Maharashtra Politics: बीते हफ्ते महाराष्ट्र की राजनीति में एक चौंकाने वाली घटना हुई, जब दो भाई राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने करीब 20 साल बाद एक मंच पर आकर सबको चौंका दिया. दोनों का साथ आना किसी राजनीतिक चमत्कार से कम नहीं था.
राज ठाकरे, जिन्होंने 2006 में शिवसेना से मतभेदों के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) की स्थापना की थी अब तक महाराष्ट्र की राजनीति में ज्यादा असर नहीं छोड़ पाए. वहीं, शिवसेना यूबीटी भी बंटवारे के बाद कमजोर हो गई थी. इसी बीच, महाराष्ट्र सरकार के तीन भाषा फार्मूले के तहत हिंदी को पढ़ाने का फैसला, दोनों भाइयों के बीच साथ आने का कारण बना.
कुछ महीनों पहले, फिल्म निर्माता महेश मांजरेकर के पॉडकास्ट में राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे से हाथ मिलाने के संकेत दिए थे. महेश मांजरेकर ने पूछा था कि क्या अब भी दोनों भाई एक साथ आ सकते हैं, तो राज ठाकरे ने जवाब दिया, 'महाराष्ट्र के अस्तित्व और लोगों के अस्तित्व के सामने हमारे मतभेद कुछ नहीं हैं. साथ आना कोई मुश्किल नहीं है, बस नीयत होनी चाहिए. यह सिर्फ मेरे हितों की बात नहीं है, हमें बड़ी तस्वीर देखनी चाहिए.'
बालासाहेब ठाकरे की सियासी विरासत पर चल रही लड़ाई अब सीधे मुकाबले में बदल सकती है. शिवसेना (यूबीटी), शिवसेना (शिंदे गुट) और एमएनसी के बीच चल रही इस सियासी टकराव में ठाकरे भाइयों की एकजुटता के बाद ‘ठाकरे ब्रांड’ एक बार फिर मजबूत हो सकता है.
राज ठाकरे की फायरब्रांड छवि और उद्धव ठाकरे की संयमित और संगठनात्मक शैली मिलकर एक बड़ा वोटबैंक आकर्षित कर सकती है. इस एकजुटता का असर आने वाले मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनावों पर भी दिखाई दे सकता है, जहां शिवसेना का दशकों तक दबदबा रहा है.