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'जब-जब जुल्म होगा, तब-तब जिहाद...', वंदे मातरम पर मदनी के बिगड़े बोल, 'अपनों' ने भी बनाई दूरी

भोपाल में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की बैठक में मौलाना महमूद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट, जिहाद और वंदे मातरम मुद्दों पर विवादित बयान दिए. उनके आरोपों को लेकर राजनीतिक और धार्मिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया सामने आई तथा कई संगठनों ने दूरी बना ली.

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Edited By: Kanhaiya Kumar Jha
Maulana Mahmood Madani India Daily
Courtesy: Social Media

भोपाल: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित जमीयत उलेमा-ए-हिंद की गवर्निंग बॉडी काउंसिल की बैठक में संगठन के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी के संबोधन ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है. अपने भाषण में उन्होंने देश की सर्वोच्च अदालत की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्न उठाए.

मदनी ने कहा कि हाल के फैसलों, विशेषकर बाबरी मस्जिद और तीन तलाक मामलों में, न्यायिक रुख पर सरकार का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ज्ञानवापी और मथुरा विवादों की सुनवाई में इबादतगाह अधिनियम की अनदेखी चिंताजनक है.

मौलाना ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट तब ही ‘सुप्रीम’ कहलाने का अधिकारी है जब वह संविधान की मर्यादा का पालन करे. यदि यह नहीं होता, तो उसकी सर्वोच्चता स्वयं प्रश्नों के घेरे में आ जाती है.

मुस्लिम समुदाय से की ये अपील

अपने संबोधन में मदनी ने मुस्लिम समाज को निराशा से दूर रहने की सलाह भी दी. उन्होंने कहा कि किसी भी समुदाय के लिए मायूसी एक धीमे जहर की तरह होती है, इसलिए हालात चाहे जैसे हों, हिम्मत नहीं छोड़नी चाहिए.

जिहाद को लेकर बयान ने बढ़ाई गर्माहट

मदनी ने जिहाद के विषय पर भी विस्तार से बात की. उन्होंने कहा कि इस्लाम-विरोधी ताकतों ने ‘जिहाद’ को हिंसा और उग्रवाद का पर्याय बताकर उसका अर्थ विकृत किया है. उन्होंने कहा कि लव जिहाद, लैंड जिहाद, थूक जिहाद जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर मुसलमानों का अपमान किया जा रहा है. जबकि कुरान में जिहाद के कई आयाम हैं, जो इंसानियत, न्याय और समाज की बेहतरी की ओर ले जाते हैं. सभागार में उनके ये शब्द खत्म होते ही नारा-ए-तकबीर, अल्लाहु अकबर की आवाजें गूंज उठीं.

मदनी ने स्पष्ट किया कि जिहाद कोई व्यक्तिगत प्रतिशोध की प्रक्रिया नहीं है, यह निर्णय केवल एक शरीयत-आधारित शासन ही ले सकता है. भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जिहाद को राजनीतिक बहस का मुद्दा बनाना बेवजह है. उन्होंने कहा कि जब-जब जुल्म होगा, तब-तब जिहाद होगा.

वंदे मातरम पर भी दी प्रतिक्रिया

वंदे मातरम को लेकर चल रहे विवाद पर भी मौलाना मदनी ने टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि कमजोर कौमें दबाव में झुक जाती हैं, लेकिन जीवंत समुदाय परिस्थितियों का सामना करता है. उन्होंने संकेत दिया कि किसी भी नारे या गीत को थोपना उचित नहीं है.

अन्य मुस्लिम संगठनों ने बनाई दूरी

मौलाना मदनी के इन बयानों से कई मुस्लिम संगठन असहमत दिखाई दिए. जमात-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष मौलाना सादातुल्लाह हुसैनी ने कहा कि वंदे मातरम के मुद्दे पर विवाद खड़ा करना तर्कहीन है. हुसैनी ने कहा कि देशप्रेम जताने का तरीका व्यक्तिगत विश्वास पर आधारित होता है, इसलिए किसी एक नारे को पूरे देश के लिए अनिवार्य बनाना उचित नहीं.