कई सदियों से हिंदू धर्म में पूज्यनीय रहे भगवान परशुराम ने एक बार अपने गुरु यानी कि ऋषि कश्यप को संपूर्ण धरती का ही दान कर दिया था. कई सदियों से हिंदू धर्म में भगवान परशुराम को लोग उनके क्रोध, क्षत्रिय कुल विनाशक और विश्व विजेता के रूप में ही जानते हैं. इन सब के अलावा वह बहुत बड़े दानवीर भी थे. आइए जानते हैं कि क्या थी पूरी कथा. साथ ही यह भी जानते हैं कि पूरी धरती जीतने के बाद भी क्यूं भगवान परशुराम पहाड़ों पर रहा करते थे.
भगवान परशुराम को लगभग सारे लोग जानते ही होंगे. इन्हें विष्णु भगवान का अवतार भी माना जाता है. इनके गुरु ऋषि कश्यप जी थे. ऋषि कश्यप एक वैदिक ऋषि थे. इनकी गणना सप्तऋषियों में की जाती है. मान्यताओं के अनुसार, ऋषि कश्यप ऋग्वेद के सात प्राचीन ऋषियों में से एक हैं.
कौन थे भगवान परशुराम के गुरु?
वेद-पुराण के अनुसार, प्रारंभिक समय में ब्रह्मा जी ने समुद्र से लेकर धरती तक हर प्रकार के जीवों की उत्पत्ति की थी. उसी समय ब्रह्मा जी ने अपने कई मानस पुत्रों की भी उत्पति की थी. जिनमें से एक मरीचि थे. कश्यप ऋषि मरीचि जी के पुत्र थे और वह बड़े विद्वान भी थे. ऋषि कश्यप की माता भगवान कपिल देव की बहन थीं. उनके गुणों और प्रताप की वजह से उन्हें श्रेष्टतम विभूतियों की श्रेणी में रखा जाता था. जब सृष्टि के विकास की बात आती है तो इसका अर्थ जीव, जंतु और मानव की उत्त्पति से होता है. वहीं, पुराण की मान्यताओं के अनुसार ऋषि कश्यप के वंशज ही सृष्टि की वृद्धि में सहायक हुए हैं. कश्यप जी की 17 पत्नियां थी. जिनके वंश से सृष्टि का विकास हुआ.
कश्यप जी भगवान परशुराम के गुरु थे. पुराणों के अनुसार, जब भगवान परशुराम ने पूरी पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश कर दिया था. उसके बाद भगवान परशुराम ने अश्वमेघ यज्ञ किया था. इसी के बाद उन्होंने संपूर्ण धरती अपने गुरु ऋषि कश्यप को दान में दे दिया थी. ऋषि कश्यप ने परशुराम से कहा कि अब तुम मेरे देश में मत रहो. अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने निर्णय लिया कि वह अब हर रात पृथ्वी पर नहीं रहेंगे. वह रोज रात के समय मन के समान तेज गति की शक्ति से महेंद्र पर्वत पर चले जाया करते थे.
मान्यता है कि जिस मनुष्य का गोत्र नहीं मिलता उसका गोत्र कश्यप मान लिया जाता है. एक परंपरा के अनुसार, सभी जीवधारियों की उत्त्पति कश्यप से ही हुई है.