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Delhi Vehicle Ban: 'उम्र नहीं, धुआं देखो', सुप्रीम कोर्ट पहुंची दिल्ली सरकार, कहा गाड़ियों पर बैन हो तो प्रदूषण के आधार पर

दिल्ली सरकार का साफ कहना है कि गाड़ियों की उम्र तय कर देना कोई समाधान नहीं है. सरकार चाहती है कि हर गाड़ी की फिटनेस वैज्ञानिक तौर पर जांची जाए. मतलब अगर कोई 15 साल पुरानी गाड़ी भी कम प्रदूषण कर रही है.

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Edited By: Reepu Kumari
Delhi Vehicle Ban
Courtesy: Pinterest

Delhi Vehicle Ban: दिल्ली की सड़कों से पुराने वाहनों को हटाने के मकसद से लगाए गए बैन को लेकर अब खुद दिल्ली सरकार ने सवाल उठाए हैं. सरकार का कहना है कि सिर्फ गाड़ी की उम्र के आधार पर रोक लगाना सही नहीं है, बल्कि असली पैमाना तो प्रदूषण होना चाहिए. 10 साल पुरानी डीजल और 15 साल पुरानी पेट्रोल गाड़ियों पर पूरी तरह रोक को लेकर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से 2018 में दिए गए उस आदेश को वापस लेने की मांग की है, जिसमें नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के फैसले को सही बताया गया था. यह मामला अब 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच में सुना जाएगा. सरकार चाहती है कि गाड़ियों की जांच उम्र से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक तरीके से उनके उत्सर्जन के आधार पर हो.

उम्र से नहीं, धुएं से तय हो गाड़ी की योग्यता

दिल्ली सरकार का साफ कहना है कि गाड़ियों की उम्र तय कर देना कोई समाधान नहीं है. सरकार चाहती है कि हर गाड़ी की फिटनेस वैज्ञानिक तौर पर जांची जाए. मतलब अगर कोई 15 साल पुरानी गाड़ी भी कम प्रदूषण कर रही है, तो उसे चलने की इजाजत मिलनी चाहिए. इसके लिए सरकार ने केंद्र और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से विस्तृत अध्ययन की मांग की है.

NGT ने क्या कहा था अपने आदेश में?

NGT ने 2014 में आदेश दिया था कि 15 साल से ज्यादा पुरानी कोई भी गाड़ी -चाहे पेट्रोल हो या डीजल – सड़क पर नहीं चल सकेगी. यहां तक कि ऐसे वाहन अगर किसी सार्वजनिक जगह पर खड़े मिले, तो उन्हें जब्त कर लिया जाएगा. यह आदेश दोपहिया से लेकर भारी वाहनों तक सभी पर लागू होता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस आदेश को 2018 में सही ठहराया था.

दिल्ली सरकार बोली- न्यायसंगत नहीं है यह तरीका

सरकार का तर्क है कि उम्र के आधार पर पाबंदी सभी गाड़ियों पर समान रूप से लागू करना न तो तर्कसंगत है और न ही कारगर. कई गाड़ियां मेंटेनेंस की वजह से कम प्रदूषण करती हैं, जबकि नई गाड़ियां भी खराब रख-रखाव के चलते ज्यादा धुआं छोड़ती हैं. ऐसे में एक व्यवहारिक और वैज्ञानिक नीति बननी चाहिए जो पर्यावरण भी बचाए और जनता की जरूरतों का भी ख्याल रखें.