जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों की जांच के लिए गठित तीन सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना को सौंप दी है. यह मामला तब सुर्खियों में आया जब 14 मार्च को राष्ट्रीय राजधानी में जस्टिस वर्मा के बंगले से सटे स्टोररूम में आग लगने के बाद वहां जली हुई नकदी का ढेर पाया गया.
घर के स्टोररूप में बोरों में मिला था कैश
मार्च के अंतिम सप्ताह में सीजेआई खन्ना ने इस "घर में नकदी" प्रकरण की जांच के लिए एक समिति का गठन किया था. समिति में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी.एस. संधावालिया, और कर्नाटक उच्च न्यायालय की जज जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे. सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी बयान में कहा गया, "जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए गठित तीन सदस्यीय समिति ने 03.05.2025 को अपनी रिपोर्ट तैयार की और इसे 04.05.2025 को भारत के मुख्य न्यायाधीश को सौंप दिया."
जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कथित रूप में कैश मिलने की जांच करने वाली तीन सदस्यीय कमेटी ने रिपोर्ट CJI को सौंप दी है। #JusticeYashwantVerma@news24tvchannel pic.twitter.com/I4wYjJs6ve
— Prabhakar Kumar Mishra (@PMishra_Journo) May 5, 2025
इलाहाबाद हाईकोर्ट किया गया था वर्मा का ट्रांसफर
दिल्ली उच्च न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज रहे जस्टिस वर्मा को इस घटना के बाद न्यायिक कार्य से हटा दिया गया और उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम, जिसके प्रमुख सीजेआई खन्ना हैं, ने केंद्र सरकार को उनकी इलाहाबाद वापसी की सिफारिश की थी. हालांकि, लखनऊ और इलाहाबाद के बार एसोसिएशनों ने इस स्थानांतरण का विरोध किया था. अप्रैल में जस्टिस वर्मा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज के रूप में शपथ ली, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा जाएगा.
जस्टिस वर्मा ने किया था आरोपों का खंडन
जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों से इनकार किया है. घटना के बाद जांचकर्ताओं ने आग की जगह से जली हुई नोटें एकत्र कीं, अग्निशमन कार्य के वीडियो को फोरेंसिक लैब में जांच के लिए भेजा, और जस्टिस वर्मा व उनके स्टाफ से उनके फोन और कॉल रिकॉर्ड सुरक्षित रखने को कहा. सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल में जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर की मांग वाली याचिका को "समयपूर्व" बताकर खारिज कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्टीकरण
सुप्रीम कोर्ट ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद उच्च न्यायालय में ट्रांसफर, जहां वह वरिष्ठता में नौवें स्थान पर होंगे, "आंतरिक जांच प्रक्रिया से स्वतंत्र और अलग है."