केंद्र सरकार के संचार साथी ऐप को लेकर देश में नई बहस शुरू हो गई है. सरकार का कहना है कि यह ऐप साइबर फ्रॉड रोकने से लेकर खोए फोन की रिकवरी तक, डिजिटल सुरक्षा को मजबूत करेगा.
वहीं विपक्ष ने इसे नागरिकों की निजता पर हमला बताते हुए कड़ी आपत्तियां जताई हैं. तकनीक और साइबर कानून विशेषज्ञों के बीच भी इस निर्देश पर मतभेद है. ऐसे में करोड़ों मोबाइल उपभोक्ता यह समझना चाहते हैं कि उनके फोन और डेटा पर इस ऐप का क्या असर पड़ेगा.
संचार साथी सरकार की एक मोबाइल और वेब आधारित पहल है, जिसमें कई डिजिटल सुरक्षा सेवाएं शामिल हैं. इसका प्रमुख मॉड्यूल ‘चक्षु’ है, जो संदिग्ध कॉल, साइबर फ्रॉड, फिशिंग लिंक और स्पैम की रिपोर्टिंग की सुविधा देता है. वेबसाइट के अनुसार, यह रिपोर्टिंग विभाग को ऐसे संसाधनों के दुरुपयोग को रोकने में मदद करती है. ऐप का दावा है कि उपयोगकर्ता साइबर खतरों से खुद को सुरक्षित रखने के लिए सीधे इसमें शिकायत दर्ज करा सकते हैं.
सरकारी वेबसाइट के मुताबिक, संचार साथी को एंड्रॉयड पर 1 करोड़ से अधिक और एप्पल फोन पर 10 लाख से ज्यादा डाउनलोड मिले हैं. यह आंकड़े बताते हैं कि ऐप पहले से ही बड़ी संख्या में उपयोग हो रहा है. सरकार चाहती है कि यह ऐप हर फोन में मौजूद हो ताकि लोग आसानी से फर्जी कॉल, धोखाधड़ी और स्पैम के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर सकें. साइबर अपराधों में तेजी से वृद्धि इसे और जरूरी बना देती है.
गूगल प्ले स्टोर में उपलब्ध जानकारी के अनुसार, ऐप कैमरा, कॉल लॉग, मैसेज पढ़ने-भेजने और स्टोरेज एक्सेस जैसी परमिशन मांगता है. यही कारण है कि फोन में इसे प्री-इंस्टॉल करने के फैसले पर सवाल उठने लगे हैं. हालांकि ऐप का दावा है कि वह किसी भी उपयोगकर्ता का डेटा न तो इकट्ठा करता है और न ही किसी तीसरे पक्ष से साझा करता है. लेकिन बड़ी संख्या में उपभोक्ता ऐसे ऐप्स के प्रति स्वाभाविक रूप से सावधान रहते हैं.
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में साइबर अपराधियों ने 22,845 करोड़ रुपये की ठगी की—जो 2023 की तुलना में 206% ज्यादा है. सरकार का दावा है कि अपराधियों द्वारा फर्जी या क्लोन IMEI वाले फोन का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है. संचार साथी ऐसे IMEI नंबरों को पहचानकर नेटवर्क पर सक्रिय होने से रोकता है. इसके अलावा, ऐप खोए और चोरी हुए फोन को ब्लॉक कराने और उन्हें ट्रेस करने में भी मदद करता है.
संचार साथी पोर्टल के अनुसार, 42 लाख से ज्यादा गुम या चोरी हुए फोन ब्लॉक किए गए और 26 लाख से अधिक का पता लगाया गया. लगभग 7 लाख फोन बरामद भी हुए हैं. संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इसे 'बेहद सफल' पहल बताया है. उन्होंने कहा कि ऐप को फोन से हटाया भी जा सकता है और यह अनिवार्य नहीं है. हालांकि निर्देश आने के बाद यह बहस तेज हो गई कि क्या इसे वाकई हटाना संभव होगा.
कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने इसे 'असंवैधानिक' बताते हुए कहा कि यह नागरिकों की निजता का उल्लंघन है. उन्होंने चेतावनी दी कि 'सरकार हर भारतीय की निगरानी नहीं कर सकती.' शिव सेना (यूबीटी) की प्रियंका चतुर्वेदी ने इसे 'बिग बॉस सर्विलांस' करार दिया. उनका आरोप है कि सरकार समस्या का समाधान निकालने के बजाय नागरिकों के फोन में जबरन हस्तक्षेप कर रही है. विपक्ष ने इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है.
साइबर विशेषज्ञ रक्षित टंडन का कहना है कि ऐप चोरी हुए फोन और फर्जी कॉल रिपोर्टिंग में उपयोगी है. उनके अनुसार, प्री-इंस्टॉल ऐप साइबर फ्रॉड कम कर सकता है. लेकिन साइबर कानून विशेषज्ञ खुशबू जैन मानती हैं कि प्री-इंस्टॉल ऐप से 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' कम होती है, हालांकि सामूहिक सुरक्षा के लिए यह जरूरी कदम भी हो सकता है. वहीं मीडिया नाम के संस्थापक निखिल पहवा ने इसे 'निजता पर गंभीर खतरा' और संभावित सरकारी निगरानी की दिशा में खतरनाक कदम बताया.