Farmer Protest 2024: तीन साल पहले यानी 26 जनवरी 2021 को जब आंदोलन के दौरान किसान ट्रैक्टर ट्रॉली लेकर दिल्ली के अंदर पहुंच गए थे, तब क्या कुछ हुआ था, ये सभी को पता है. अब एक बार फिर किसान अपनी मांगों को रोकने को लेकर दिल्ली की ओर से कूच कर रहे हैं. ऐसे में तीन साल पहले जो चूक हुई थी, उसे दिल्ली पुलिस दोहराना नहीं चाहती. लिहाजा, दिल्ली की ओर बढ़ रहे किसानों को रोकने के लिए हर उपाय को अपना रही है.
13 फरवरी को शुरू हुए किसानों के आंदोलन का आज यानी गुरुवार को तीसरा दिन है. पहले दिन लगभग आंदोलन शांतिपूर्ण रहा था. दूसरे दिन यानी बुधवार को आंदोलनकारी जब उग्र हुए तो दिल्ली पुलिस ने न सिर्फ ड्रोन के जरिए आंसू गैस के गोले दागे, बल्कि रबर बुलेट भी दागे. कहा जा रहा है कि किसानों को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस की 'तरकश में कई आधुनिक तीर' मौजूद हैं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली पुलिस 2021 से सबक लेते हुए इस बार पूरी तैयारी के साथ दिल्ली को जोड़ने वाली सभी बॉर्डर पर तैनात हो गई है. पुलिस की कोशिश है कि किसी भी तरह आंदोलनकारी किसानों को दिल्ली पहुंचने से पहले ही रोका जा सके. दिल्ली पुलिस के साथ-साथ हरियाणा पुलिस भी अपनी कोशिशों में अब तक कामयाब भी हुई है. हथियारों के अलावा हरियाणा पुलिस की ओर से बॉर्डर को जोड़ने वाली सड़कों के किनारे मौजूद खेतों में पानी छोड़ दिया गया है, ताकि ट्रैक्टर ट्रॉलियों को खेतों के रास्ते आगे न ले जाया जा सके.
दिल्ली पुलिस को आशंका है कि 2021 वाली घटना एक बार फिर से दोहराई जा सकती है. इसलिए इस बार किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकने के लिए पुलिस आंसू गैस वाले ड्रोन से लेकर ध्वनी वाले हथियार तक लेकर तैनात हो गई है. इसके अलावा, सड़कों पर लोहे और सीमेंट के बड़े बोल्डरों से मजबूत बैरिकेडिंग की गई है. लोहे की बैरिकेडिंग की कई परतों के बाद सीमेंट के पत्थरों की कई लेयर बनाई गई हैं, जिनमें न सिर्फ कील लगाए गए हैं, बल्कि उनमें कटीले तारों को भी लगाया गया है.
साफ है कि दिल्ली पुलिस ये सुनिश्चित करना चाहती है कि किसी भी सूरत में किसान इन बैरिकेड्स को हटाकर आगे न बढ़ सकें. इसके अलावा, सिंघू बॉर्डर के पास सड़क का एक हिस्सा भी खोद दिया गया है. प्रदर्शनकारियों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए हरियाणा की सीमा से लगी ग्रामीण सड़कों को भी सील कर दिया गया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली सीमा के हर एंट्री प्वाइंट पर रैपिड एक्शन फोर्स और दंगा नियंत्रक बल को तैनात किया गया है.
हरियाणा और उत्तर प्रदेश की ओर से दिल्ली की ओर आने वाले सभी एग्जिट प्वाइंट को बैरिकेड्स, कंक्रीट ब्लॉक और कंटेनरों की कई लेयर से घेरा गया है. साथ ही, बैरिकेड्स के रूप में खड़े किए गए कंटेनर्स में मिट्टी और ईंट-पत्थर भी भरे गए हैं. साथ ही कई जगहों पर अस्थायी जेल भी बनाए गए हैं.
दिल्ली और हरियाणा के बीच सिंघू बॉर्डर की बात की जाए तो यहां कंटीले तार, मजबूत बैरियर के साथ-साथ किसानों के वाहनों और ट्रैक्टरों के टायरों को पंचर करने के लिए सड़क पर लोहे की कीलें लगाई गई हैं. ये वही बॉर्डर है, जो 2020-21 में विरोध प्रदर्शन का केंद्र था.
दरअसल, खुफिया इनपुट से पता चला है कि किसानों ने बैरिकेड हटाने के लिए अपने ट्रैक्टरों को मॉडिफाई किया है और उनमें हाइड्रोलिक उपकरण लगाए हैं. आंसू गैस के गोलों का सामना करने के लिए भी खास उपाय अपनाए गए हैं. साथ ही ट्रैक्टरों के हॉर्सपावर को भी दोगुना कर दिया गया है.
