History of Inheritance Tax in India: कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा के इन्हेरिटेंस टैक्स को लेकर हाल में ही एक बड़ा बयान दिया है. उनके इस बयान पर सियासत तेज हो गई है. बता दें कि कई विकसित देशों में इन्हेरिटेंस टैक्स लागू है. भारत में लगभग 40 साल पहले इन्हेरिटेंस टैक्स, जिसे संपत्ति कर या संपत्ति शुल्क के रूप में भी जाना जाता है लगाया जाता था. इन्हेरिटेंस टैक्स की दर आम तौर पर उत्तराधिकारी द्वारा प्राप्त संपत्ति के मूल्य और मृतक के साथ उसके संबंध पर निर्भर करती थी. इसके विपरीत, संपत्ति कर, मृत्यु के समय मृत व्यक्ति के स्वामित्व वाली संपत्ति के शुद्ध मूल्य पर आधारित होता थी.
भारत में इन्हेरिटेंस टैक्स (विरासत कर), जिसे संपत्ति कर या संपत्ति शुल्क के नाम से भी जाना जाता था, एक ऐसा कर था जो 1953 से 1985 तक लागू था. यह कर मृत व्यक्ति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति पर लगाया जाता था और इसका उद्देश्य धन असमानता को कम करना और अधिक न्यायसंगत समाज बनाना था. इन्हेरिटेंस टैक्स एक जटिल मुद्दा है जिसके पक्ष और विपक्ष दोनों में मजबूत तर्क हैं. भारत में, इस कर को 40 साल पहले समाप्त कर दिया गया था, लेकिन इस पर बहस समय-समय पर फिर से शुरू होती रहती है.
सबसे पहले, सन 1953 में एस्टेट ड्यूटी अधिनियम के तहत इन्हेरिटेंस टैक्स लागू किया गया था. उस समय देश में आर्थिक असमानता एक बड़ी समस्या थी. इस कर को लागू करने का मुख्य उद्देश्य यही असमानता को कम करना था. एस्टेट ड्यूटी की दरें उत्तरोत्तर बढ़ती थीं, जिसका मतलब था कि जितनी बड़ी संपत्ति विरासत में मिलती, उतना ज्यादा टैक्स देना होता था. उदाहरण के लिए, 20 लाख रुपये से अधिक की संपत्ति पर यह दर 85% तक पहुँच जाती थी.
यह कर संपत्ति के कुल मूल्य पर लगाया जाता था, चाहे वह चल संपत्ति हो या अचल संपत्ति, भारत में स्थित हो या विदेश में. हालाँकि, लागू होने के बाद इस कर को लेकर कई प्रशासनिक और कानूनी चुनौतियाँ सामने आईं. सरकार को संपत्ति के वास्तविक मूल्य को लेकर कई मुकदमों का सामना करना पड़ा. विरोधियों का यह भी कहना था कि यह कर निवेश और उद्यमशीलता को कम करता है, क्योंकि लोग मेहनत से कमाया धन अगली पीढ़ी को देने में हिचकिचाने लगते थे.
इन कारणों से, सन 1985 में राजीव गांधी सरकार ने एस्टेट ड्यूटी को समाप्त कर दिया. तब से, भारत में इन्हेरिटेंस टैक्स का कोई प्रावधान नहीं है.
हाल के वर्षों में, इन्हेरिटेंस टैक्स को फिर से लागू करने की मांग उठी है. समर्थकों का तर्क है कि इससे आर्थिक असमानता को कम करने में मदद मिलेगी, क्योंकि धनी परिवारों की संपत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती रहती है. साथ ही, सरकार को अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति भी हो सकेगी, जिसका इस्तेमाल सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं में किया जा सकता है.
हालाँकि, इस विचारधारा का विरोध भी किया जाता है. कुछ लोगों का मानना है कि यह कर निवेश और धन के सृजन को हतोत्साहित करेगा. उनका कहना है कि लोग मेहनत करके कमाए हुए धन को विरासत में देने की बजाय विदेशों में ले जाकर निवेश कर देंगे, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा.
यह बहस अभी भी जारी है. भविष्य में भारत सरकार इन्हेरिटेंस टैक्स को फिर से लागू करने का फैसला करेगी या नहीं, यह देखना बाकी है. इस फैसले पर आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों का गहरा प्रभाव पड़ेगा.
इन्हेरिटेंस टैक्स को 1953 में संपत्ति शुल्क अधिनियम के तहत पेश किया गया था. इस अधिनियम के तहत, मृतक की संपत्ति के उत्तराधिकारियों को विरासत में मिली संपत्ति के मूल्य का 85 प्रतिशत तक "संपत्ति शुल्क" का भुगतान करना पड़ता था. यह कर अचल और चल संपत्ति दोनों पर लागू होता था, चाहे वे कहीं भी स्थित हों. यह कर केवल तभी देय होता था जब विरासत में मिली संपत्ति का कुल मूल्य एक निश्चित सीमा से अधिक हो.
इन्हेरिटेंस टैक्स की दरें उत्तराधिकारी द्वारा प्राप्त संपत्ति के मूल्य और मृतक के साथ उनके संबंध पर निर्भर करती थीं. निकटतम रिश्तेदारों, जैसे पति/पत्नी, बच्चों और पोते-पोतियों को कम दरों का भुगतान करना पड़ता था, जबकि दूर के रिश्तेदारों और गैर-संबंधित व्यक्तियों को उच्च दरों का भुगतान करना पड़ता था.
1985 में, तत्कालीन वित्त मंत्री वीपी सिंह ने इन्हेरिटेंस टैक्स को समाप्त करने का निर्णय लिया. उनका मानना था कि इस कर ने धन असमानता को कम करने के अपने इच्छित लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया है और इसके बजाय, इसने अनावश्यक जटिलता और मुकदमेबाजी पैदा की है.
फायदों की बात करें तो ये धन असमानता को कम करने में मदद करता है, सरकार के लिए राजस्व उत्पन्न करता है और अमीरों को अपनी संपत्ति का अधिक जिम्मेदारी से उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है. वहीं नुकसान की बात करें तो इस टैक्स को प्रशासित करना काफी मुश्किल होता है तो साथ ही टैक्स चोरी के लिए लोगों को प्रोत्साहित करता है. इतना ही नहीं विरासत में मिली संपत्ति के मूल्य का आकलन करना मुश्किल हो सकता है.