India first woman judge Anna Chandy: भारत गुलामी के दौर में था. उस वक्त महिलाओं को सीमित क्षेत्रों में नौकरी मिलती थी. यहां तक उच्च शिक्षा के लिए भी उन्हें संघर्ष करना पड़ता था. लेकिन एक थीं अन्ना चांडी, जिन्होंने महिलाओं के हक के लिए लड़ा ही नहीं बल्कि भारत की पहली महिला जज बनकर पुरुष प्राथमिक समाज पर गहरा तमाचा चड़ा. हर मोर्चे पर उन्होंने समाज को आईना दिखाने का काम किया.
जब उन्होंने कानून की पढ़ाई करनी चाही तो समाज के एक तबके ने मजाक उड़ाया तो दूसरे ने उनकी काबिलियत पर सवाल खड़े किए. लेकिन इरादों की पक्की अन्ना को समाज से तनिक भी नहीं था. और इसी तरह वो साल 1926 में केरल की पहली महिला लॉ ग्रेजुएट बनीं.
कानून की पढ़ाई करने के बाद जब वकील की रूप में कोर्ट रूम में कदम रखा तो विपक्षी वकीलों की खटिया खड़ी कर दी. जज भी अन्ना चांडी की दलीलों को इत्मिनान से सुना करते थे. समाज में महिलाओं को बराबर का हक दिलाने के लिए अन्ना सिर्फ वकील बनकर ही अपनी दुनिया को सीमित नहीं रखा. 1931 में उन्होंने श्रीमूलम पॉप्यूलर असेंबली के चुनाव में बतौर प्रत्याशी कदम रखा. लेकिन पुरुष समाज ने उनके खिलाफ अपमानजनक प्रचार किया. उनके चरित्र पर तरह-तरह के सवाल उठाए गए. इसका नतीजा यह हुआ की वो चुनाव हार गईं.
चुनाव के हार से वो हताश नहीं हुआ. अगले साल यानी 1932 में उन्होंने फिर से चुनावी ताल ठोकी और इस बार उन्होंने असेंबली का चुनाव जीतकर अपने विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब दिया. उनका मानना था कि औरतें सिर्फ मर्दों के शारीरिक सुख का जरिया नहीं हैं.
अन्ना ने अपना सफर जारी रखा और साल 1948 में जिला जज बनीं. जिला जज बनने के बाद भी वो नहीं रुकी. वो समय आ गया था जब भारत को हाई कोर्ट की पहली महिला जज मिलने वाली थी. 9 फरवरी 1959 को वो केरल हाई कोर्ट की जज बनीं. वह इस पद साल 1967 तक बनीं रहीं. हाई कोर्ट की जज रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए.
खास बात यह थी अन्ना चांडी के पति पी एस चांडी का उनकी सफलता में बहुत बड़ा योगदान था. उन्हें हमेशा पति का साथ मिला. उनके पति उनकी तरक्की के सपने देखते रहते थे.