भारत में जहां हर शहर और कस्बे में ऑटो और टैक्सी आम दृश्य होते हैं, वहीं छत्तीसगढ़ का चिरमिरी अपनी अलग पहचान रखता है. यहां लोग आने-जाने के लिए सार्वजनिक परिवहन पर निर्भर नहीं रहते बल्कि एक-दूसरे को ‘लिफ्ट’ देकर सफर करते हैं. यही वजह है कि यह शहर अपने अनोखे ‘लिफ्ट कल्चर’ के लिए पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय है.
चिरमिरी खनन क्षेत्र में बसा एक पहाड़ी शहर है. आठ अलग-अलग पहाड़ी इलाकों में फैले इस नगर का भूगोल इतना कठिन है कि यहां ऑटो रिक्शा या टैक्सी का संचालन संभव ही नहीं हो पाया. 29 किलोमीटर में फैले इस शहर के अलग-अलग इलाके जैसे पोड़ी, हल्दी बाड़ी, बड़ा बाजार, डोम्न हिल और कोरिया कॉलियरी आपस में 1 से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं. घने जंगल और ऊंची-नीची सड़कों के कारण यहां सिर्फ जीप या निजी गाड़ियां ही चल पाती हैं.
स्थानीय लोग बताते हैं कि जब यह क्षेत्र मध्यप्रदेश का हिस्सा था, उस समय कोयला खदानों में काम करने वाले कुछ कर्मचारियों के पास ही स्कूटर हुआ करते थे. धीरे-धीरे रास्ते में मिलने वालों को बैठा लेने की आदत ने एक परंपरा का रूप ले लिया. आज हालत यह है कि अगर कोई राहगीर सड़क किनारे खड़ा दिख जाए तो बाइक या कार सवार उसे बिना हिचक लिफ्ट दे देते हैं. यह आदत अब यहां की सामाजिक संस्कृति बन चुकी है.
चिरमिरी में कई बार शहर बस सेवा शुरू करने की कोशिश हुई. पूर्व महापौर दम्रू रेड्डी के कार्यकाल में बसें चलाई भी गईं, लेकिन खराब भूगोल और समय के साथ गाड़ियों की स्थिति बिगड़ने से सेवा बंद हो गई. मौजूदा महापौर रामनरेश राय भी मानते हैं कि शहर की भौगोलिक स्थिति यहां नियमित परिवहन व्यवस्था चलाने में सबसे बड़ी बाधा है. हाल ही में दस साल का सरकारी टेंडर भी पूरा हो गया और बसें मरम्मत योग्य नहीं बचीं. इस कारण अब नई बस सेवाओं के लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है.
करीब 85 हजार की आबादी वाले इस शहर में लोग एक-दूसरे को भलीभांति जानते हैं. यही अपनापन यहां की लिफ्ट संस्कृति को मजबूती देता है. हालांकि बाहरी लोगों और नए आने वालों के लिए यह व्यवस्था कई बार मुश्किल भी पैदा कर देती है, क्योंकि यहां संगठित सार्वजनिक परिवहन की सुविधा नहीं है. फिर भी स्थानीय लोग इसे अपनी परंपरा और आपसी सहयोग का प्रतीक मानते हैं.