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10,000 सवारियां, शून्य दुर्घटना..., IIT हैदराबाद ने AI ऑपरेट ड्राइवरलैश कार बनाई, वीडियो में देखें कारनामा

पिछले डेढ़ साल में 10,000 से अधिक लोग इस वाहन में सफर कर चुके हैं. खास बात यह है कि एक भी दुर्घटना दर्ज नहीं हुई है. यात्रियों ने वाहन की सुरक्षित और आरामदायक यात्रा के अनुभव की सराहना की है.

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Edited By: Reepu Kumari
IIT Hyderabad driverless car
Courtesy: Pinterest

IIT Hyderabad driverless car: भारत में तकनीक की दुनिया में एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज हुई है. आईआईटी हैदराबाद के शोधकर्ताओं ने एआई-संचालित चालक रहित वाहन का अनावरण किया है जिसने 18 महीनों में 10,000 से अधिक सवारियों को सुरक्षित यात्रा का अनुभव दिया है और अब तक शून्य दुर्घटनाएं दर्ज की हैं. यह उपलब्धि भारतीय सड़कों की जटिल परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए स्वायत्त नेविगेशन तकनीक के विकास का परिणाम है.

इस प्रोजेक्ट को टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब ऑन ऑटोनॉमस नेविगेशन (TiHAN) ने तैयार किया है. टीम ने वाहन को पहले आईआईटी हैदराबाद परिसर की आंतरिक सड़कों पर सफलतापूर्वक चलाया और धीरे-धीरे सुरक्षा व दक्षता को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया. अब यह तकनीक हवाई अड्डों, गोदामों और बड़े शैक्षणिक परिसरों में उपयोग के लिए उपयुक्त मानी जा रही है.

चरण-दर-चरण नवाचार

शोधकर्ताओं ने चालक रहित वाहन को एक नियंत्रित वातावरण में चरण-दर-चरण तरीके से विकसित किया. शुरुआत में लक्ष्य केवल वाहन को स्वयं चलाने का था. इसके बाद धीरे-धीरे इसमें सुरक्षा और नेविगेशन से जुड़ी सुविधाएँ जोड़ी गईं. यहां आप वीडियो देख सकते हैं.

यात्रियों का भरोसा

पिछले डेढ़ साल में 10,000 से अधिक लोग इस वाहन में सफर कर चुके हैं. खास बात यह है कि एक भी दुर्घटना दर्ज नहीं हुई है. यात्रियों ने वाहन की सुरक्षित और आरामदायक यात्रा के अनुभव की सराहना की है.

भारतीय परिस्थितियों में परीक्षण

टीम का ध्यान भारतीय सड़कों की वास्तविक चुनौतियों जैसे ट्रैफिक, मौसम और बुनियादी ढांचे की सीमाओं में भी बेहतर तरीके से काम कर सके. यह ‘ऑटोनोमस नेविगेशन स्टैक’ इलेक्ट्रिक और इंटरनल कम्बशन इंजन वाले किसी भी वाहन में इस्तेमाल किया जा सकता है.

भविष्य की योजना

फिलहाल सुरक्षा के लिहाज से वाहन में एक ड्राइवर मौजूद रहता है, जो केवल निगरानी करता है. लेकिन आने वाले समय में लक्ष्य यह है कि चालक की उपस्थिति की आवश्यकता पूरी तरह खत्म हो जाए. शोधकर्ता उद्योग के साथ साझेदारी कर इस तकनीक को व्यावसायिक रूप देने की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहते हैं.