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Kargil Vijay Diwas: फिल्मी दुनिया छोड़ इस एक्टर ने उठा ली थी बंदूक, 'कारगिल युद्ध' में जान की बाजी लगाने को हो गया था तैयार

1999 के कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर सैनिकों की स्मृति में आयोजित इस समारोह में देशभक्ति की भावना ने पूरे लद्दाख क्षेत्र को सराबोर कर दिया.

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Edited By: Garima Singh
Kargil Vijay Diwas:
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Kargil Vijay Diwas: हर साल 26 जुलाई को भारत 'कारगिल विजय दिवस' के रूप में अपने वीर सैनिकों की शौर्य गाथा को याद करता है. इस मौके पर, जब देश 1999 के कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि देता है, एक ऐसा नाम सामने आता है जो न केवल सिनेमा की दुनिया में बल्कि देशभक्ति के जज्बे में भी अपनी अलग पहचान रखता है. नाना पाटेकर. यह दिग्गज अभिनेता, जो अपनी बेमिसाल अदाकारी के लिए जाना जाता है, कारगिल युद्ध के दौरान सैनिक बनकर देश की सेवा करने के लिए तैयार था. आइए, जानते हैं उनकी इस अनूठी कहानी को.

विश्वनाथ पाटेकर, जिन्हें दुनिया नाना पाटेकर के नाम से जानती है, हिंदी और मराठी सिनेमा के एक चमकते सितारे हैं. 1951 में जन्मे नाना ने 1978 में फिल्म 'गमन' से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की. इसके बाद 'परिंदा', 'प्रहार', 'अंगार', 'सलाम बॉम्बे', और 'तिरंगा' जैसी फिल्मों में उनके दमदार अभिनय ने दर्शकों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ी. नाना का व्यक्तित्व भले ही पारंपरिक बॉलीवुड नायकों जैसा न हो, लेकिन उनकी भावपूर्ण और यथार्थवादी अभिनय शैली ने उन्हें लाखों प्रशंसकों का प्रिय बनाया. 

'प्रहार' और सैन्य प्रशिक्षण का गहरा प्रभाव

नाना पाटेकर की फिल्म 'प्रहार' उनके करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव थी. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान, नाना ने मराठा लाइट इन्फैंट्री के साथ तीन साल तक कठिन सैन्य प्रशिक्षण लिया. यह प्रशिक्षण केवल कैमरे के लिए नहीं था, बल्कि इसने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, “नाना ने मराठा लाइट इन्फैंट्री के साथ तीन साल तक प्रशिक्षण लिया. यह सिर्फ़ कैमरों के लिए नहीं था इसने उन पर गहरा प्रभाव डाला.” इस अनुभव ने नाना के भीतर देशभक्ति की भावना को और मजबूत किया.

कारगिल युद्ध: जब नाना बनना चाहते थे असली सैनिक

1999 में जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ, नाना पाटेकर केवल दर्शक बनकर तालियां बजाने वालों में से नहीं थे. उनके दिल में देश की सेवा करने की तीव्र इच्छा थी. उन्होंने भारतीय सेना में भर्ती होने का फैसला किया और युद्ध के मैदान में सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने की इच्छा जताई. हालांकि, सैन्य अधिकारियों ने उनकी इस भावना को स्वीकार नहीं किया. फिर भी, नाना का यह जज्बा उनकी देशभक्ति और साहस का प्रतीक है.

जॉर्ज फर्नांडीस से मुलाकात

नाना हार मानने वालों में से नहीं थे. उन्होंने तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस से संपर्क किया. 'कौन बनेगा करोड़पति' में अपनी उपस्थिति के दौरान नाना ने बताया, "मैं अपने रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस जी को जानता था, इसलिए मैंने उन्हें फ़ोन किया. उन्होंने भी कहा कि यह असंभव है. मैंने उन्हें बताया कि कमीशन के लिए छह महीने का प्रशिक्षण होता है, लेकिन मैंने तीन साल तक प्रशिक्षण लिया. उन्हें आश्चर्य हुआ और उन्होंने मुझसे इसके बारे में पूछा. मराठा लाइट इन्फैंट्री के साथ मेरे अनुभव के बारे में जानने के बाद, उन्होंने मुझसे पूछा, 'तुम कब जाना चाहते हो?'"

युद्ध के मैदान में नाना

अगस्त 1999 में, नाना को मानद कैप्टन के रूप में भारतीय सेना में शामिल किया गया. उन्होंने द्रास, कुपवाड़ा, बारामूला, सोपोर और मुगलपुरा जैसे खतरनाक युद्ध क्षेत्रों में सेवा दी. नियंत्रण रेखा पर गश्त करना, पहरा देना और सैन्य अस्पतालों में मदद करना नाना ने हर वह काम किया जो एक सैनिक करता है. द लल्लनटॉप से बातचीत में नाना ने कहा, "जब वो श्रीनगर पहुंचे तो उनका वज़न 76 किलो था. वापस आने तक वज़न 56 किलो हो गया था." युद्ध के दौरान उन्होंने 20 किलो वजन कम किया, लेकिन यह उनके लिए गर्व का विषय था कि वे असली सैनिकों के साथ खड़े थे.

अभिनय में शानदार वापसी

कारगिल युद्ध के बाद नाना फिल्मी दुनिया में लौटे, लेकिन उनकी देशभक्ति और अनुभव की एक नई परत उनके अभिनय में झलकने लगी. उन्होंने अपनी बेबाक और प्रभावशाली स्क्रीन उपस्थिति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करना जारी रखा. नाना पाटेकर का यह सफर न केवल एक अभिनेता के रूप में, बल्कि एक सच्चे देशभक्त के रूप में भी प्रेरणादायक है.