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एक बच्चे के सवाल से पड़ी स्कूलों में मिड-डे मील योजना की नींव...जानें Inside Story 

Mid Day Meal Scheme: कामराज ने एक लड़के को रेलवे क्रॉसिंग पर मवेशी चराते हुए देखा. तब उन्होंने उससे पूछा कि वो स्कूल क्यों नहीं जाता. लड़के ने जो कहा उसकी वजह से मिड-डे मील योजना की नींव पड़ी.

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Amit Mishra

हाइलाइट्स

  • ऐसे शुरू हुई मिड-डे मील योजना 
  • दुनिया का सबसे बड़ा आहार कार्यक्रम है मिड-डे मील

Mid Day Meal Scheme: चेन्नई के मरीना बीच पर कामराज की एक मूर्ति खड़ी है, जिसके दोनों ओर दो किशोर छात्र खड़े हैं. चेन्नई ही नहीं पूरे तमिलनाडु में आप गांधी और नेहरू से ज्यादा प्रतिमाएं शायद कामराज की पाएंगे. वैसे मरीना बीच पर लगी उनकी प्रतिमा ये याद दिलाती है कि राज्य की शिक्षा के लिए उन्होंने बहुत काम किया. कामराज के मुख्यमंत्री कार्यकाल में तमिलनाडु की शिक्षा 85 प्रतिशत तक बढ़ गई. 

शिक्षा के क्षेत्र में किया कार्य 

कामराज ने 13 अप्रैल 1954 को मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला. सीएम बनते ही उन्होंने हर गरीब और जरूरतमंद को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया. उन्होंने अनिवार्य शिक्षा की नीति बनाई. नए स्कूल बनवाए, स्कूल आने वाले छात्रों को मुफ्त में यूनिफॉर्म दी गई. पाठ्यक्रम में संशोधन किया गया. अपने इन कामों से कामराज ‘शिक्षा के जनक’ के रूप में लोकप्रिय हो गए.

बात यहां से शुरू हुई

1960 के दशक की शुरुआत में तिरुनेलवेली जिले के चेरनमहादेवी शहर का दौरा करते समय कामराज ने एक लड़के को रेलवे क्रॉसिंग पर मवेशी चराते हुए देखा. तब उन्होंने उससे पूछा वो ऐसा क्यों कर रहा है, स्कूल क्यों नहीं जाता. आपको बता दें कि तिरवनेलवेली वही जिला है जहां अभी दिसंबर के दूसरे हफ्ते में दो दिन में इतनी भीषण बारिश हुई, जो पूरे सालभर नहीं होती.

'अगर मैं स्कूल जाऊं तो क्या आप मुझे खाना देंगे'

कामराज के सवाल के जवाब में इस लड़के ने उल्टे सवाल कर दिया, “अगर मैं स्कूल जाऊं तो क्या आप मुझे खाने के लिए खाना देंगे? मैं तभी सीख सकता हूं जब मैं खाऊंगा,” और लड़के के इन शब्दों में कामराज को उस काम को करने को प्रेरित किया जो आने वाले समय में पूरे देश के प्राथमिक स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई के लिए खींचने वाली खास योजना बनने वाली थी, जिसे हम मिड-डे मील के तौर पर जानते हैं.

स्कूलों में बढ़ गई बच्चों की संख्या

मिड-डे मील स्कूल योजना को लागू करने के बाद जब उन्होंने इसके बारे में जानना शुरू किया तो नतीजे बहुत शानदार थे. मद्रास नगर पालिका के स्कूलों और हरिजन कल्याण स्कूलों में इस योजना के कारण छात्रों की मौजूदगी बढ़ गई थी. बच्चे सोमवार से शुक्रवार स्कूल आने लगे थे. जब कामराज ने मिड-डे मील को दूसरी पंचवर्षीय योजना (एसएफवाईपी) में शामिल कराना चाहा तो ये आसान नहीं था. सभी प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिए मध्याह्न भोजन को केंद्रीय योजना आयोग बहुत व्यावहारिक नहीं मान रहा था. लेकिन कामराज इसको लागू कराने के लिए दृढ़ता से अड़ गए. 

दुनिया का सबसे बड़ा आहार कार्यक्रम

कामराज की मिड-डे मील योजना हिट थी. एमजी रामचन्द्रन ने 1982 में मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान इसे और बढ़ाया. फिर जल्द ही केंद्र सरकार ने इसे अपनाया और ये देश के अन्य राज्यों तक भी पहुंच गई. ये अब दुनिया का सबसे बड़ा स्कूली बच्चों का आहार कार्यक्रम है, जो 12 लाख स्कूलों में 11 करोड़ बच्चों को भोजन देता है.

कामराज को छोड़ना पड़ा था स्कूल 

बता दें कि, कामराज का जन्म एक व्यापारी परिवार में हुआ था. पिता का निधन होने के बाद मां को गुजारा करने के लिए संघर्ष करना पड़ा. 11 साल की छोटी उम्र में, कामराज को मां का सहयोग करने के लिए स्कूल छोड़ना पड़ा. तभी से वो चाहते थे कि उनकी तरह दूसरे बच्चों को स्कूल नहीं छोड़ना पड़े और वो सभी स्कूल जरूर जाएं. कामराज को पता था कि शिक्षा का जीवन में क्या महत्व होता है. 

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