Cloudburst in Uttarkashi: मंगलवार को उत्तराखंड के धराली गांव में बादल फटने और लैंडस्लाइड की घटना ने भारी तबाही मचाई. इस प्राकृतिक आपदा ने गांव को अपनी चपेट में ले लिया, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है. स्थानीय प्रशासन और राहत टीमें मौके पर पहुंचकर बचाव कार्य में जुट गई हैं.
यूट्यूब चैनल Thirdpolelive की एक रिपोर्ट के मुताबिक, धराली गांव में उस समय करीब 300 लोग मौजूद थे, जब यह आपदा आई. हालांकि, सौभाग्य से कई ग्रामीण पास के गांव में मेले में शामिल होने गए थे, जिसके कारण कुछ हद तक हताहतों की संख्या कम होने की संभावना है. फिर भी, अभी तक मृतकों की सटीक संख्या का पता नहीं चल सका है. सेना, एनडीआरएफ (NDRF), और एसडीआरएफ (SDRF) की टीमें राहत और बचाव कार्य में लगी हुई हैं. धराली गांव उत्तरकाशी-गंगोत्री हाईवे पर हर्षिल से मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
उत्तरकाशी के धराली में बादल फटने से सब कुछ बह गया. कई लोगों की मौत की खबर pic.twitter.com/qJZ9kT6gvk
— Hemraj Singh Chauhan (@JournoHemraj) August 5, 2025
श्रीखंड पहाड़ी और सप्तताल झील
धराली गांव के ऊपर स्थित पहाड़ी पर सातताल झील है, जिसके कैचमेंट क्षेत्र में श्रीखंड पहाड़ी मौजूद है. लंबे समय से श्रीखंड पहाड़ी के टूटने की घटनाएं सामने आ रही थीं. मंगलवार को 'खीर गंगा' नदी में अचानक बादल फटने से भारी मात्रा में मलबा और पानी धराली गांव की ओर बह गया, जिसने गांव को तबाह कर दिया. स्थानीय लोगों का कहना है, "जान-माल की भारी हानि हुई है. इससे पहले 18वीं सदी में खीर गंगा नदी के कारण ऐसी त्रासदी देखी गई थी, जब प्रसिद्ध 'कल्पेश्वर महादेव मंदिर' का बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया था."
सुक्की के समीप बादल फटा, भागीरथी नदी का जलस्तर उफान पर, निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा pic.twitter.com/Lku6MfJWOg
— Hemraj Singh Chauhan (@JournoHemraj) August 5, 2025
पहले भी हो चुकी हैं ऐसी आपदाएं
विशेषज्ञों का मानना है कि यह आपदा तीव्रता में केदारनाथ में 2013-14 में आई भयंकर बाढ़ और बदल फटने के समान है. खीर गंगा नदी के पास पहाड़ी के दरकने की घटनाएं पहले भी देखी गई थीं. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सरकार ने समय रहते नदी पर अलार्म सिस्टम स्थापित किया होता, तो शायद इस आपदा की भयावहता को कम किया जा सकता था.
बचाव कार्य और भविष्य की चिंताएं
राहत और बचाव कार्य तेजी से चल रहे हैं, लेकिन ग्रामीणों में भय और अनिश्चितता का माहौल है. यह घटना उत्तराखंड के लिए एक चेतावनी है कि प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए पहले से बेहतर तैयारियां और निगरानी तंत्र की आवश्यकता है.