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India Daily

'RSS का उद्देश्य अंग्रेजों को भगाना नहीं, बल्कि...', ये क्या कह गए मोहन भागवत

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि 1857 के विद्रोह के बाद पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला भड़क उठी थी. वहीं, आरएसएस का उद्देश्य ब्रिटिश शासन का अंत नहीं बल्कि 'हिंदू राष्ट्र' की स्थापना करना था.

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Edited By: Mayank Tiwari
RSS chief Mohan Bhagwat
Courtesy: Social Media

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि अंग्रेजों से भारत की आजादी की "स्मारक उपलब्धि" के लिए "कोई भी एकल इकाई" "विशेष श्रेय" का दावा नहीं कर सकती है, उन्होंने रेखांकित किया कि यह असंख्य व्यक्तियों और समूहों के कार्यों का परिणाम है. 

दरअसल, मोहन भागवत ने शुक्रवार देर रात नागपुर में एक पुस्तक विमोचन समारोह में बोलते हुए इस बात पर जोर दिया कि स्वतंत्रता आंदोलन 1857 के विद्रोह से शुरू हुआ, जिसने एक संघर्ष को जन्म दिया, जिसके कारण भारत को आजादी मिली. उन्होंने कहा, "देश को अपनी आजादी कैसे मिली, इस बारे में चर्चा में अक्सर एक महत्वपूर्ण सच्चाई को नजरअंदाज कर दिया जाता है. यह किसी एक व्यक्ति के कारण नहीं हुआ. 1857 के बाद पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम की लपटें भड़क उठीं..."

स्वतंत्रता आंदोलन 1857 के विद्रोह से शुरू हुआ

भागवत ने स्वतंत्रता में अनगिनत व्यक्तियों और समूहों के योगदान का हवाला दिया और किसी का नाम लिए बिना इस धारणा को खारिज कर दिया कि कोई एक इकाई इस उपलब्धि का “विशेष श्रेय” ले सकती है. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके वैचारिक स्रोत आरएसएस ने स्वतंत्रता आंदोलन में आरएसएस की भूमिका की आलोचना का मुकाबला करने की कोशिश की है.

RSS पर स्वतंत्रता आंदोलन से दूर रहने का लगा आरोप

हालांकि, आलोचकों ने लंबे समय से आरएसएस पर स्वतंत्रता आंदोलन से दूर रहने का आरोप लगाया है, जबकि इसके समर्थक तर्क देते हैं कि इसमें इसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी, क्योंकि संस्थापक केबी हेडगेवार जैसे नेताओं ने लोकमान्य तिलक के प्रभाव में उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष में भाग लिया था. हेगड़ेवार को 1921 में ब्रिटिश विरोधी भाषण के लिए एक साल की सजा सुनाई गई थी, उन्हें 1930 में ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ आंदोलन में शामिल होने के लिए भी जेल भेजा गया था.

आरएसएस ने तर्क दिया है कि उसने एकीकृत समाज के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया, क्योंकि सामाजिक विभाजन के कारण भारत पराधीनता आई, ताकि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी अनुपस्थिति को लेकर हो रही आलोचना का जवाब दिया जा सके.

अंग्रेजों से लड़ना प्राथमिकता नहीं थी

आलोचकों का तर्क है कि आरएसएस नेता एमएस गोलवलकर के लेखन, जिन्होंने उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन को प्रतिक्रियावादी और अस्थायी कहा था और माना था कि असली आंतरिक दुश्मनों से लड़ने की जरूरत है, यह दिखाते हैं कि अंग्रेजों से लड़ना प्राथमिकता नहीं थी. उनका कहना है कि आरएसएस का उद्देश्य ब्रिटिश शासन का अंत नहीं बल्कि 'हिंदू राष्ट्र' की स्थापना करना था, जो इसे तत्कालीन छत्र संगठन कांग्रेस के तहत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय आंदोलन के साथ जोड़ता है.

समर्पित स्वयंसेवकों के बलिदान से RSS को मिलती ताकत 

शुक्रवार को भागवत ने आरएसएस की भूमिका और दर्शन पर भी विस्तार से बात की और कहा कि इसकी खूबियों और खामियों के बारे में बात करने वाले कई लोग इससे परिचित नहीं हो सकते हैं. "जो लोग हमारे संगठन को समझने के लिए समय निकालते हैं, वे अक्सर कहते हैं कि वे इससे प्रभावित हैं और उन्होंने बहुत कुछ सीखा है." उन्होंने कहा कि आरएसएस को सामूहिक निर्णय लेने से निर्देशित समर्पित स्वयंसेवकों के बलिदान से ताकत मिलती है.