Chhattisgarh High Court: मध्य प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के 84 वर्षीय पूर्व बिलिंग सहायक, जागेश्वर प्रसाद अवधिया को आखिरकार निर्दोष घोषित कर दिया गया है. उन्हें 100 रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगया गया था. 1985 में, उनके एक सहकर्मी, अशोक कुमार वर्मा ने अवधिया पर कुछ वेतन बकाया चुकाने के लिए ₹100 मांगने का आरोप लगाया था. लोकायुक्त अधिकारियों ने नोटों पर पाउडर लगाकर जाल बिछाया. बाद में पैसे उनकी जेब से मिले.
लेकिन अवधिया ने हमेशा दावा किया कि पैसे मेरी जेब में जबरदस्ती डाले गए थे. मैंने कभी रिश्वत नहीं मांगी.' अपने दावों के बावजूद, उन्हें 2004 में निलंबित कर दिया गया, दोषी ठहराया गया और उनकी नौकरी और प्रतिष्ठा चली गई. उन्होंने अगले चार दशक अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए संघर्ष किया.
इस हफ्ते छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने आखिरकार उन्हें बरी कर दिया, यह कहते हुए, 'सिर्फ पैसे वसूलना रिश्वत साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक कि रिश्वत मांगने और स्वेच्छा से स्वीकार करने के स्पष्ट सबूत न हों. न्याय बहुत देर से मिला... मैंने सब कुछ खो दिया'
अवधिया के लिए, यह फैसला कोई जश्न मनाने जैसा नहीं है. वह कहते हैं, 'मेरी तनख्वाह आधी कर दी गई. मैं अपने बच्चों के लिए अच्छे स्कूल नहीं चला सकता था. मेरी बेटियों की शादी बहुत मुश्किल से हुई. हम गरीबी में रहे. मेरे सबसे छोटे बेटे नीरज की शादी भी नहीं हो पाई.' उन्होंने आगे कहा, 'हां, मुझे बरी कर दिया गया है, लेकिन उन सालों का क्या जो मैंने गंवाए?'
उनका सबसे बड़ा बेटा, अखिलेश, चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना चाहता था, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति ने उसके सपने को तोड़ दिया. बेटे ने कहास,'मुझे पढ़ाई के लिए ₹300 महीने की मजदूरी करनी पड़ी. हमने खाना भी छोड़ दिया. अब मैं बस यही उम्मीद करता हूं कि किसी और को हमारी तरह तकलीफ न झेलनी पड़े.'