बुधवार को, पुलिस ने अपनी तैयारियों को और मजबूत करते हुए सीमा पर ध्वनि हथियार यानी LRAD (Long-range acoustic device) को भी तैनात कर दिया. बुधवार को सामने आए कुछ वीडियोज में दिल्ली पुलिस को राष्ट्रीय राजधानी की सीमा पर लंबी दूरी के ध्वनिक उपकरण यानी LRAD तैनात करते हुए देखा गया. इसके जरिए दिल्ली पुलिस तेज आवाज के साथ किसानों को टारगेट बना सकती है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, LRAD (Long-range acoustic device) के जरिए ऐसी आवाज निकलती है, जिससे सामने वाला शख्स सुनने की क्षमता खो सकता है. इससे इंसान बहरा भी हो सकता है.
इसके अलावा, बुधवार को पहली बार ऐसा हुआ, जब दिल्ली पुलिस ने आंसू गैस से लैस ड्रोन का इस्तेमाल किया. कहा जा रहा है कि इस बार किसान आंदोलन पर नजर रखने के लिए पुलिस ने बड़े पैमाने पर ऐसे ड्रोन तैयार किए हैं. मंगलवार और बुधवार को जैसे ही हरियाणा और पंजाब के बीच शंभू सीमा पर स्थिति अराजक हुई, हरियाणा पुलिस ने की ओर से भी आंसू गैस के गोले छोड़ने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, आंसू गैस से लैस ड्रोन को सीमा सुरक्षा बल (BSF) की टियर स्मोक यूनिट (TSU) ने 2022 में विकसित किया था. इसे पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ लगने वाली भारत की सीमाओं की सुरक्षा के लिए विकसित किया गया था.
ड्रोन इमेजिंग एंड इंफॉर्मेशन सर्विस ऑफ हरियाणा लिमिटेड (DRIISHYA) की ओर से विकसित ये ड्रोन आंसू गैस के गोले छोड़ने की क्षमता रखते हैं जो 500 मीटर तक की दूरी तय कर सकते हैं. इनमें एक साथ कई ग्रेनेड तैनात करने की भी क्षमता है.
ड्रोन, आंसू गैस के गोले, ध्वनी हथियार के अलावा दिल्ली और हरियाणा पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए एक और हथियार को यूज करने की तैयारी में है. दरअसल, पिछली बार किसान आंदोलन के दौरान निहंग सिखों के एक समूह ने घोड़ों का यूज किया था और वे बैरिकेड्स को पार कर दूसरी ओर पहुंच गए थे. इस घटना से सीख लेते हुए दिल्ली और हरियाणा पुलिस ने घोड़ों को रोकने के लिए लूब्रिकेंट्स का यूज करने की तैयारी में है. कहा जा रहा है कि अगर किसान घोड़ों का यूज कर बॉर्डर पार करने की कोशिश करते हैं, तो सड़कों पर लूब्रिकेंट्स को बहाया जाएगा, जिससे फिसलन हो और घोड़े आगे न बढ़ सकें. दरअसल, 26 जनवरी 2021 को लगभग 55 निहंग सिख अपने घोड़ों के साथ किसानों के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए और दिल्ली में कई स्थानों पर डंडों और तलवारों का इस्तेमाल करते हुए सुरक्षा कर्मियों से भिड़ गए थे.
सिंघु बॉर्डर के अलावा, दिल्ली-रोहतक रोड वाले टिकरी बॉर्डर पर भी इसी तरह की व्यवस्था की गई है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, आंदोलनकारी किसानों की ओर से पथराव की आशंका को देखते हुए पुलिस की ओर से बड़े जाल लगाए गए हैं, जो आमतौर पर स्टेडियमों की बाड़ लगाने के लिए उपयोग किए जाते हैं.
दिल्ली और हरियाणा पुलिस की ओर से अत्याधुनिक हथियारों के यूज का किसानों ने भी तोड़ निकाल लिया है. दरअसल, बुधवार को पुलिस के आंसू गैस वाले ड्रोन से निपटने के लिए किसानों ने पतंग उड़ाया. किसानों की कोशिश थी कि पतंग की डोर में इन ड्रोनों को फंसाकर नीचे गिराया जाए.
इसके अलावा, आंसू गैस से होने वाली जलन को दूर करने के लिए शंभू बॉर्डर पर डटे किसानों ने अपने चेहरे पर मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाया. कहा जाता है कि फेस पैक के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली मुल्तानी मिट्टी की तासीर ठंडी होती है, जिससे आंखों में जलन नहीं होती.
26 जनवरी 2021 को दिल्ली पुलिस के जवानों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि किसानों की ट्रैक्टर रैली के लिए जो मार्ग दिया गया था, वो उससे अलग होकर दिल्ली के अंदर पहुंच जाएंगे. इसके बाद, प्रदर्शनकारी किसान ट्रैक्टर ट्रॉली लेकर पूरे दिल्ली में घूमते रहे. इस दौरान कुछ प्रदर्शनकारी लाल किला तक पहुंच गए. हरियाणा और उत्तर प्रदेश के साथ दिल्ली की सीमाओं पर रखे गए कंटेनरों और ट्रकों ने किसानों को अंदर घुसने से रोकने के लिए कुछ नहीं किया, यहां तक कि एक वर्ग ने लाल किले को तोड़ दिया और एक झंडा फहराया।