Sheikh Hasina Asylum: बांग्लादेश में बिगड़ते हालात के बीच राजनीतिक सत्ता परिवर्तन देखने को मिला है जिसके चलते पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपने पद के साथ देश भी छोड़ना पड़ा है. मौजूदा समय में वो भारत में रहकर कई देशों से राजनीतिक शरण देने की गुहार लगा रही है. इस दौरान वो भारत से भी डिप्लोमैटिक चैनल्स के माध्यम से असाइलम के लिए अप्लाई कर रही हैं.
यह पहली बार नहीं है जब वो अपनी सुरक्षा के लिए भारत की शरण ले रही हैं. इससे पहले 1975 में जब शेख हसीना के माता-पिता और 3 भाइयों को सेना की तरफ से किए गए तख्तापलट के दौरान जान से मार दिया गया था तब भी भारत ने उन्हें शरण दी थी और वो भारत में करीब 6 साल तक रही थीं. हालांकि इस बार ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है, इसका क्या कारण हैं, आइए एक नजर इस पर डालते हैं.
पॉलिटिकल असाइलम (राजनीतिक शरण) का मतलब होता है किसी व्यक्ति को उसके देश में रहने की असुरक्षित महसूस होने पर दूसरे देश में रहने की इजाजत देना. अगर कोई व्यक्ति अपने देश में राजनीतिक या सामाजिक कारणों से सुरक्षित महसूस नहीं करता और किसी दूसरे देश में जाकर रहने की इजाजत मांगता है, तो उसे पॉलिटिकल असाइलम मिलता है.
भारत में असाइलम नियम नहीं है, लेकिन यह अफगानिस्तान और म्यांमार से बहुत सारे लोगों को शरण प्रदान करता है. भारत के पास शरणार्थियों के लिए कोई कानूनी ढांचा नहीं है, लेकिन यूएनएचसीआर शरणार्थियों का पंजीकरण करता है और उन्हें रिफ्यूजी स्थिति की निर्धारण (रीएसडी) देता है. भारत में विदेशी नागरिकों को अपने देश में रहने के लिए सुरक्षा और सहायता प्रदान की जाती है.
संयुक्त राष्ट्र की ओर से बनाए गए नियमों में राजनीतिक शरण के अधिकारों का विवरण दिया गया है.
संयुक्त राष्ट्र की घोषणा-पत्र (Universal Declaration of Human Rights) के अनुच्छेद 14: इस अनुच्छेद में कहा गया है कि हर किसी को अन्य देशों में उत्पीड़न से बचने के लिए राजनीतिक शरण की खोज करने और उसे आनंदित करने का अधिकार है1.
1951 की यूएन शरणार्थियों की स्थिति संबंधी सम्मेलन: यह संविधान एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो एक शरणार्थी की पहचान को प्रासंगिक रूप से परिभाषित करता है और उसे शरण प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के अधिकारों और शरण प्रदान करने वाले राष्ट्रों की जिम्मेदारियों को निर्धारित करता है.
भारत हमेशा से ही शांति का समर्थक रहा है और जब भी कोई उसके पास शरण मांगने आता है तो वो इसको लेकर कोई नियम नहीं होने के बावजूद उन्हें असाइलम देने से नहीं चूकता है. भारत ने शेख हसीना से पहले चीन के जानी दुश्मन दलाई लामा को 1959 में राजनीतिक शरण दी थी. तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू ने चीन के भारी विरोध के बावजूद उन्हें शरण देने का फैसला किया था. इतना ही नहीं साल 2013 में मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नासिर ने माले स्थित भारत के दूतावास में शरण ली थी.
शेख हसीना ब्रिटेन समेत यूरोप के कई देशों में राजनीतिक शरण की तलाश कर रही हैं लेकिन मौजूदा स्थिति 1975 से काफी अलग है. 1975 में सैन्य तख्तापलट था लेकिन 2024 में नागरिकों ने विरोध कर सदन पर कब्जा किया है. भारत के सामने कूटनीतिक संकट है जिसे देखते हुए उसे हर कदम फूंक-फूंक कर रखना पड़ेगा.
शेख हसीना के साथ भारत के संबंध काफी अच्छे हैं और उनके कार्यकाल में दोनों देशों के बीच काफी नजदीकी बढ़ी है. बॉर्डर से लेकर बिजनेस में बढ़े तालमेल का श्रेय शेख हसीना सरकार को जाता है जिसे देखते हुए भारत उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकता है. शेख हसीना के कार्यकाल में ही एंटी इंडिया गतिविधियों पर रोक लगी और बांग्लादेश हिंदुओं के संरक्षण को लेकर कई मजबूत कदम उठाए गए.
हालांकि अगर इस बार भारत शेख हसीना को शरण देता है तो इसका सीधा संदेश जाएगा कि वो बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के खिलाफ है, जिसने काफी हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद सत्ता परिवर्तन किया है. भारत ने फिलहाल इसे बांग्लादेश की आंतरिक लड़ाई बताया है लेकिन शेख हसीना को शरण देना अप्रत्यक्ष रूप से उनका पक्ष लेना हो सकता है.
बांग्लादेश में विपक्षी दलों ने पहली ही एंटी इंडिया मुहिम चला रखी है और लगातार ये दावा किया है कि शेख हसीना की सरकार भारत से चल रही थी. ऐसे में शेख हसीना को शरण उनके दावों को अप्रत्यक्ष रूप से पुष्टि दे देगा. भारत-बांग्लादेश के बीच 4096 किमी का बॉर्डर लगता है तो वहां से भी देश की सुरक्षा को खतरा बढ़ सकता है. भारत फिलहाल इन तमाम पक्षों पर विचार कर रहा है और बांग्लादेश से सीधे दुश्मनी लेने से बच रहा है.