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बिहार चुनाव 2025: ये 6 सीटें है सत्ता की कुंजी, जो जीता उसकी सरकार! 1977 से चला आ रहा ट्रेंड इस बार टूटेगा या बचेगा?

2020 चुनाव में भी इनमें से ज्यादातर सीटों पर NDA ने कब्जा किया था, जो सरकार बनाने में मददगार साबित हुआ. लेकिन इस बार महागठबंधन ने इन पर पूरी ताकत झोंकी है. आरजेडी के तेजस्वी यादव और जेडीयू के नीतीश कुमार दोनों ही इन क्षेत्रों में प्रचार पर खास फोकस कर रहे थे.

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Edited By: Antima Pal
tejasvi yadav vs nitish kumar
Courtesy: x

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की मतगणना आज जोरों पर है. 243 सीटों पर NDA (बीजेपी-जेडीयू) और महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस) के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है. लेकिन चुनावी जंग के बीच एक दिलचस्प ट्रेंड सुर्खियों में है. 1977 के विधानसभा चुनाव से बिहार की 6 खास सीटें ऐसी हैं, जहां जो पार्टी या गठबंधन जीतता है, वही राज्य में सरकार बनाता है. ये सीटें बिहार की राजनीति का आईना मानी जाती हैं. इस बार ये ट्रेंड कायम रहेगा या टूटेगा? आइए जानते हैं इन सीटों की पूरी कहानी.

ये 6 सीटें हैं - केवटी (मधुबनी जिला), सकरा (मुजफ्फरपुर), सहरसा, मुंगेर, बरबीघा (नवादा) और पिपरा (सुपौल). 1977 में जनता पार्टी की जीत के बाद से इन सीटों पर विजयी दल या गठबंधन ने हर बार सत्ता की कमान संभाली. उदाहरण के लिए केवटी सीट का रिकॉर्ड 100% सटीक है. जनता पार्टी से शुरू होकर जेडीयू, आरजेडी और बीजेपी तक, यहां की जीत सरकार का संकेत देती रही. 

1977 से चला आ रहा ट्रेंड इस बार टूटेगा या बचेगा?

सकरा में सिर्फ एक बार 1977 के बाद गलती हुई, बाकी समय सही. सहरसा और मुंगेर जैसी सीटें भी बेलवेदर (संकेतक) सीटों की तरह काम करती हैं. बरबीघा में 2000 तक कांग्रेस का दबदबा रहा, जो आरजेडी सरकार का हिस्सा बनी. पिपरा में भी यही पैटर्न दिखता है. इन सीटों का महत्व इसलिए भी है क्योंकि ये ग्रामीण इलाकों से हैं, जहां वोटरों की सोच पूरे राज्य को प्रभावित करती है.

अभी तक की ट्रेंड्स के मुताबिक NDA बहुमत के करीब पहुंच रहा है. मुंगेर में बीजेपी के कुमार प्रणय लीड कर रहे हैं. सहरसा में भी बीजेपी का पलड़ा भारी है. लेकिन केवटी और पिपरा पर महागठबंधन के उम्मीदवार मजबूत दिख रहे है. 

48 साल पुरानी परंपरा इस बार भी रहेगी बरकरार?

सकरा और बरबीघा में कांटे की लड़ाई हो रही है. अगर ये 6 सीटें NDA के पक्ष में गईं, तो नीतीश कुमार का 10वां कार्यकाल पक्का हो जाएगा. वरना महागठबंधन को मौका मिल सकता है. वोटर टर्नआउट 66.91% रहा, जो 1951 के बाद सबसे ज्यादा है. यह ट्रेंड बिहार की राजनीति की अनोखी मिसाल है. क्या 48 साल पुरानी परंपरा इस बार भी बरकरार रहेगी? या युवा वोटरों की नई हवा इसे बदल देगी? मतगणना के अंतिम राउंड तक नजरें इन सीटों पर टिकी हैं.