुख्य वन संरक्षक, निशांत वर्मा का दावा है कि बीते 24 घंटों में 36.5 हेक्टेयर क्षेत्र में आग लगी हैं. कुमाऊं मंडल में करीब 22 जगह आग भड़की है. बीते महीने तो यह आग नैनीताल शहर तक पहुंच गई थी. भारतीय वायुसेना को आग बुझाने के लिए बारिश करनी पड़ी थी. नैनीताल, हलद्वानी और रामनगर वन प्रभागों के कई हिस्से राख हो गए थे. जंगल में आग लगने की घटनाएं रुक नहीं रही हैं.