नई दिल्ली. हर साल 15 अगस्त पर भारत के प्रधानमंत्री लाल किले पर तिरंगा फहराते हैं. 15 अगस्त 1947 को भारत देश अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ था. इस दिन पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजाद भारत में पहली बार तिरंगा फहराया था. इसके बाद आधिकारिक तौर पर आजादी की घोषणा की गई थी. आपको बता दें कि यह तिरंगा आज भी संभालकर रखा गया है. देश की आजादी के कई प्रतीकों को अभी तक सरकार ने संभालकर रखा हुआ है.
कहां पर है आजाद भारत में फहराया गया पहला तिरंगा
जिस तिरंगे को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 15 अगस्त 1947 में फहराया था. वह अब भारत की राजधानी दिल्ली स्थित आर्मी बैटल ऑनर्स मेस में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी दी थी. इस तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने का प्रस्ताव 22 जुलाई 1947 को कॉन्स्टीट्यूशन हॉल में संविधान सभी की बैठक में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने रखा था, जिसको सभा ने स्वीकार कर लिया था. इस तरह तिरंगा भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अस्तित्व में आया था.
Today, 22nd July has a special relevance in our history. It was on this day in 1947 that our National Flag was adopted. Sharing some interesting nuggets from history including details of the committee associated with our Tricolour and the first Tricolour unfurled by Pandit Nehru. pic.twitter.com/qseNetQn4W
— Narendra Modi (@narendramodi) July 22, 2022
तिरंगा कैसे बना राष्ट्रध्वज
इस झंडे को स्वराज झंडा कहा जाता था. इसमें ऊपर की पट्टी केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरा रंग था. इसके बीच में नीले रंग से बना चरखा था. 1931 में कांग्रेस ने स्वराज झंडे को ही राष्ट्रध्वज के रूप में स्वीकृति दी गई. इसके बाद में 10 जुलाई 1947 में संविधान सभा की बैठक में राष्ट्रध्वज के डिजाइन से जुड़ीं बारीकियां तय की गईं. इसके बाद 22 जुलाई 1947 को भारत का यह नया तिरंगा अस्तित्व में आ गया.
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काफी रोचक रही राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की कहानी
जब स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आजादी के लिए संघर्षरत थे, तब एक राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता महसूस की गई. 20 वीं सदी की शुरुआत में ही इसको लेकर विचार-विमर्श शुरू हो गया था. उस समय महात्मा गांधी ने 'यंग इंडिया' में छपे एक लेख में राष्ट्रध्वज की जरूरत को बताया था. इसके बाद पिंगली वेंकैया को राष्ट्रीय ध्वज तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी. उन्होंने इस ध्वज को तैयार करने के लिए केसरिया और हरे रंग का इस्तेमाल किया था. इसमें केसरिया हिंदू और हरे रंग को मुस्लिम समुदाय का प्रतीक माना गया था. इसके बाद में लाला हंसराज की सलाह पर गांधी जी ने ध्वज के बीच में चरखा जोड़ने का सुझाव दिया था. इस ध्वज को 1921 में हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में पेश किया जाना था, लेकिन तब यह तैयार नहीं हो पाया था. इसी बीच इसमें सफेद रंग जोड़ने का सुझाव दिया गया. महात्मा गांधी ने 1929 में अपने एक संबोधन के दौरान कहा था कि केसरिया रंग बलिदान का, सफेद रंग पवित्रता और हरा उम्मीद का रंग है. इसके बाद आगे चलकर यह भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना.
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