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India Daily

हिमालयी राज्यों में क्यों बार-बार फट रहे हैं बादल, जानें क्या है तांडव के पीछे की वजहें और विज्ञान?

भारत में पिछले कुछ दशकों में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. 46 साल में जहां केवल 30 घटनाएं हुई थीं, वहीं पिछले 9 साल में 8 बड़ी तबाहियां देखी गईं. विशेषज्ञों का कहना है कि समय रहते कदम उठाना जरूरी है ताकि नुकसान कम किया जा सके.

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Edited By: Km Jaya
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Courtesy: Social Media

भारत में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, जो न केवल पर्यावरणीय नुकसान का कारण बन रही हैं, बल्कि मानव जीवन को भी गंभीर खतरे में डाल रही हैं. आंकड़ों के अनुसार, पिछले 9 वर्षों में घटित आपदाओं ने लोगों को हिलाकर रख दिया है. जलवायु परिवर्तन, जंगलों की अनियंत्रित कटाई और अवैज्ञानिक निर्माण कार्यों ने इस संकट को और गहरा किया है. खासकर हिमालयी क्षेत्रों में यह खतरा अब चरम पर पहुंच चुका है.

बादल फटने की वैज्ञानिक व्याख्या

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, बादल फटना तब होता है जब 20-30 वर्ग किलोमीटर के सीमित क्षेत्र में एक घंटे में 100 मिलीमीटर से अधिक बारिश दर्ज की जाती है. इन बादलों से अचानक भारी बारिश होती है, जो बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं को जन्म देती है.

बादल फटने के कारण

1. ओरोग्राफिक प्रभाव: हिमालय की ऊंची चोटियां और ढलानें हवाओं को ऊपर की ओर धकेलती हैं, जिसे ओरोग्राफिक लिफ्टिंग कहते हैं. यह भारी बारिश का प्रमुख कारण है.
2. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: ग्लोबल वार्मिंग से समुद्रों का तापमान बढ़ रहा है, जिससे वायुमंडल में नमी की मात्रा बढ़ रही है. प्रत्येक 1 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि हवा की नमी धारण क्षमता को 7% बढ़ा देती है, जिससे बादल फटने की संभावना बढ़ जाती है.
3. पर्यावरणीय विनाश: जंगलों की अंधाधुंध कटाई, अनियोजित शहरीकरण, और अवैध खनन ने पहाड़ी क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव और भूस्खलन की आशंका को बढ़ा दिया है. बांधों का निर्माण भी इस खतरे को और बढ़ाता है.
4. मॉनसून और पश्चिमी विक्षोभ: बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से आने वाली नम हवाएं हिमालय से टकराकर भारी वर्षा का कारण बनती हैं. पश्चिमी विक्षोभ भी इस प्रक्रिया को तीव्र करता है.

ऐतिहासिक आपदाएं और मानवीय क्षति

बादल फटने की घटनाओं ने भारत में कई बार भयावह तबाही मचाई है. साल 1908 में हैदराबाद में बड़ी त्रासदी हुई और इसमें 15,000 लोग मारे गए थे. हाल के वर्षों में उत्तरकाशी और किश्तवाड़ जैसी घटनाएं भी सामने आई हैं. 2025 में किश्तवाड़ के चशोटी में बादल फटने से 45 लोगों की जान गई, जबकि उत्तरकाशी के धराली गांव में चार लोगों की मृत्यु हुई और 50 से अधिक लोग लापता हो गए.

धार्मिक और सामाजिक प्रभाव

इन आपदाओं ने अमरनाथ और मचैल माता जैसी धार्मिक यात्राओं को भी बाधित किया है. सड़कों के ध्वस्त होने से राहत कार्यों में देरी होती है, और बिजली व संचार सेवाएं ठप हो जाती हैं. पर्यटन और कृषि क्षेत्रों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. नदियों में प्रदूषण और मिट्टी का कटाव पर्यावरणीय संतुलन को और कमजोर करता है.

समाधान की दिशा में कदम

बादल फटने की घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी करना मौसम विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि ये छोटे क्षेत्रों में अचानक घटित होती हैं. इस समस्या से निपटने के लिए उन्नत मौसम निगरानी प्रणालियों, वन संरक्षण, और नियोजित शहरीकरण पर ध्यान देना होगा. साथ ही, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक और स्थानीय स्तर पर प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है.