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India Daily

'किसी के दबाव में नहीं आना ही स्वदेशी है', ट्रंप के 50 फीसदी टैरिफ के लागू होने के बीच गरजे RSS प्रमुख मोहन भागवत

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आत्मनिर्भरता और स्वदेशी उत्पादों के उपयोग पर जोर दिया. उन्होंने स्वदेशी की सच्ची भावना के अनुरूप, दबाव के बजाय अपनी पसंद से अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव की वकालत की. उन्होंने स्थानीय विक्रेताओं को नुकसान पहुंचाने वाले अत्यधिक आयात के प्रति आगाह किया और दुनिया में बढ़ती कट्टरता और जागरूकता के संकट पर प्रकाश डाला.

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Edited By: Mayank Tiwari
RSS Chief Mohan Bhagwat
Courtesy: X@RSSorg

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार (27 अगस्त) को कहा कि स्वदेशी का सही मायने में अर्थ है कि देश अपनी मर्जी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़े, न कि किसी दबाव में आकर जुड़े. आरएसएस के शताब्दी समारोह के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने आत्मनिर्भरता को देश की प्रगति का मूलमंत्र बताया.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मोहन भागवत ने कहा, “आत्मनिर्भरता ही हर चीज की कुंजी है. हमारा देश आत्मनिर्भर होना चाहिए. आत्मनिर्भरता के लिए स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता देनी चाहिए. राष्ट्र की नीति अपनी मर्जी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़ने की होनी चाहिए, न कि दबाव में. यही स्वदेशी की सच्ची भावना है. उन्होंने साफ किया कि आत्मनिर्भर होने का मतलब आयात बंद करना नहीं है. उन्होंने कहा, “विश्व आपस में जुड़ा हुआ है, इसलिए निर्यात-आयात चलता रहेगा. लेकिन इसमें कोई दबाव नहीं होना चाहिए.

आत्मनिर्भरता और स्वदेशी की होनी चाहिए भावना

मोहन भागवत ने जोर देकर कहा कि स्वदेशी का मतलब उन वस्तुओं का आयात न करना है, जो देश में पहले से उपलब्ध हैं या आसानी से बनाई जा सकती हैं. उन्होंने कहा, “बाहर से सामान लाने से स्थानीय विक्रेताओं को नुकसान होता है.” उन्होंने यह भी कहा, “जो आपके देश में बनता है, उसे बाहर से आयात करने की जरूरत नहीं. जो जीवन के लिए जरूरी है और देश में नहीं बनता, उसे हम बाहर से लाएंगे. देश की नीति स्वेच्छा से होनी चाहिए, दबाव में नहीं. यही स्वदेशी है.”

वैश्विक उथल-पुथल और कट्टरता की चुनौती

भागवत ने वर्तमान विश्व व्यवस्था में बढ़ती कट्टरता पर चिंता जताई. उन्होंने कहा, “प्रथम विश्व युद्ध के बाद लीग ऑफ नेशंस बनी, फिर भी द्वितीय विश्व युद्ध हुआ. संयुक्त राष्ट्र बना, लेकिन तीसरा विश्व युद्ध न होगा, यह आज नहीं कहा जा सकता. विश्व में अशांति और संघर्ष हैं. दुनिया में तेजी से कट्टरता बढ़ रही है. ऐसे में जो लोग शालीनता और संस्कार नहीं चाहते, वे इस कट्टरता को बढ़ावा देते हैं. जो हमारे विचारों के खिलाफ बोलता है, उसे हम रद्द कर देंगे.”

वोकिज्म: वैश्विक संकट

वोकिज्म को एक बड़ा संकट बताते हुए भागवत ने कहा, “नए शब्द जैसे वोकिज्म आदि आए हैं. यह बहुत बड़ा संकट है. यह सभी देशों और अगली पीढ़ी पर है. सभी देशों के संरक्षक चिंतित हैं. बुजुर्ग चिंतित हैं, क्यों? क्योंकि कोई जुड़ाव नहीं है... धर्म पूजा, भोजन आदि से परे है. सभी धर्मों को चलाने वाला धर्म है, जो विविधता को स्वीकार करता है. वह धर्म संतुलन सिखाता है.”