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India Daily

भारत के क्रिकेट स्टार घरेलू मैदानों से दूर, विराट कोहली 2012 में तो रोहित शर्मा ने 2016 में खेला रणजी मैच

रत के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने कहा है कि भारत के नियमित खिलाड़ियों को खेल के सबसे लंबे फॉर्मेट में अपनी राज्य टीम के लिए खेलना चाहिए. 23 जनवरी को रणजी ट्रॉफी का अगला दौर है. देखते हैं कि इस टीम के कितने खिलाड़ी खेलते हैं. अगर आप उन मैचों में नहीं खेलते हैं, तो मैं कहता हूं कि गौतम गंभीर को कुछ कड़े फैसले लेने होंगे.

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Edited By: Gyanendra Sharma
Virat rohit
Courtesy: Social Media

आंकड़े खुद ही सब कुछ बयां कर रहे हैं. भारत की टेस्ट टीम के मुख्य खिलाड़ी बमुश्किल ही घरेलू मैदानों पर खेलते हैं और लाल गेंद से मैच खेलने का अभ्यास न होने का असर अंतरराष्ट्रीय नतीजों पर पड़ रहा है. रोहित शर्मा की अगुआई वाली भारतीय टीम ने एक दशक बाद बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी (BGT) ऑस्ट्रेलिया के सामने सरेंडर कर दी. यह उलटफेर कुछ महीने पहले ही हुआ जब टीम को न्यूजीलैंड के खिलाफ घरेलू मैदान पर 0-3 से हार का सामना करना पड़ा था, जो किसी दौरे पर गई टीम का पहला वाइटवॉश था. इस दो लगातार हार से भारत टेस्ट चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल से बाहर हो गया. 

भारत के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने कहा है कि भारत के नियमित खिलाड़ियों को खेल के सबसे लंबे फॉर्मेट में अपनी राज्य टीम के लिए खेलना चाहिए. 23 जनवरी को रणजी ट्रॉफी का अगला दौर है. देखते हैं कि इस टीम के कितने खिलाड़ी खेलते हैं. अगर आप उन मैचों में नहीं खेलते हैं, तो मैं कहता हूं कि गौतम गंभीर को कुछ कड़े फैसले लेने होंगे. 

स्टार खिलाड़ियों को दी गई छूट

पिछले साल अगस्त में बीसीसीआई के तत्कालीन सचिव जय शाह ने टीम इंडिया के खिलाड़ियों को चेतावनी दी थी कि अगर उन्होंने घरेलू क्रिकेट की जगह टी20 इंडियन प्रीमियर लीग ( आईपीएल ) को प्राथमिकता दी तो उन्हें "गंभीर परिणाम" भुगतने पड़ेंगे. उन्होंने अनुबंधित खिलाड़ियों को लिखे पत्र में कहा कि घरेलू क्रिकेट हमेशा से भारतीय क्रिकेट की नींव रहा है और खेल के प्रति हमारे दृष्टिकोण में इसे कभी कम करके नहीं आंका गया है. लेकिन, जहां बड़े टेस्ट सितारे घरेलू मैचों से दूर रहे और किसी भी प्रतिबंध से बच गए, कुछ क्रिकेटरों, श्रेयस अय्यर और ईशान किशन ने बीसीसीआई के केंद्रीय अनुबंध खो दिए.

'लाल गेंद की कमजोरी'

हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बीजीटी में 3-1 से मिली हार के पर्याप्त उदाहरण हैं, जो भारतीय क्रिकेट की 'लाल गेंद की कमजोरी' और सफेद गेंद की आदत को दर्शाते हैं. शॉट चयन में लापरवाही बरती गई. ऋषभ पंत बार-बार जोखिम भरे स्ट्रोक खेलकर आउट हो रहे थे. बल्लेबाज़ बार-बार गलतियां कर रहे थे. कोहली ऑफ़-स्टंप के बाहर की गेंदों पर आउट हुए. गेंदबाज़ लंबे स्पैल फेंकने के लिए तैयार नहीं थे सिराज अक्सर लय खो रहे थे. 

पिच पर ज्यादा देर नहीं टीक पा रहे बल्लेबाज

यशस्वी जायसवाल के अलावा किसी भी भारतीय बल्लेबाज ने दौरे पर 200 या उससे ज़्यादा गेंदें नहीं खेली. सिर्फ़ दो बल्लेबाज़ 150 से ज़्यादा गेंदें खेल पाए ( वाशिंगटन सुंदर और नितीश कुमार रेड्डी). गिल का सर्वश्रेष्ठ स्कोर 51 रन रहा. पंत सिर्फ़ एक बार 100 या उससे ज़्यादा गेंदें खेल पाए. पर्थ में शतक को छोड़कर, कोहली अपनी आठ अन्य पारियों में से किसी में भी 100 गेंदों तक नहीं टिक पाए. 

जायसवाल ने किसी भारतीय बल्लेबाज द्वारा सबसे अधिक गेंदों का सामना किया (732). इसी तरह, चेतेश्वर पुजारा ने 2018-19 में 7 पारियों में 1,258 गेंदों का सामना किया. 2003-04 के दौरे पर राहुल द्रविड़ का स्कोर 1,203 था. पुजारा ने 2020-21 में भी 928 गेंदों का सामना किया.