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Independence Day Special: दक्षिण की वो वीरांगना 'लक्ष्मीबाई' जिसने अंग्रेजों को चटाई थी धूल, घुटनों पर आ गए थे दुश्मन

Rani Chennamma: अंग्रेजों के 20 हजार सैनिकों ने जब कित्तूर राज्य की ओर कूच की तो वहां के निवासियों दहशत फैल गई. कित्तूर राज्य की फौज अंग्रेजी फौज के सामने कुछ भी नहीं थी लेकिन उनके पास वीरांगना रानी चेन्नम्मा का हौसला था.

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Edited By: Gyanendra Tiwari
Independence Day Special: दक्षिण की वो वीरांगना 'लक्ष्मीबाई' जिसने अंग्रेजों को चटाई थी धूल, घुटनों पर आ गए थे दुश्मन

नई दिल्ली. भारत के आजादी के 77 वर्ष होने वाले हैं. स्वतंत्रता दिवस को लेकर देश के नागरिकों में उत्साह है. आज का आजाद भारत अपने उन हजारों-लाखों शहीदों को नमन करता है, जिन्होंने हिंदुस्तान को स्वतंत्र कराने में अपनी जान की बाजी लगा दी. आपने रानी लक्ष्मीबाई की कहानी तो सुनी ही होगी, जिन्होंने 1857 में अंग्रेजी शासन के पांव तले जमीन खिसका दी थी. उन्हीं की तरह दक्षिण भारत में एक ऐसी ही वीरांगना थी जिसने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दी थी. नाम था रानी चेन्नम्मा. इन्हें दक्षिण की रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है.

ऐलान ए जंग 
अंग्रेजों के 20 हजार सैनिकों ने जब कित्तूर राज्य की ओर कूच की तो वहां के निवासियों दहशत फैल गई. कित्तूर राज्य की फौज अंग्रेजी फौज के सामने कुछ भी नहीं थी लेकिन उनके पास वीरांगना रानी चेन्नम्मा का वो हौसला था जिसके दम पर उन्होंने अंग्रेजों से दो-दो हाथ करने का बिगुल बजा दिया. ये कहानी 1824 की है, जब मां रानी चेन्नम्मा के सैनिकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना जंग का एलान कर दिया था. यही तो भारत की मिट्टी में ताकत है. देश प्रेम के आगे हम भारतीय अपनी कुर्बानी देने से भी नहीं कतराते हैं.

हार गए अंग्रेज

अक्टूबर 1824 की वो तारीख इतिहास के पन्नों से कभी नहीं मिटाई जा सकती है. क्योंकि इन पन्नों में रानी चेन्नम्मा और उनके हजारों सैनिकों की वीर गाथाएं जो शामिल हैं. रानी अपने मुठ्ठीभर सैनिकों को लेकर अंग्रेजी हुकूमत के सामने ऐसा रण कौशल दिखाया कि हुकूमत के चारों खाने चित्त हो गए.

इस युद्ध में ब्रिटिश सैनिकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था. एजेंट सेंट जॉन को रानी के सैनिकों ने मौत के घाट उतार दिया था. सर वॉल्टर एलियट और स्टीवेंसन को कैद कर लिया गया था. स्थिति कुछ ऐसी बनी की रानी के कौशल के आगे अंग्रेजी हुकूमत ने अपने पाँव पीछे कर युद्ध विराम की घोषणा कर दी.

अंग्रेजों ने दिया धोखा

वीरांगना रानी चेन्नम्मा ने युद्ध के नियमों का पालन करते हुए अंग्रेजी अफसरों को रिहा कर दिया लेकिन अंग्रेजी हुकूमत हार से इतना तिलमिला गई थी कि छल से कुछ दिनों बाद फिर से कित्तूर राज्य पर हमला बोल दिया. रानी को ऐसे हमले की जरा भी उम्मीद नहीं थी. अंग्रेजों ने मां चेन्नम्मा को बंधी बना लिया. उन्हें बैलहोंगल किले में रखा गया. कित्तूर राज्य के किसी भी सैनिक को ये उम्मीद नहीं थी अंग्रेजी हुकूमत हार के बाद इस तरह से छल करके युद्ध के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए हमला कर देगी. 
 

 

अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए रानी चेन्नम्मा ने पहली दफा अंग्रेजों के घमंड को चकनाचूर कर दिया था लेकिन अंग्रेज इतने हारामी थे कि उन्होंने छल करके रानी को बंदी बना लिया था.  रानी चेन्नम्मा 21 फरवरी 1829 को वीरगति को प्राप्त हुई थी. देश उनकी शहादत को कभी नहीं भूल पाएगा.

कर्नाटक की लक्ष्मीबाई

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और कर्नाटक की रानी चेन्नम्मा की कहानी मिलती जुलती है. चेन्नम्मा घुड़सवारी करती थी. ठीक उसी तरह रानी लक्ष्मीबाई घुड़सवारी करती थी. तलवार समेत कई तरह के अस्त्र-शस्त्र चलाने में दोनों ही निपुण थीं. रानी चेन्नम्मा को उन्हें संस्कृत, कन्नड़, मराठी और उर्दू भाषा का ज्ञान था. रानी चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर 1778 को कर्नाटक के ककाली गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम धूलप्पा था और माता का नाम पद्मावती था.

राजा से शादी

कर्नाटक के बेलगावी में कित्तूर नाम का एक छोटा सा इलाका था. इस इलाके में बाघ ने अपना आतंक फैला रखा था. उस समय कित्तूर के राजा मल्लसर्ज थे. वह बाघ से मुकाबले करने के लिए निकल पड़े. उन्होंने बाण चलाया तो बाघ घायल होकर गिर गया. जब नजदीक जाकर राजा मल्लसर्ज ने देखा तो उन्हें चेन्नम्मा खड़ी दिखी थी. इसके बाद उन्होंने चेन्नम्मा से ही विवाह कर लिया था. राजा की मौत के बाद रानी चेन्नम्मा ने अपने राजा का भार संभाला. पति की मौत के बाद उनके बेटे की भी मौत हो गई थी. इसलिए उन्होंने शिवलिंगप्पा नाम के लड़के को गोद ले लिया था. आगे चलकर उन्होंने उसे राजकुमार घोषित कर दिया.

नाखुश थे अंग्रेज

शिवलिंगप्पा को राजा बनाए जाने की खबर से अंग्रेज रानी चेन्नम्मा से चिढ़ गए उन्होंने रानी के फैसले को स्वीकार नहीं किया. अंग्रेजों ने शिवलिंगप्पा को बाहर जाने का आदेश दिया लेकिन इस आदेश को चेन्नम्मा ने नजरअंदाज कर दिया. अंग्रेज इससे नाखुश हुए उनकी नजर कित्तूर के खजाने पर भी पड़ चुकी थी. कहा जाता है कि उस समय कित्तूर में 15 लाख रुपए से अधिक का सोना था. इन सब चीजों को देखते हुए अंग्रेजों ने कित्तूर पर छल कपट करके धावा बोल दिया. पहली बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा लेकिन दूसरी बार धोखे से उन्होंने कित्तूर पर हमला करके रानी को बंदी बना लिया. 

पहली शासिका

रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों को 1824 में धूल चटाई थी. अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने वाली वह पहली शासक थी. जैसे उत्तर भारत में रानी लक्ष्मीबाई को माना जाता है ठीक उसी कर्नाटक में में लोग रानी चेन्नम्मा को रानी लक्ष्मीबाई मानते हैं. रानी चेन्नम्मा के योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने 1977  में उनके नाम से डाक टिकट जारी किया था.